आज़ाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारी काशी के एक मोहल्ले में एक उजाड़ से घर मे रहते थे। नाम था कल्याण आश्रम। आवारा लड़को की तरह गाना बजाना काम था। बाहर के कमरे में वाद्य यंत्र बिखरे। कोई भांप नही सकता था कि यहाँ क्रांतिकारी रहते है। अंदर के कमरे में क्रांतिकारियों की मीटिंग होती थी..
दो डकैतियां असफल हो चुकी थी। धन की जरूरत थी। सब चिन्तित की बिना धन के गतिविधियों को अंजाम कैसे दिया जाएगा। इसी बीच रामकृष्ण खत्री जो सन्यासी के वेश में रहते थे ने ज्यादा पैसे पाने का एक आइडिया बताया। उन्होंने बताया कि गाजीपुर का एक महंत जिसने बहुतपैसे इकट्ठा किये है मरनेवाला...
है। उसे एक योग्यशिष्य की तलाश है जिसे वह अपनी गद्दी और संपत्ति देकर मर सके। सबको आइडिया भा गया। निर्णय हुआ आज़ाद शिष्य बनेंगे।आज़ाद को यह पसंद न था। उन्हें लगा यह उस महात्मा के साथ धोखा है। बिस्मिल ने समझाया। कि पैसा तो हम नहीं तो कोई और ले ही लेगा। और कौन हम गलत कार्य कर रहे...
देश के लिये ही तो लड़ रहे। आख़िर आज़ाद मान गए और गाजीपुर गए। महंत इनके कद काठी, भाषा और चमकते ललाट से प्रभावित हुआ। अपना शिष्य बना लिया। आज़ाद वहाँ रहने लगे। लेकिन जिसने देश के लिए घर-बार सब त्याग दिया हो वह एक आश्रम में कब तक कैद रहे और गुरु की सेवा करे। उन्हें तो मातृभूमि की...
सेवा करनी थी। कई दिन बीते। महंत ठीक हो गया। आज़ाद को लगा अबतो ये मरेगा नही मैं कहाँ फंसगया।बनारस दोस्तो को पत्र लिखा। महंत दिनबदिन मोटा होता जारहा। धनकी कोई और व्यवस्था की जाए। पत्र मन्मथनाथ को मिला। दो क्रांतिकारी गाजीपुर गए। आश्रम देखा तो चकित हुए। क्यों न इसे अड्डा बनाया जाय..
खैर क्रांतिकारी सब आश्रम में घूमही रहेथे कि आज़ाद वहां सन्यासी के वेश में आगए।बातचीत हुई। अंतमे आज़ाद ने कहा यहाँ से पिंड छुड़ाओ। आज़ाद उखड़े उखड़े रहते। महंत ने कईबार पूंछा पर जवाब इधर उधर देके टाल दिये।और फिर एकदिन रातको आश्रम से निकल लिए।धनपाने की ये युक्तिभी असफल रही।#आज़ाद

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27 Jun
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