सिर्फ दिन में 1 या 2 घंटे बैठ के किसी बुक / लैपटॉप या डायरी में नहीं लिखी जाती कहानी
सबसे पहले ज़हन में होती है, और अंत तक ज़हन में रहती है जब तक आखरी पन्ने पे लिखी आखरी लाइन का वो आखरी शब्द न लिखा जाय....
जब लिख नहीं रहे होते तब भी किरदार या कहानी या तो हमारे मन में ज़हन में सवाल कर रहे होते है या किसी अधूरे छोड़े संवाद को पूरा कर रहे होते हैं.
और इन सबका कोई एक फिक्स समय नहीं होता
यह टॉयलेट सीट पे भी ख्याल आता है,
सुबह वॉक पे निकलो तब भी...
कहानी और किरदार मन में चल रहे होते के जहाँ लिखना छोड़ा उसके आगे कैसे लेके जाना है.
या फिर शाम की चाय पीते पीते, खाना खाते खाते. यहाँ तक आधी रात को नींद खुलने पर भी
तब जाके कहीं ज़हन में सोची हुई कहानी
उसके किरदार उस तरह से पन्नो पर नज़र आते
जैसे सोचे जाते हैं. उसके बाद भी…
कहानी के लेखक को क्या चाहिए ? ( जो उसको रॉयल्टी के पे-चेक से भी ज्यादा इम्पोर्टेन्ट होता है ) वो है किसी पाठक द्वारा पढ़े जाना और नाही सिर्फ पढ़े जाना बल्कि जिस तरह से जिस नियत से लेखक ने कहानी लिखी उसी तरह से पाठक तक पहोचे.…
पढ़ने के बाद अभिप्राय , अभिप्राय का मतलब तारीफ़ ही नहीं , फीडबैक में सवाल भी हो सकते हैं, या फिर जो पाठक को नहीं अच्छा लगा वो भी उसमे वो कह सकता है.
मैं ये नहीं कहता सिर्फ मेरी कहानियां पढ़िए,
मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ के अगर आप कहानियां पढ़ते हो या पढ़ने का शौक है तो…
पढ़ने के बाद उस कहानी के बारे में अपना सुझाव या अपना जेनुइन फीडबैक उस लेखक या फिर पब्लिशर तक जरूर पहुचाय.
ये भी नहीं के ये दुनिया का सबसे मुश्किल काम है पर इतना आसान भी नहीं है जितना लोगो को लगता है.
उठते बैठते बस कहानी और उसके किरदार के साथ जीते हैं लेखक…
शायद इसलिए किसी लेखक ने कहा के
एक कहानी किसी भी लेखक के लिए किसी नए जन्मे शिशु से कम नहीं होती.
ऐसी ही कोई कहानी मैं लिख रहा हूँ, कोशिश कर रहा हूँ. आप सब की दुआएं साथ रही तो बहोत जल्द इस कहानी को आप सबके सामने प्रस्तुत करूँगा…
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Maa Aaj Khaane Mein
Kya Bana Rahe Ho ?
Ye line hum sab kehte rehte hai...puchhte rehte hai
Chahe bacha ho ya bada
Aap ho ya mein
School/college se aate hee
Ya office se phone karke
Yehi puchhte hai
Maa aaj khaane mein kya bana rahi ho...
aur Maa to Maa hai
Vo samj jaati hai...ki aaj humein kuch aur khaana hai
To vo kehti hai Jo tum kaho
Aur hum jatt se apni manpasand cheez kehte hai...
Aisa nahi hai ki maa ko hamari pasand malum nahi hoti hai
Bas us waqt humein kya khaane ki ichha hai vahi puchhti hai Maa..
Aur fir kya..
Maa lag jaati hai
Taiyariyo main
Chahe beta ho ya beti
Chhota ho ya bada
Sabki farmaisho ko pura karne mein
Maa ke liye dharam sankat kya hota hai pata hai...???
Ye nahi ki aapki fav dish banane me time lagega ya mehnat hai bahut...
na bilkul na