Thanks for liking this tweet thread so much. My inbox and mailbox got flooded with congratulatory messages. Some people also asked me to re-post the tweet in Hindi so that it reaches far and wide.

I think that's a great idea. So here it is :-)
ग्रेटा, मिआ और रिहाना एक अदृश्य शत्रु के वित्तपोषित प्रतिनिधि मात्र हैं जबकि वह अदृश्य शत्रु स्वयं वित्तपोषित नहीं है। इसकी शत्रुता इसके भय से उत्पन्न होती है। भय एक जागृत भारत का, भय प्राचीनकाल के भारतवर्ष का।

अब मैं इस सिद्धांत का विवरण करता हूँ।

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चलिये गुप्तवंश की अवधि में चलते हैं। भव्य भवनों और राजपथों से भरे और जन-कलरव से गुंजायमान एक से बढ़कर एक विशाल जनपद हैं। लोग धार्मिक हैं और विधि व्यवधान का अक्षरशः पालन करते हैं, राजकोष प्रचुर सम्पदा से युक्त है।

वहीं पश्चिम पूरी तरह से अराजकता में लिप्त है।
वराहमिहिर और आर्यभट्ट, ग्रह गतियों के सिद्धांतों का प्रतिपादन कर रहे हैं, कालिदास शकुंतला की कथा लिख रहे हैं। वात्स्यायन काम-कला और दैहिक सुखों का वर्णन अपने कामसूत्र में कर रहे हैं, सुश्रुत आयुर्वेद पर अपनी महान संहिता लिख रहे हैं।

पश्चिम अभी भी युद्ध में व्यस्त है।
आइए गुप्तयुग के पश्चात आए साम्राज्यों के पतन से होते हुए चलते हैं मध्यकालीन भारत में। अरब, अफगान और मंगोल भारत पर आक्रमण करते हैं और विभिन्न हिस्सों में अपने राज्य स्थापित करते हैं। इनमें से मुगल चिर काल तक रहते हैं। भारत का पतन प्रारम्भ होता है।

पश्चिम का उत्थान हो रहा है।
अनेक हिंदूओं का धर्मांतरण हो चुका है।वैदिक वर्ण व्यवस्था अपवित्र की जा चुकी है। अनेको मंदिर ध्वंस किए जा चुके हैं और लोगों को पथभ्रष्ट किया जा रहा है। परंतु अधिकांश हिन्दू संस्कृति का त्याग नहीं करते हैं। ये हिंदूओं की एक अनूठी उपलब्धि है।

पश्चिम एक उपनिवेशवादी शक्ति बन रहा है।
मराठा, जाट, राजपूत, सिख, अहोम, उत्तर के अन्य वंश और दक्षिण के राज्य मुग़लों को कभी भी पूर्णतया स्थापित नहीं होने देते। मुग़लों की शक्ति क्षीण हो रही है, उनका विस्तार स्थगित है। हिंदू पुनरुत्थान का समय आ चुका है।

पश्चिम सम्पूर्ण विश्व में उपनिवेश स्थापित कर चुका है।
हिंदू पुनरुत्थान की संक्षिप्त अवधि समाप्त होती है जब पश्चिम का पूर्व से मिलन होता है। भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश बन गया है। सांस्कृतिक विचलन का दूसरा अध्याय प्रारम्भ होता है। लेकिन इस बार यह जटिल है, क्योंकि तलवार और भालों का स्थान भत्तों और विशेषाधिकारों ने ले लिया है।
भारतीय शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों के लिए ‘बाबू’ उत्पादन प्रणाली बन गई है। धनी भारतीय अपनी संतानों को अध्ययन के लिए लंदन भेज रहे है। "द ग्रेट ब्रिटेन" में "जॉली गुड टाइम" बिताने के उपरांत बच्चे अपने निर्धन देश में पुनः लौटते हैं।

पश्चिम की युद्लोलुप प्रवृत्ति पुनः लौट आई है।
युद्ध सम्पूर्ण विश्व को लील लेने को अग्रसर है, अंग्रेजी बोलने वाले भारतीय बुद्धिजीवी, सैनिकों और धन के साथ अपने ब्रिटिश स्वामियों की सहायता करते हैं। भारतीय सैनिक विश्व के दूसरे छोर पर अंग्रेजों का युद्ध लड़ते हैं।

पश्चिम एक धधकता हुआ नरक है।
ब्रिटेन कठिनाई से प्राण बचाता है। भारतीय बुद्धिजीवी प्रसन्न हैं कि उनके स्वामियों ने युद्ध में विजयी हुए हैं। भारत का शोषण प्रारम्भ होता है, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम भी गतिमान है। गांधी अचानक देवपुरुष घोषित कर दिये जाते हैं।

पश्चिम में एक विचित्र शांति है।
गांधी भारतीय संघर्ष का नेतृत्व करते हैं, वे लक्ष्यों को बदलने में दक्ष हैं लेकिन लोग भेड़ की तरह उनका अनुसरण करते हैं। वे भारत को हिंसक प्रदर्शनों से दूर रख, ब्रिटेन को प्रसन्न रखते हैं। कई स्वतंत्रता सेनानी आते-जाते हैं, गांधी वहीं के वहीं रहते हैं।

पश्चिम पुनः उबल रहा है।
पुनः युद्ध छिड़ चुका है। ब्रिटिश उपनिवेशों को चलाने में असमर्थ हैं। भारत स्वतंत्र होता है। गांधी राष्ट्रपिता घोषित होते हैं। उनके शिष्य नेहरू, जो ब्रिटेन से शिक्षित एक बुद्धिजीवी हैं, वे भारत को अपने समाजवाद के साथ गर्त में धकेलना प्रारम्भ कर देते हैं।

पश्चिम धूल-धूसरित है।
अब सीधे चलते हैं 1991 में, भारत आर्थिक पतन के कगार पर खड़ा है। भारत के साथ स्वतंत्र होने वाला लगभग हर देश इससे आगे है। फिर एक शांत स्वभाव के वयोवृद्ध आते हैं। उनका नाम नरसिम्हा राव है। वे नेहरू की समाजवादी व्यवस्था को सदैव के लिए उखाड़ फेंकते हैं।

पश्चिम प्रगति का पर्याय है।
राव एक समृद्ध भारत का निर्माण करते हैं। इसके बाद वाजपेयी आते हैं जो राव के काम को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन यह राजनीतिक अनिश्चितताओं का युग है। प्रधानमंत्री का सिंहासन सभी के लिए उपलब्ध है।

पश्चिम भारत को सतर्क निगाहों से देख रहा है।
वाजपेयी पुनः आते हैं और भारत को स्वर्णिम काल में ले जाते हैं।भारतीय अब अधिक व्यय कर रहे हैं,अधिक यात्रा कर रहे हैं,बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आना रही हैं।आईटी क्रांति चरम पर है, भारतीयों ने अरबपतियों की सूची में सम्मिलित होना प्रारम्भ कर दिया है।

पश्चिम भारत को अपलक देख रहा है।
वाजपेयी पराजित होते हैं और इटली में पली बढ़ी नेहरू कुल की बहू देश चला रही है। वह भारत की व्यवस्था को चरमराने में तनिक भी समय नहीं लेती। शीघ्र ही, भारत दुनिया की पांच शक्तिहीन अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित हो जाता है।

पश्चिम का कोई अपना अब भारत पर शासन रहा है।
10 साल के कुशासन के बाद, वो एक चायवाले द्वारा परास्त होती है। नरेंद्र मोदी नामक एक युग-द्रष्टा आते हैं। ये व्यक्ति सभी से अलग हैं। वह बुद्धिजीवियों के साथ उठते बैठते नहीं, ना वो उनकी भाषा जानते हैं लेकिन लोगों से उसका संबंध घनिष्ठ है।

पश्चिम भ्रांत है।
मोदी पश्चिम से उत्पन्न भय को जानते है। वह उनके एनजीओ को बंद करा के उनके पंख कतर देते हैं। पीड़ा से पश्चिम कराह उठता है। मोदी को विदेशी प्रेस में भला बुरा कहा जाता है, परंतु मोदी कुछ और एनजीओ बंद कराते हैं। लोग हर्षित हैं।

कौन है ये मोदी? पश्चिम चीख रहा है।
भारत एक आकर्षक निवेश गंतव्य बन गया है। पिछले शासन के पापों को ‘स्वच्छ’ किया जा रहा है। कर से लेकर अभिज्ञान तक, सब कुछ मानकीकृत किया जा रहा है। वे सभी छिद्रों को बंद कर रहे हैं।

पश्चिम चकित है।
उन्हें दूसरा कार्यकाल मिलता है, इस बार वह एक के बाद एक समस्या हल कर रहे हैं और अंत में वे उस समस्या की ओर बढ़ते हैं जो भारत के लिए बड़ा शत्रु है।देश का धन कृषि ऋण माफी और सब्सिडी में व्यय हो जाता है जबकि किसानों की स्थिति दयनीय ही है।

अब ये क्या करेगा? पश्चिम की श्वास अटकी हैं।
वे कृषि कानून लेकर आते हैं। यह किसानों को अंधकार से बाहर निकालने और उन्हें शिक्षित और समृद्ध बनाने के लिए है। समृद्ध किसानों का राष्ट्र ही एक समृद्ध राष्ट्र बन सकता है।

यह हमारे एकाधिकार का अंत है, पश्चिम के हाथ पाँव फूल चुके हैं।
पश्चिम फिर से पूर्व से मिलता है। वह भारतीयों को भारतीयों के विरुद्ध करने के लिए हमारे समाज में उपस्थित अंतरों का उपयोग करता है। यदि भारत के किसान समृद्ध और शिक्षित हो जाते हैं, तो भारत पुनः विश्व गुरु बन जाएगा।

नहीं पश्चिम यह संकट नहीं मोल ले सकता।
ग्रेटा, मिआ और रिहाना एक अदृश्य शत्रु के वित्तपोषित प्रतिनिधि मात्र हैं जबकि वह अदृश्य शत्रु स्वयं वित्तपोषित नहीं है। इसकी शत्रुता इसके भय से उत्पन्न होती है। भय एक जागृत भारत का, प्राचीनकाल के भारतवर्ष का। अब बस एक ही प्रश्न है, क्या आप इसे पुनः सफल होने देंगे?

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7 Feb
So how dangerous is Joe Biden for India?

Short answer - very.

For long answer follow the thread:
About Trump first:

Donald Trump had made India the foundation stone of his “Indo-Pacific” policy which the democrats have again started calling “Asia Pacific”. Trump and PM Modi shared great personal rapport and both went the extra mile for each other.
Trump openly supported Hindus, talked in Hindi, attended a predominantly Hindu gathering first in Houston then in Motera, and openly criticised Islamic terrorism, an emotive issues for Hindus. It was just the push Hindus in America needed.
Read 21 tweets
4 Feb
Greta, Mia and Rihanna are paid foot soldiers of a faceless enemy but that faceless enemy itself isn’t paid. It does it out of fear. The fear of a truly awakened India, the Bharatvarsha of yore.

Let me explain how.

1/n
Let’s wind our clocks back to the Gupta ages. There are bustling cities with proper roads, drainage systems and every other facilities. People are religious and law abiding, state treasury is flowing with money.

The west at the same time is in utter chaos.
Varahamihira and Aryabhata, are writing about planetary motions, Kalidasa is writing the story of Shakuntala. Vatsyayana is writing the Kamasutra, a book about carnal pleasures and Susruta is writing his Samhita on Ayurveda.

West is still busy fighting.
Read 23 tweets
2 Feb
China had a simple method. Build new cities and then abandon them. New cities need cement, bricks, water, roads, electricity and a 100 other things. A new city leads to a chain of economic activities thereby pushing the GDP up. An investor sees a prosperous China.

Contd.
And he parks his money there, China gets fresh funds which it uses to recover the cost of the city and abandons it. So it got money for virtually doing nothing, and got to keep its GDP growth rate artificially up.

I’m not trying to prove how smart China is but...

Contd.
The lesson is that that building more is the sure shot way to push GDP up. It creates jobs, makes existing cities better and creates new cities. But we are not China, we don’t build to abandon.

But there is so much scope in India to build more anyway.

Contd...
Read 5 tweets
15 Jan
Stopped watching #Tandav after first two episodes. The takeaways from the first two episodes are:

- Shiv ji is upset because Shri Ram is getting popular
- Government is suppressing farmers’ protest
- Cops are killing Muslims after getting upar se aadesh
- UAPA is horrible

Contd
- Azadi song (Kanhaiya Kumar game) is almost patriotic
- A son has killed his father who is the sitting PM because he wants to be the PM
- A party’s IT Cell works like a hashtag factory
- No journalist helps farmers and students except for a Barkha lookalike

Contd
No it’s okay if you wish to spread propaganda, but where is the subtlety? This is so bloody in your face, this can sway only the ones on your side. What happened to the classic leftist artistry? Have you forgotten the art of brainwashing? How would you get new supporters?

Contd
Read 4 tweets
14 Jan
The A4 sheets that you own and don’t own (A thread)

Imagine you buy some A4 sheets from a stationary store. Let’s imagine that the stationary shop owner is a leftist, and you’re a right winger. You come home and use those A4 sheets to print some right wingy stuff.
Now here’s a question:

Can the shop owner storm into your place and snatch your sheets because he doesn’t agree with what you’re printing on the sheets you bought from his shop. What a stupid question right, of course he can’t.
You own the sheets, you can print whatever you want on those sheets and only law enforcement agencies can decide whether the stuff printed on the sheets is incendiary or not.
Read 7 tweets
23 Aug 20
#Bloomsbury reneging on its contract to publish the book on Delhi Riots 2020 is an example of how leftists never learn. I have an alternate take, follow the thread.
It’s a well known fact that leftists have rants, right has facts, leftists have soft power, right has money, leftists are agenda peddlers and right is reactionary and that’s why the Bloomsbury episode will backfire majorly.
Alright so someone had written a book about Delhi Riots. Fine. She got a publisher. Great. The book would have released, some people would have bought it and cursed the “ones” behind it. End of the story.
Read 9 tweets

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