हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भूमि (संशोधन) दबकर रह गया। यह मसला सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ विपक्षी कांग्रेस के लिए बेहद काम का हो सकता था,लेकिन कांग्रेस ने अपने पूरे कैंपेन में इसका जिक्र तक नहीं किया। कारण है बारी-बारी सत्ता संभालने की चाहत और साझा हित। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
6 दिसंबर 2018 को जब विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने यह संशोधन विधेयक पेश किया तो कांग्रेस ने ‘मित्र विपक्ष’ की भूमिका निभाते हुए इसे आराम से पास होने दिया।
नए संशोधन के जरिए राज्य सरकार ने अब तक चले आ रहे कानून में++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
धारा 143-क और धारा-154 (2) जोड़ते हुए पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा खत्म कर दी
राज्य में कृषि योग्य जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा 12.5 एकड़ थी और इसे वही व्यक्ति खरीद सकता था जो सितंबर, 2003 से पहले तक यहां जमीन का खातेदार रहा हो। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
सरकार ने उद्योग के नाम पर कितनी भी जमीन खरीदने की छूट दे दी है और कृषि भूमि के गैर-कृषि उपयोग के नियम भी शिथिल कर दिए हैं।
उत्तराखंड के पहाड़ों में कुल 54 लाख हेक्टेयर जमीन बताई जाती है। इसमें लगभग 34 लाख हेक्टेयर वन विभाग के अधीन है। ++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
10 लाख हेक्टेयर बेनाप/वैरान जमीन है जिस पर 1893 के रक्षित भूमि कानून के तहत किसी का अधिकार नहीं है।
पहाड़ की ग्रामीण जनता अंग्रेजों के जमाने से ही मांग करती आई है कि इस रक्षित भूमि पर उन्हें पंचायती व सामुदायिक कार्यों
आगे बढ़ाने की इजाजत दी जाए।+ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
अंग्रेजों ने तो फिर भी छिटपुट अधिकार दिए थे, मगर आजादी के बाद 1960 में उत्तर प्रदेश सरकार ने पर्वतीय जिलों के लिए अलग से उत्तराखंड जमींदारी विनाश और भूमि सुधार कानून (कुजा ऐक्ट) बनाकर बेनाप भूमि पर से पंचायतों के सारे अधिकार छीन लिए। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
यह भी थोप दिया कि सामुदायिक प्रयोजनों जैसे- स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, डाकघर, क्रीड़ास्थल, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा संस्थान, पंचायत भवन, सड़क आदि के लिए किसानों को अपनी जमीन निशुल्क सरकार को देनी होगी। +++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी यहां की सरकारों ने इस कानून में परिवर्तन करना आवश्यक नहीं समझा। उलटे वे यहां की बची-खुची कृषि भूमि के बारे में भू-माफियाओं व बिल्डरों के हित में नए-नए भू-अध्यादेश लाती रहीं।+++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
1823 में पहले बंदोबस्त के समय उत्तराखंड के पर्वतीय भू-भाग में जो कृषि योग्य जमीन 18 प्रतिशत थी, वह आज सिर्फ चार प्रतिशत रह गई है।+++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
सरकार ने हालांकि विधेयक में यह प्रावधान किया है कि भूमि को सिर्फ उद्योग स्थापित करने के लिए खरीदा जा सकता है और शर्तों के उल्लंघन की सूरत में क्रय की गई जमीन राज्य सरकार को हस्तांतरित हो जाएगी। +++ #उत्तराखण्ड_मांगे_भू_कानून
लेकिन सरकार की नई पर्यटन नीति में पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया गया है और होटल, रिजॉर्ट, रेस्टोरेंट, इको-लाउंज, पार्किंग स्थल, मनोरंजन पार्क, एडवेंचर, योगकेंद्र, आरोग्य केंद्र, कन्वेंशन सेंटर, स्पा, आयुर्वेद, +++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
प्राकृतिक चिकित्सा और हस्तशिल्प आदि कुल 28 गतिविधियों को पर्यटन की परिभाषा में शामिल कर दिया गया है। इतना ही नहीं चिकित्सा, स्वास्थ्य और शिक्षा भी ‘औद्योगिक प्रयोजन’ में शामिल हैं।+++
हिमालयी प्रदेशों में उत्तराखंड इकलौता राज्य है, जहां बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीद पर कोई बंदिश आज की तारीख में नहीं है। ऐसे में यहां के नए भूमि संशोधनों को देश की सामरिक चिंता से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए। ++*
यहां के मलारी, मिलम, मुनस्यारी, धारचूला, लाता, माणा और गंगोत्री घाटी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सीमा चीन से लगी है। औद्योगिक प्रयोजन के नाम पर सीमावर्ती क्षेत्रों में जमीन खरीदने की छूट सामरिक सुरक्षा के लिहाज से जोखिम है +++
इसके अलावा पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिहाज से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड के पहाड़ों में जमीन की खुली सौदेबाजी निकट भविष्य में खतरों से भरे असंतुलन का भी सबब बन सकती है।++*
पहाड़ी है हम,हमारे हर घर से कोई ना कोई सेना मै है ओर देश ओर देशवासी हमारे लिए सबसे पहले है
हमसे ज्यादा इस बात को कोई अच्छे से नहीं समझ सकता
पहला 21 दिन का लॉकडाउन पूरा होने के बाद भी आपने बाहर युवाओं के लिए कोई हेल्प अरेंज नहीं करी, #पहाड़ी_सेना_4_यूके
हमें रातों में डीटीसी की बसों में भर कर आनंद विहार छोड़ दिया गया
कितने बच्चे,बुजुर्ग,महिला, पैदल भूखे प्यासे उत्तराखंड पहुंचे आपने उनके बारे मै कुछ नहीं कहा,
ना सोचा की वह कहा है क्या कर रहे है
कैसे रह रहे है,क्या खा रहे है, उनके छोटे बच्चो के क्या हाल है? #पहाड़ी_सेना_4_यूके
नए नवेले मुख्यमंत्रियों से भी आप कुछ नहीं शिख रहे है, 50 लाख के हेल्प की कहा था आपने
वह भी पीरूल के प्लांट, डबल हेंंप के खेती की तरह गायब हो गया,
कैसे हेल्प मिलेगी, कब मिलेगी, कितने दिन में मिलेगे
कुछ पता नहीं है