फोर्ब्स मैगज़ीन के एक पत्रकार हैं निक मिलानोविक. अगस्त 2020 में इन्होंने एक आर्टिकल लिखा था जिसका शीर्षक था 'The U.S. Needs Banking-As-A-Public-Service'. इस आर्टिकल का लिंक मैं नीचे दे दूँगा, पर ये आर्टिकल आपसे ज़्यादा उन लोगों को पढ़ना चाहिए...
जिन्हें लगता है कि अमेरिका जैसे विकसित देश में प्राइवेट बैंक होने से बहुत तरक्की हुई है. उसी आर्टिकल से कुछ तथ्य आपके सामने रखना चाहता हूँ.
1. एक औसत अमेरिकन नागरिक की Per Capita Income भारत के नागरिक से कहीं ज़्यादा है. मतलब वहाँ का एक आम आदमी भी निजी बैंक में खाता खुलवा कर..
बैंकिंग सुविधाओं का लाभ ले सकता है. पर फेडरल रिज़र्व के अनुसार लगभग 55 मिलियन अमेरिकी वयस्क नागरिक या तो बैंकिंग सुविधाओं से दूर हैं या अंडरबैंकड हैं. ये कुल हाउसहोल्ड का 22% है. वजह? बैंकिंग सुविधाओं का अत्यधिक महँगा होना...
2. यूएस पोस्टल सर्विस ने 1910 में पोस्टल सेविंग सिस्टम के नाम से एक बैंक खोल था जिसमें कोई भी व्यक्ति मिनिमम 1$ से खाता खोल सकता था और 2500$ तक पैसा रख सकता था. उस बचत पर 2.5% ब्याज भी मिलता था. उस ज़माने में लोग अपनी जमापूँजी को या तो कारपेट के नीचे छुपा कर रखते थे या फिर घर पर.
इस अकेले बैंक ने लोगों की जमापूँजी को इन जगहों से निकाल कर अर्थव्यवस्था में शामिल करवाया. पर निजीकरण के धुर पक्षधर देश में 1967 में ये बैंक बंद कर दिया गया. वजह लॉस मेकिंग होना नहीं था. वजह थी सरकार का इस बैंक की तरफ ध्यान ना देना.....
3. एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में अमेरिकी बैंक्स को $12 बिलियन की कमाई हुई ओवरड्राफ्ट फीस से. इसमें से 84% फीस ग्राहकों के सबसे गरीब 9% लोगों से वसूल की गई. मोटा मोटा यूँ समझिए कि हर खाताधारक के ऊपर औसतन खर्चा आया $329 जबकि औसत जमापूँजी राशि थी $500...
4. 2011 में 'नो फीस' खातों (जैसे कि अपने यहाँ जनधन) की संख्या मात्र 39% ही रह गई जो 2009 तक 76% हुआ करती थी. निज़ी बैंक अपने सबसे प्रभावशाली ग्राहकों पर बढ़ती फीस का बोझ नहीं डाल सकते थे तो उन्होंने इसे अपने 'लो इनकम' ग्राहकों के सिर पर डालना शुरू कर दिया...
मजबूरन आज भी 55 मिलियन अमेरीकी नागरिक या तो सूदखोरों से पैसा उधार लेते हैं या फिर अपनी जमापूँजी को घर में रखने को बाध्य हैं. क्योंकि वो इतनी महंगी बैंकिंग सुविधाएं 'अफोर्ड' नहीं कर सकते. लो- इनकम वाले ग्राहकों को अत्यधिक महँगी सुविधाओं का बोझ अपने सर पर उठाना पड़ा...
5. आर्टिकल कहता है कि जैसे अमेरिकी जनता के पास 'राइट टू वोट' है, 'राइट टू एजुकेशन' है ठीक उसी प्रकार से अब समय आ गया है 'राइट टू फाइनेंसियल इंक्लूज़न' का. वही फाइनेंसियल इन्क्लूजन जिसका गुड़गान मोदी जी करते रहते हैं. भारत में ये सरकारी बैंकों के माध्यम से ही संभव हुआ था...
6. इसी आर्टिकल के हिसाब से 10 पॉइंट ऐसे दिए गए हैं जिसमें ये लिखा हुआ है कि एक सरकारी बैंक को कैसा होना चाहिए. मज़े की बात ये है कि अमेरिकी लोग जिस सरकारी बैंक की मांग कर रहे हैं, ठीक वैसे ही सरकारी बैंक भारत मे पहले से कार्य कर रहे हैं. दसों पॉइंट का मजमून ये है कि...
उस प्रस्तावित सरकारी बैंक को सिर्फ समाज के निचले तबके से आये ग्राहकों को सुविधा देने पर ध्यान देना होगा, प्रॉफिट कमाने पर नहीं. अमेरिका और हमारे देश की जनसँख्या, जीडीपी, पर कैपिटा इनकम इन सबको अगर जोड़ दिया जाए तो आपको निजीकरण के दूरगामी दुष्प्रभाव साफ साफ दिखाई पड़ेंगे..
Tejas Express - India's First Private Train is a Sham!!
This is going to be a long thread so read it with utmost patience and try to grab how things are getting worse within a short span of it's much fan fared launch.
The Tejas Express hit the tracks 4 October 2019 as India’s first private train.
While the infrastructure of the train, coaches etc, are owned by the IR, services like catering and cleaning are handled by firms through the railways’ subsidiary company IRCTC under the PPP model.
With its uniformed staff, promise of shorter travel time than the Shatabdi, and compensation for delays, the train spurred much excitement among passengers. They even fleeted pics like these to lure the passengers 👇
You pay more, both as a taxpayer and directly when they privatise public services. In such services, profits must be paid to shareholders, not reinvested in better services. And there is extra costs of creating and regulating an artificial market.
3. You can't hold private companies accountable
If a private company runs a service, they are not democratically accountable to you. You don't have a voice. There is very little transparency, public accountability or scrutiny.