जिस पर सुश्रुतसंहिता नामक ग्रँथ भी है सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद एवं शल्यचिकित्सा का प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब-ए-सुस्रुद' नाम से अनुवाद हुआ था
आयुर्वेद भारतीय चिकित्सा ज्ञान और शल्य चिकित्सा का खजाना है यह "ज्ञान भारद्वाज, अत्रेय, अग्निकाया, चरक, धन्वंतरि, सुश्रुत और कई अन्य जैसे प्राचीन काल के महान ब्राह्मण ऋषियों की ओर से दुनिया को एक उपहार है वास्तव में यह दुनिया को भारत का एक शाश्वत उपहार है।
ऋग्वेद के छंदों में उल्लेख है कि एक महिला योद्धा जिसे राजा खेला की रानी "विशपाल" कहा जाता था अश्विनी चिकित्सकों द्वारा एक कृत्रिम लोहे के पैर के साथ फिट किया गया था जब उसने एक युद्ध में अपना पैर खो दिया था इन चिकित्सकों को अगले श्लोक में नेत्र प्रत्यारोपण के लिए सराहा गया।
भारतीयों ने सदियों पहले सर्जरी का बीड़ा उठाया था, सुश्रुत (500 ईसा पूर्व) दुनिया के सबसे पहले शुरुआती सर्जन थे। उन्होंने धन्वंतरि (भगवान विष्णु माने जाते हैं) से शल्य चिकित्सा का कौशल सीखा और शल्य चिकित्सा और आयुर्वेद पर "सुश्रुत संहिता" नामक एक ग्रंथ लिखा,
जो समय की कसौटी पर खरा उतरा था और अब भी उसका पालन किया जा रहा है।
अपने पाठ में उन्होंने शल्य चिकित्सा के तरीकों को आठ भागों में विभाजित किया था: 1. छेद्य-काटना 2. लेकब्य अलग करना 3. विद्या- शरीर से जहरीली वस्तुओं को निकालना। 4. ईश्य- रोग के कारण का पता लगाने के लिए रक्त केशिकाओं की जांच करना 5. अबर्य क्रिया- शरीर में हानिकारक तत्वों के
उत्पादन को समाप्त करना। 6. विसरादर्य- शरीर से पानी निकालना 7. सीरा-सूटिंग 8. बेदब्य क्रिया- छेद बनाना और सर्जरी करना। सुश्रुत संहिता में हमें सर्जरी के उन्नत स्तर का उल्लेख मिलता है, प्लास्टिक सर्जरी ज्यादातर रेनोप्लास्टी। सिजेरियन ऑपरेशन के बारे में कई संदर्भ हैं।
भारतीयों ने न केवल सर्जरी की, बल्कि शवों को विच्छेदित करके मानव शरीर रचना का भी अध्ययन किया।
सुश्रुत संहिता में, हम शवों को विच्छेदन के लिए संरक्षित करने के कई तरीके पाते हैं। सुश्रुत ने अपने ग्रंथ में लगभग 125 शल्य चिकित्सा उपकरणों का उल्लेख किया है।
भोज प्रबंध (९२७ ईस्वी) में, यह उल्लेख किया गया था कि राजा भोज ने मस्तिष्क से ट्यूमर को निकालने के लिए एक शल्य चिकित्सा उपचार किया था। जब सर्जरी की जा रही थी तब राजा को "समोहिनी" नामक संज्ञाहरण दिया गया था।
आयुर्वेदिक ज्ञान उपचार में अंतिम उपाय के रूप में सर्जरी को अपनाता है, लेकिन यह ज्यादातर इलाज से रोकथाम पर केंद्रित है, आज पश्चिमी दुनिया इसकी क्षमता को समझ गई है और आयुर्वेदिक तकनीक के बाद पागल हो गई है।
माधव के "निदान शास्त्र" में मानव हावभाव और शरीर से निकलने वाली गंध को देखकर विभिन्न रोगों का निदान होता है।
ब्राह्मणों का ज्ञान हमेशा मानव कल्याण के लिए ही रहा
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प्रश्न = हम तारे देखते हैं तो असल में सैकड़ों वर्ष पूर्व का समय देख रहे होते हैं, तो नक्षत्र गणना के आधार पर भविष्य कैसे बताया जाता है ?
ध्यान से पढ़िए । दृग तुल्य अर्थात जो देखो केवल उसी पर विश्वास करो, ये हमारे वैदिक ज्योतिष का मूल मंत्र है!
21 दिसंबर 2020 के दिन सायद आपने अख़बारों में पढ़ा होगा, टीवी में देखा होगा की 400 वर्ष बाद एक दुर्लभ खगोलीय घटना होने जा रही है! गुरु और शनि एक दूसरे के सबसे निकट आने जा रहे है! इन गुरु-शनि की युति के चित्र भी टीवी अखबारों में आपने देखे होंगे
या आपमे से कुछ ने तो टेलिस्कोप के द्वारा सजीव देखा होगा।
अब क्योकि ज्यादातर लोग ज्योतिष के बारे में अनभिज्ञ है, तो आपकी सुविधार्थ 21 दिसंबर के दिन का ज्योतिषीय गणित आकाशीय नक्शा (कुण्डली) देखिए
56 साल की उम्र में देहांत : अरबपति स्टीव जॉब्स के मृत्यु से पहले आखिरी शब्दः..
▫️मैं व्यापार जगत में सफलता के शिखर पर पहुंच गया हूं.दूसरों की नज़र में मेरा जीवन एक उपलब्धि है. हालाँकि, काम के अलावा, मुझे कोई खुशी नहीं थी. धन बस एक सच्चाई है, जिसका मैं आदी हो गया था.
▫️इस क्षण में अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए और अपने पूरे जीवन को याद करते हुए, मुझे एहसास होता है कि जिस पहचान और धन पर मुझे इतना गर्व था वह मृत्यु के सामने फीकी और महत्वहीन हो गई है.
आप अपनी कार चलाने या पैसे कमाने के लिए किसी को काम पर रख सकते हैं.लेकिन आप किसी को बीमारी सहने और मरने के लिए नहीं रख सकते.
▫️खोई हुई भौतिक वस्तुएं मिल सकती हैं, लेकिन एक चीज़ है जो खो जाने पर कभी नहीं मिलती- "ज़िंदगी."
सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली।
सोने का हिरन बाद में मारीच निकला।
भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला।
लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे। हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की
मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः
किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे।
प्रभु श्री राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का
प्रश्न = इन्द्र कौन थे उन्होंने ऐसी कौन सी दुनिया बसाई जो स्वर्ग कहलाई ?
इंद्र क्या है :— इंद्र एक पद का नाम है, इंद्र देवताओं पर शासन करते है और अमरावती उनकी राजधानी है। अमरावती को ही हमारे धर्म में स्वर्ग कहा गया है। प्रत्येक मनवंतर का एक इंद्र होता है।
वर्तमान में जिस इंद्र का शासन चल रहा है उनका नाम है — पुरंदर । पुरंदर से पहले 5 इंद्रों ने स्वर्ग पर शासन किया था जिनके नाम हैं— यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु और मनोजव।
पुरंदर के बाद बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि इंद्र पद पर बैठेंगे।
इंद्र पद से जुड़ी कुछ जानकारी := आज के समय के इंद्र का नाम पुरंदर है, इनकी मुख्य पटरानी शचि हैं। शचि के अलावा इनकी 32 रानियां और हैं, इंद्र के पुरी का नाम अमरावती है। इंद्र के बगीचे का नाम नंदन वन है जहां दिव्य कल्पवृक्ष है, इनकी जो सभा होती है उसका नाम सुधर्मा है।