‘’मैंने एक दस साल के लड़के को आते देखा। वो एक छोटे बच्चे को पीठ पर लादे हुए था। उन दिनों जापान में अपने छोटे भाई-बहनों को खिलाने के लिए अक्सर बच्चे ऐसा करते ही थे,लेकिन ये लड़का अलग था।वो लड़का यहां एक अहम वजह से आया था।उसने जूते नहीं पहने थे।चेहरा एकदम सख्त था।उसकी पीठ पर लदे
बच्चे का सिर पीछे की तरफ लुढ़का था मानो गहरी नींद में हो।लड़का उस जगह पर पांच से दस मिनट तक खड़ा रहा।इसके बाद सफेद मास्क पहने कुछ आदमी उसकी तरफ बढ़े और चुपचाप उस रस्सी को खोल दिया जिसके सहारे बच्चा लड़के की पीठ से टिका था।मैंने तभी ध्यान दिया कि बच्चा पहले से ही मरा हुआ था।उन
आदमियों ने निर्जीव शरीर को आग के हवाले कर दिया।लड़का बिना हिले सीधा खड़ा होकर लपटें देखता रहा।वो अपने निचले होंठ को इतनी बुरी तरह काट रहा था कि खून दिखाई देने लगा। लपटें ऐसे धीमी पड़ने लगी जैसे छिपता सूरज मद्धम पड़ने लगता है।लड़का मुड़ा और चुपचाप धीरे धीरे चला गया।‘’
जो तस्वीर
आपने देखी ये उसी की कहानी है।कहानी बतानेवाले थे जो ओ डोनल।डोनल को अमेरिकी सेना ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान भेजा था ताकि जाकर कैमरे में उस विभीषिका को कैद कर सकें जिसे खुद अमेरिका ने फैलाया था।तस्वीर को डोनल ने नागासाकी में खींचा था।साल 1945 रहा होगा,क्योंकि डोनल ने सात महीनों
तक पूरे पश्चिमी जापान में घूमकर विनाशलीला को तस्वीरों में कैद किया था।इस दौरान उनकी तस्वीरों में मानव इतिहास का सबसे भयावह और दर्दनाक दौर कैद हुआ था।लाश, घायल लोग, अनाथ बच्चे, बेघर परिवार.. चारों तरफ जापान में सिर्फ यही था।
सालों बाद जो ओ डोनल से एक जापानी पत्रकार ने इंटरव्यू
लिया था। तब उन्होंने इस तस्वीर की जो कहानी बयां की थी वही मैंने ऊपर लिखी है।
1988 में आई जापानी फिल्म ‘ग्रेव ऑफ द फायरफ्लाइज़’ में ऐसी ही कहानी फिल्माई गई थी।फिल्म एक जवान भाई और उसकी छोटी बहन के बारे में थी जो विश्वयुद्ध में अपनी जान बचाने का कड़ा संघर्ष करते हैं। #इतिइतिहास
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अपने बेटे को बुरी तरह डांटने के बाद गहरी आत्मग्लानि से भरे हुए डबल्यू लिविंगस्टन लारनेड यह पत्र हर पिता को पढ़ना चाहिए-
सुनो बेटे ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। तुम गहरी नींद में सो रहे हो। तुम्हारा नन्हा सा हाथ तुम्हारे नाजुक गाल के नीचे दबा है और तुम्हारे पसीना-पसीना ललाट
पर घुंघराले बाल बिखरे हुए हैं। मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूं, अकेला। अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लाइब्रेरी में अखबार पढ़ रहा था, तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ। इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूं किसी अपराधी की तरह।
जिन बातों के बारे में मैं सोच रहा था, वे ये
है बेटे ।
मैं आज तुम पर बहुत नाराज हुआ। जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तब मैंने तुम्हें खूब डांटा ...तुमने तौलिये के बजाए पर्दे से हाथ पोंछ लिए थे। तुम्हारे जूते गंदे थे इस बात पर भी मैंने तुम्हें कोसा। तुमने फर्श पर इधर-उधर चीजें फेंक रखी थी.. इस पर मैंने तुम्हें भला
आज भारतीय राजनीति के दो विपरीत ध्रुवों की उस मुख़्तसर सी मुलाकात पर बात करने का सही मौका है जो 124 साल पहले हुई थी।मुलाकात की जगह उसी मुल्क की राजधानी थी जिसके साम्राज्य में सूरज ना छिपने की कहावत चर्चा पाई थी।
एक था 37 साल का वो वकील जिसे लोग एमके गांधी के नाम से जानते थे।उसने
दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के बीच नेतृत्व जमा लिया था।सरकार से बातें मनवाने का वो तरीका भी खोज लिया था जिसे पूरा भारत महज़ एक दशक बाद अपनाने वाला था।
दूसरा था 23 साल का नौजवान जिसका नाम वीडी सावरकर था। तीन महीने पहले उसने गांधी की ही तरह वकालत के लिए लंदन में दाखिला लिया था। गांधी
के शांतिपूर्ण और दिन के उजाले में संपन्न होने वाले अहिंसक आंदोलनों के ठीक उलट वो गुप्त संगठन और हथियारों के बल पर दमनकारी सत्ता को उखाड़ फेंकने का सपना देखता था।यही वजह थी कि जहां उसके गुरू का नाम बालगंगाधर तिलक था वहीं भविष्य में गांधी ने राजनीतिक गुरू के तौर पर गोपालकृष्ण गोखले