कल 28 तारीख सोमवार से #KBC शुरू हो रहा है। हमनें अमिताभ के पाखण्ड और KBC की असलियत का खुलासा पिछले वर्ष भी किया था। यदि जनता ने पिछले वर्ष ही जागरूक होकर केबीसी का बॉयकॉट किया होता तो आज ये दिन न देखने पड़ते।
कल से शुरू हो रहे KBC पर न सिर्फ अमिताभ व केबीसी टकटकी लगाए बैठे हैं,
बल्कि सम्पूर्ण बॉलीबुड, विज्ञापन कम्पनिया तथा बड़े-बड़े ब्रेंड की भी निगाहे जमी हुई है।
KBC की सफलता, असफलता आगे का रास्ता तय करेगी। यदि केबीसी फ्लॉप हो गया तो अमिताभ सहित सभी बड़े स्टार्स व विज्ञापन जगत की अक्ल ठिकाने आ जाएगी।
लेकिन यदि KBC हिट हो गया तो आज जो सितारे ncb के दफ्तर में मुंह छुपाए जा रहे हैं। विदेश भाग रहे हैं या चुप्पी साधे है, वे सभी सीना तानकर खड़े हो जाएंगे।
आज सितारों के दिख रहे झुके सिर उनकी शर्म नही है बल्कि आपके बायकॉट का डर है। उसे बनाए रखें।
जिस तरह कौन बनेगा करोड़पति मे इस बार एक के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता, सामाजिक सरोकार हेतु कार्य करने वाले लोग, प्रतिभागी बनकर बुलाए जा रहे हैं। उससे यही प्रतीत होता हैं, इस बार का केबीसी अमीर खान का सीरियल "सत्यमेव जयते" पार्ट-2 बनकर रह गया हैं।
हाल ही मे केबीसी मे राजस्थान की रूमा देवी को आमंत्रित किया गया। जिसमें उन्होंने घूँघट को कुप्रथा कहते हुये उसका तीखा विरोध किया। यहां तक कि उन्होंने घूँघट को स्त्रियों पर बंधन एवं नारी स्वतंत्रता के विरुद्ध बताया। उनके इस बयान पर खूब तालियां भी बजी।
अमिताभ बच्चन ने भी भूरि-भूरि प्रशंसा की।
क्यों न इसी विचार को आगे बढ़ाते हुये, केबीसी और अमिताभ अपने कार्यकृम की अगली कड़ी में, मुस्लम महिलाओं के हित के लिये #तीन_तलाक की लंबी लड़ाई लड़ने वाली सामाजिक कार्यकर्ता "शायरा बानो" को भी बुलाए।
क्योंकि उनकी लड़ाई रूमा देवी से कहीं अधिक कठिन थी। रूमा को हिन्दुओ के एक बड़े वर्ग के समर्थन के साथ फमिनिस्ट का साथ भी मिला। किन्तु शायरा बानो को मुस्लमो का समर्थन तो दूर फमिनिस्ट का साथ भी नही मिला।
तो क्यों न केबीसी और अमिताभ शायरा बानो को भी बुलाए,
ताकि महिला चिंतकों का दोगलापन भी देश के सामने उजागर हो सके। शायरा भी खुलकर केबीसी के मंच से कह सके कि "बुर्का" मुस्लम महिलाओं के लिये बंधन हैं। उनकी आजादी के खिलाफ हैं। और महिलाओं को बुर्का पहनने के लिये मजबूर किया जाता हैं।
फिर जब अमिताभ बच्चन शायरा बानो की
इन बातों के लिये ताली बजाकर प्रशंसा करेंगे, जैसे उन्होंने रूमा देवी की प्रशंसा की थी, तो निश्चित तौर पर मुस्लम महिलाओं को नया जीवनदान मिलेगा।
क्या अमिताभ और #KBC कर पायेंगे ये हिम्मत ??.. या इनकी सामाजिक चिंता, सामाजिक सरोकार भी सत्यमेव जयते की तरह एकतरफ़ा और एजेंडाधारी हैं।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
भारत में जब उच्च स्तरीय परीक्षा होते हैं, औरतों से मंगलसूत्र कान की बाली तक उतरवा ली जाती है, गले के लॉकट ताबीज तक उतरवा लिए जाते हैं।
मगर सिक्खों को कृपाण ले जाने की इजाजत है।
भारत में हवाई जहाज सफ़र में जेब में गलती से नेल कटर रह जाए तो हड़कम्प मच जाता है।
मगर सिक्खों को कृपाण ले जाने की इजाजत है।
अदालत में एक गवाह को कृपाण ले जाने से रोका गया, उस ने हाई कोर्ट में अपील किया, कोर्ट बोला ये हथियार नहीं, बल्कि यह सिखों का धार्मिक प्रतीक है और उन्हें इसे धारण करने का पूर्ण अधिकार है।
ये कुछ साल पुरानी बात है,
लंदन की अदालत में भी ऐसा ही कुछ मामला सामने आया, एक स्कूल ने बच्चे को कृपाण लाने से मना कर दिया, तब कोई “सर” मोटा सिंह ने कहा ‘‘मैं इस बात में कोई समस्या नहीं पाता कि किसी युवा सिख को कृपाण पहनने की अनुमति दी जाए। मैं पिछले 35-40 वर्षों से कृपाण धारण करता हूं.
सिंधु बार्डर पर बैठे गद्दार आंदोलनकारियों के खिलाफ फूटा आसपास के गांवों के किसानों का गुस्सा. भारी झड़प..
कल ग्रामीणों के सिंधु बार्डर खाली करवाने के अल्टीमेटम के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठे रही. लेकिन आज ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और खालिस्तान मुर्दाबाद,
तिरंगे का अपमान नही सहेगा हिंदुस्तान. जैसे नारो के साथ देशभक्त किसानों ने किसानों के वेश में सिंधु बार्डर पर बैठे गद्दारो को सड़के खाली करवाने के लिए पुनः पुलिस से अपील की..
लेकिन जब पुलिस ने इन्हें रोका तो भीड़ ने खुद ही आंदोलन कारियो के तम्बू उखाड़ने शुरू कर दिए.
जिसे देखते हुए आंदोलनकारियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. ताजा समाचार मिलने तक झड़प चालू है. लेकिन पुलिस गद्दारो को हटाने की बजाए दूसरी भीड़ को हटा रही है.
मोटा भाई अब छोड़िए लोकतंत्र का तमाशा अन्यथा जनता निराश हो जाएगी. जो आपमे पूर्व गृहमंत्री सरदार पटेल की छवि देखती है.
राकेश टिकैत खुद को जाट बताकर जो सहानुभूति कार्ड खेल रहे है. जाट भाईयो टिकैत के जातिवाद में उलझकर भावनाओं में बहने की बजाए टिकैत से प्रश्न पूछो 2013 के वक्त ये कहां थे ?? जब जाट समुदाय को इनकी सबसे अधिक जरूरत थी. तब इन्हें जाटो की याद नही आई.
जाट भाइयो याद करो उस वक्त आपके साथ कौन खड़े थे ? किन्होंने आपके लिए सड़कों पर उतरकर साथ दिया था.
2013 में जब आजम के इशारे पर शांतिदूतों ने जाटों पर जानलेवा हमला किया था, तब टिकैत जाट समुदाय को अकेला छोड़कर कहां छुप गए थे. उस वक्त जाटो की मदद संजीव बालियान, सोमदत्त जैसे
भाजपा नेताओं ने की थी. लेकिन कांग्रेस, राहुल, प्रियंका, अखिलेश और टिकैत चुपचाप तमाशा देख रहे थे.
आज वही टिकैत कांग्रेस के गुणगान कर रहे है. जिनके पिता महेंद्र टिकैत को राजीव गांधी ने आंदोलन से बैरंग अपमानित कर लौटाया था. वो टिकैत कांग्रेस संग गलबहियां कर रहे है
कल रात यह 64 दिन का प्रहसन समाप्त हो जाना चाहिए था, जितना ज़हर अकेले इस टिकैत ने घोला है,इसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है ! न BJP विधायक परिदृश्य में आये और बमुश्किल 30-40 नागरिक , पिछले 64 दिन की तकलीफों को लेकर, काफी दूर, थोड़ी बहुत नारे बाज़ी करते दिखाई पड़े थे...
लेकिन टिकैत ने कथित किसानों को पीटे जाने का झूठा वितंडा खड़ा कर दिया... दिखावटी रोना धोना शुरू कर दिया... यूपी पुलिस और सरकार दवाब में आ गई ! अस्वस्थ होने का भी नाटक किया.... बहरहाल मौज से टिकैत ने रात में खाना खाया, रात में नींद भी ली ! ढाक के वही तीन पात !
गाजीपुर में सेकुलर मीडिया लगातार रोते हुए टिकैत की बाइट शेयर कर रहा है !
गाजीपुर फ्लाईओवर देश का सबसे बड़ा और सबसे चौड़ा फ्लाईओवर है, दिल्ली की लाइफ लाइन है, पिछले 64 दिन से फ्लाईओवर के बीचोबीच सबसे ऊंचे स्थान पर कम से 50 मीटर चौड़ाई में टिकैत ने
अरे वो लालकिले में घुसे थे तो अपनी मर्जी से !
पर ये बताओ कि निकले किसकी मर्जी से ??
लालकिले को तहस नहस करके अपने घोड़ो (ट्रैक्टरों) पर सवार होकर, तलवार लहराते, लाठी भांजते, तिरंगे को पैरों तले रौंदते और खालिस्तान के जयकारे लगाते...वो हरामखोर देशद्रोही लालकिले से निकले कैसे ???
तुम्हारा आई टी सेल और तुम्हारे मंत्री और प्रवक्ता कह रहे हैं कि क्या एक और जलियांवाला होने देते ??
शर्म नहीं आयी इस सरकार को यह मूर्खता और कायरतापूर्ण बकवास दलील देते हुए ?!
अरे भीतरघातियों जलियांवाला बाग में राष्ट्र प्रेमी जुटे थे....आजादी के मतवाले जुटे थे।
यहां कौन सा राष्ट्र प्रेमी था लालकिले में...जो तुम इन गद्दार देशद्रोहियों की तुलना जलियांवाला बाग के वीर पुत्रों से कर रहे हो ??
अपनी नपुंसकता कब तक छुपाओगे तुम ???
नरेंद्र मोदी आपको जवाब देना पड़ेगा। इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा।
कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए यदि सुरक्षा बलों को लगाया जाता है तो उन्हें कम से कम आत्म रक्षा का अधिकार तो दिया ही जाना चाहिए।
वैकल्पिक वर्ण व्यवस्था में वैकल्पिक राजा और वैकल्पिक क्षत्रिय अपना धर्म निभा ही नहीं सकते।
देश और समाज की सुरक्षा का खतरा इन्हीं वैकल्पिक वर्णों से है।
वैकल्पिक ब्राम्हण - निशुल्क शिक्षा नहीं दे सकता।
वैकल्पिक क्षत्रिय - दूसरों की रक्षा की व्यवस्था नहीं कर सकता।
वैकल्पिक वणिक - स्वरोजगार के प्रकल्प नहीं विकसित कर सकता।
वैकल्पिक शूद्र - सेवा भाव से सेवा नहीं कर सकता। और न ही मैन्युफैक्चरिंग कर सकता है।
इन तीन व्यवस्थाओं से ही समाज आज भी चल रहा है - पूरे विश्व में।
नाम बदल देने से सत्य का स्वरूप नहीं बदल सकता।
जल को वाटर बोलने से उसके गुण धर्म में कोई परिवर्तन हो सकता है क्या?