हमारी ये कमी हमेशा से रही है कि हमने वैश्विक वास्तविकताओं को समय रहते नहीं समझा और न ही उस से निबटने के प्रबंध किए। एक समाज के तौर पर हमेशा अंतर्मुखी ही रहे हैं..और आज भी हम अपने शत्रुओं के डिजाइन्स को समझने तक से इनकार कर देते हैं क्योंकि हमारा कोई ग्लोबल व्यू है ही नहीं।
अरब में इस्लाम के उदय के साथ और अगले 50 60 साल में ही स्पेन से लेके फारस (ईरान) के गिर जाने के बाद ग्लोबल ट्रेड में बदलाव तो आये होंगे। और उस वक़्त तो सबसे बड़ी GDP हमीं थे, तो ऐसा संभव ही नहीं कि ट्रेड रुट पर किसी और का कब्जा हो जाये और हमको खबर ही न हो।
फारस को 16 साल में ही कब्जा लिया गया वहां के पारसी समुदाय के सूर्य मंदिर तोड़ दिये गये। और उन 16 सालों में वहां किस तरह की हिंसा रही होगी ऐसा ही नहीं सकता कि अफगानिस्तान की हिन्दू शाही किंगडम्स और बलोच सिंध एरिया में मौजूद राजाओं को पता न चला हो।
उसके बाद भी सिंध पर आक्रमण के दौरान हमारी तरफ से कोई संयुक्त मोर्चा लड़ने नहीं गया था। शायद हम हमेशा से ऐसे ही रहे हैं। गजनी, गौरी हज़ारों किलोमीटर अंदर आकर सोमनाथ, मथुरा लूट ले जाते रहे और हम आपस में ही खेत मेंडों की लड़ाई लड़ते रहे, क्योंकि हमारा कोई वर्ल्ड व्यू था ही नहीं।
बाबर जब भारत आया तो वो अपने साथ Gun Powder लेके आया और सोने की चिड़िया होने के बावजूद हम भाले और तलवारों से तोपों का मुकाबला करने पहुंचे थे। हमने ये भी जानना ठीक नहीं समझा कि वक़्त के साथ साथ युद्ध की टेक्नोलॉजी,हथियार,तरीके बदल रहे हैं। बाबर ये ओटोमन से सीख रहा था लेकिन हम नहीं।
यही हाल अंग्रेजों के समय हमारा रहा, पार्टीशन में भी हमीं मारे गए, मोपला से लेके डायरेक्ट एक्शन डे तक में हम बिछा दिए गए लेकिन एक बार हममें इतनी चेतना नहीं आयी कि बैठ के सोचें भी कि लगातार 1000 साल से ऐसा क्या हो रहा है कि हम पीछे धकेले जा रहे हैं। हालांकि बीच बीच मे अपवाद रहे।
1947 में हमने अपने लिए देश क्यों नहीं मांगा या हमारे बेहाफ़ पर हमारे लीडरों ने क्या नेगोशिएट किया वो तक हमने कभी नहीं पूछा। पाकिस्तान, बांग्लादेश में रह गए हिंदुओं का छोड़िए हमने कभी अपने ही देश में प्रताड़ित होने पर बैठ के मंथन तक नहीं किया कि आखिर ये सब हो कैसे रहा है।
अभी हालिया उदाहरण है कि दिल्ली दंगे में कैसे उनके एकतरफा अग्रेशन के बाद भी पूरी दुनिया मे बदनाम आप हुए और उन्होंने कैसे अपने कट्टरपंथियों को दुनिया के साथ साथ आपके देश में ही हीरो बना लिया। और आपको सोचने तक का समय न मिला कि दिल्ली दंगे आखिर हुए क्यों।
जब तक आप अपना वर्ल्ड व्यू नहीं बनाएंगे, दुनिया में अपनी हैसियत का असेसमेंट नहीं करेंगे और एक समाज के तौर पर Common Minimum Unity डेवेलोप नहीं करेंगे तब तक आप प्रताड़ित ही रहेंगे।
और ये भी है कि प्रताड़ित होने के बाद भी फ़ासिस्ट आपको ही लिखा जाएगा, क्योंकि आप लिख भी नहीं रहे हैं।
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Breaking India forces are eyeing to brand India and specially Hindus as Fascists. Lot of subtle propaganda has been happening for last 4-5 years and everything seems to be converging now. So far they are able to make noise however they couldn't convince World as of now.
And if the perception of Fascist is enforced in global lobbies we will witness lot of pressure on Corporates investing in India to withdraw from here which will result in Job loss as well. No wonder they ll have allies who don't want us as stable destination for investments.
One mistake here by our leadership will cost Hindus not just in economic terms but also in terms of Global soft power which we enjoy in each country we work in. This Soft power is actually the Chai, Yoga and IT image.
They are not after Modi, they are actually after us.
वैसे तो हमें पूरी उम्मीद है एजेंसी वहाँ तक पहुंच चुकी होंगी..पर थोड़ा ढंग से अगर सिर्फ इंटरनेट से उपलब्ध जानकारी को ही integrate करके देखें तो दिल्ली दंगे जो फरवरी में हुए थे उनकी timeline दिसम्बर में Anti CAA प्रोटेस्ट से भी पहले यानि की नवंबर 2019 तक जाती है।
एक खास ग्रुप नवंबर 2019 में टर्की जाता है बिजनेस मीटिंग अटेंड करने के बहाने से। कमाल ये भी है कि इनमें से किसी का ऐसा कोई खास बिजनेस भी नहीं है कि ये अचानक इंटरनेशनल expo अटेंड करने टर्की जाएं। और टर्की से वापस आते ही ये नेशनवाइड प्रोटेस्ट लांच कर देते हैं।
टर्की में नवंबर 2019 में कुछ और भी हुआ था क्या..चलिए एक हिंट ये कि नवंबर में ही टर्की ने कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के सपोर्ट में वोट किया था।
दूसरा हिंट ये कि नवम्बर में ही टर्की में भारत की एक प्रमुख पार्टी ने अपना ऑफिस खोला था जिसकी खबर जल्द ही दब गयी थी।
वो अब अचानक से तुर्की साम्राज्य पर गर्व करने लगेंगे..आप ब्रिगेडियर दलपत सिंह के नेतृत्व में जोधपुर/मैसूर घुड़सवारों द्वारा किया पिछली शताब्दी का सबसे Heroic Charge याद रखना.😊 #BattleOfHaifa
ब्रिगेडियर दलपत सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना ने अपने घोड़ों पर सवार होकर ओटोमन एम्पायर की मशीनगनों का सामना करते हुए सिर्फ अपने Raw Courage के दम पर 2000 साल से अपनी ही जमीन से निर्वासन झेल रहे यहूदियों के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र की नींव डालने का काम किया.
इस युद्ध में ब्रिगेडियर दलपत सिंह समेत 8 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए तथा 34 घायल हुए वहीँ ऑटोमन एम्पयार के असंख्य सैनिक इस युद्ध में मारे गए और २ जर्मन अफसर, २३ ऑटोमन अफसर, 664 अन्य अफसरों समेत 1350 सैनिक भारतीय सेना द्वारा बंदी बनाये गए.
इस लड़ाई में आप अकेले हैं. आपके सामने एक व्यवस्थित, trained और फायनेंशिअली सपोर्टेड गिरोह है. आप कैपबिलिटी में भले ही उनसे कितने अच्छे क्यों न हो, उनके झूठों और गालियों को तुरंत पकड़ने की क्षमता आपके अंदर क्यों न हो, पर उनके जैसा कोर्डिनेशन उन जैसी पहुँच आपके पास नहीं है.
आपकी ट्विटर की छोटी सी दुनिया में ही आपस में इतना विरोधाभास है और आप लड़ रहे हैं उनसे जो ऑनलाइन/ऑफलाइन एक साथ हैं. वो आपकी एक गलती के इंतजार में है. नंबर हर किसी का आना है आज नहीं तो कल. .
और जो हुआ है वो किसी ट्वीट के चलते हुआ है आप इस ग़लतफ़हमी को भी दूर कर लीजिये..उनका निशाना उनके नरेटिव की धज्जीयां उड़ाने वाले लोग हैं. अर्नब ने तो कोई ट्वीट नहीं किया था..सुधीर चौधरी ने किसी महिला के बारे में कुछ भी नहीं कहा था..
वो यहां बैठे बैठे दूसरे देशों में आपके नागरिकों की नौकरियां खा लेते हैं..यहीं बैठे भगवा झंडे बैन करवा देते हैं..ज़ाकिर नाइक मलेशिया में बैठ अरबों से चुगली करने का आईडिया देता है..आपकी नाक के नीचे हज़ारों पढ़े लिखे लोग आपके देश के खिलाफ विश्व में माहौल बनाने में जुट जाते हैं. 1/5
हर दूसरे दिन किसी न किसी की हत्या की खबर आती रहती है जो सांप्रदायिक सौहार्द के चलते दबा दी जाती है. वो देश के सैनिकों की शहादत पर खुश होते हैं. और हमारा सिस्टम क्या करता है? 2/5
पाकिस्तान ने सपना देखा था डेथ बाई थाउजेंड कट्स का..वो न सिर्फ कट लगा चुके हैं..बल्कि उन घावों पर नमक छिड़कने के लिए भी उन्होंने हमारे देश के बुद्धजीवी समाज को पेरोल पे ले रखा है. दिखता सबको है..करता कोई कुछ नहीं... 3/5
पाकिस्तान ने शेखों के नकली हैंडल बनाये..२,४ बिग बॉस प्रतियोगी टाइप अरबों को अपने पे-रोल पे लिया और बहुत से भारतीय जुम्मन लग गए अरब देशों में नौकरी कर रहे भारतीयों को टारगेट करने में.
ये क्रोनोलॉजी आपको समझनी होगी..
ये अनपढ़ जुम्मन नहीं थे...ये वो पढ़े लिखे जुम्मन थे जिन्हें हमारी सरकारों से स्कालरशिप मिली...पढ़ने का बराबर हक़ मिला..उसके मन में इतनी नफरत कि वो अपनी फ्रेंडलिस्ट में मौजूद अपने भारतीय दोस्त की ही पोस्ट अरब देशों में रिपोर्ट कर उसकी नौकरी खाने से नहीं हिचक रहे.
कुछ २,४ वेबसाइटस में आर्टिकल आये...२,४ नौकरियां गयीं...बस ये सब हासिल करने कि लिए इन्होने ISI से लेके OIC तक भारत के खिलाफ ट्वीट, नकली वीडियो शेयर करने जैसे देशविरोधी काम कर दिए.
ये डेस्परेशन क्या फर्टाइल ग्राउंड नहीं है देश विरोधी गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर भाग लेने का?