ओ भारत की भूमि वन्दिनी! ओ जंजीरोंवाली!
तेरी ही क्या कुक्षि फाड़ कर जन्मी थी वैशाली?

वैशाली! इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का,
वैशाली! अतीत गह्वर में गुंजन तलवारों का।

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वैशाली! जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता,
जिसे ढूँढता देश आज उस प्रजातंत्र की माता।

रुको, एक क्षण पथिक! यहाँ मिट्टी को शीश नवाओ,
राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ।

डूबा है दिनमान, इसी खॅंडहर में डूबी राका,
छिपी हुई है यहीं कहीं धूलों में राजपताका।
ढूँढो उसे, जगाओ उनको जिनकी ध्वजा गिरी है;
जिनके सो जाने से सिर पर काली घटा घिरी है।

कहो, जगाती है उनको वन्दिनी बेड़ियोंवाली,
नहीं उठे वे तो न बसेगी किसी तरह वैशाली।

फिर आते जागरण-गीत टकरा अतीत-गह्वर से,
उठती है आवाज एक वैशाली के खॅंडहर से।
करना हो साकार स्वप्न को तो बलिदान चढ़ाओ,
ज्योति चाहते हो तो पहले अपनी शिखा जलाओ।

जिस दिन एक ज्वलन्त वीर तुम में से बढ़ आयेगा,
एक-एक कण इस खॅंडहर का जीवित हो जायेगा।

किसी जागरण की प्रत्याशा में हम पड़े हुए हैं,
लिच्छवि नहीं मरे, जीवित मानव ही मरे हुए हैं।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने यह पंक्तियां खुद अभिषेक पुष्करणी के सम्मान में रची थी। जिसके जल के लिए कभी दो राष्ट्रों में युद्ध हुआ था। आज भी यहां सुनसान रात्रि में एक तरफ तलवारों की झनझनाहट गूंजती है तो दूसरी तरफ चूड़ियों की खनक और घुंघरू की आवाज।
वैशाली की हृदयस्थली यह तालाब जिसके जल के लिए मानव क्या कभी पक्षी तक तरसते थे। इसके एक तरफ खड़ा है विश्व शांति स्तूप तो दूसरे किनारे स्थित है वह पवित्र स्थल जहां से खुदाई में भगवान बुद्ध का पवित्र अस्थि कलश मिला था।
यही वह पवित्र पुष्करणी है जिसके जल से लिच्छवी गणराज्य के राजकुमारों का जलाभिषेक होता था। दुनिया को अहिंसा एवं शांति का संदेश देने वाली गणतंत्र की आदी भूमि की यह हृदय स्थली अपने सीने में न जाने कितने है राज छिपाये है। आज अपने उद्धार के लिए किसी राम की तलाश में है।
राजनीतिक एवं प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहे इस स्थल पर फिलहाल अवारा कुत्तों, पर्यटकों द्वारा खाकर फेके गये कचरे, कपड़ा धोते लोग, स्नान करते मवेशी, मछली का शिकार करते मछुआरे एवं भीख मांगते बच्चे दिखाई देते हैं।
कितनी ही सलतनतें बदल गयीं लेकिन नहीं बदली इस वैशाली की भाग्य रेखा। जहां कभी आम्र मंजरियों एवं महुए की मस्त बयार में परी लोक की कथा सामान आम्रपाली के रूप यौवन के सामने मगध सम्राट भी नतमस्तक हो गये थे। वहीं वैशाली आज खुद का अस्तित्व तलाश रही है।

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15 May
The Vaishali Dialogues is an initiative by the youths of Vaishali to bring back its glory and make the golden historic hymns echo to this world.

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Vaishali, situated in Vaishali district in Bihar, is believed to be the world’s first republic and is currently an archaeological site in India. Vaishali derives its name from son of Ikshwaku queen Alambusha, King Vishala, whose heroic deeds find a reference in the Mahabharata.
Various references to Vaishali can be traced in texts of both Jainism and Buddhism. Vaishali was established in 6th century BCE as a republic, i.e., before the birth of Gautam Buddha, thereby making it the world’s first republic.
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