#RSS, संस्था कैसे व क्यों बनी..? #खिलाफ़त_आंदोलन की सच्चाई
काँग्रेस_के_कुकर्म😠😡😨😱
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आखिर RSS की स्थापना क्यों हुई.?
बड़ी मेहनत व इतिहास को छान छानकर सच्चाई सामने आती है.. अतः आप सभी राष्ट्रवादियों एवं सनातनियों से
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विनती है कि कृप्या अपना व अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए ऐसी पोस्ट को सँकल्प के साथ अधिक से अधिक ग्रुपों में शेयर/फारवर्ड करते रहें ।
धैर्य से पहले इस प्रश्न का पूरा उत्तर पढ़िए..औऱ जानिए कैसे गुरु गोविंद सिंह जी
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महाराज एवं साहिबजादों के मुग़ल हत्यारोंके वंशजों की कौम के बढ़ते अत्याचारों व आतंक के विरुद्ध भारत में यह आवश्यक था ।
संसद में मोदी जी ने हामिद मियां पर तंज कसते हुए कहा था कि आपके परिवार के लोगों ने खिलाफत आंदोलन में भाग लिया था,
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जिस पर हामिद मियां खींसे निपोरते रह गए !
तो क्या था यह खिलाफत आंदोलन..??
जिसे सुनते ही हामिद मियां और कांग्रेस असहज हो उठी थी...??
जानने के लिए पूरी पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़ें व औरों को पढ़ाने के लिए इसे शेयर अवश्य करें....
"खिलाफत"
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जानने से पहले आइए पहले जरा "खलीफा" को जान लें....खलीफा एक #अरबी शब्द है जिसे अंग्रेज़ी में Caliph (खलीफ) या अरबी भाषा मे Khalifah (खलीफा) कहा जाता है !
तो कौन होता है खलीफा...??
खलीफा मुसलमानों का वह धार्मिक शासक (सुल्तान) होता है,
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जिसे मुसलमान #"मुहम्मद साहब का वारिस" या Successor मानते हैं ! खलीफा का काम होता है युद्ध कर के पूरे विश्व पर इस्लाम का निज़ाम कायम करना (जो कश्मीर में बुरहान वानी करना चाहता था), यानी इस्लाम☪️ की ऐसी हुकूमत कायम करना जिसमे इस्लामिक
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यानी शरिया कानून चले और जिसमे इस्लाम के अलावा किसी और धर्म की इजाज़त नही होती है । जितने हिस्से या राज्य पर #खलीफा राज करता है उसे Caliphate यानी अरबी भाषा में Khilafa (खिलाफा) कहते हैं !
खलीफा यानी #इस्लामिक_सुल्तान
और खिलाफा यानी
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इस्लामिक☪️ राज्य ।
1919-22 के दौरान Turkey यानी तुर्की में ओटोमन वंश के आखिरी सुन्नी खलीफा अब्दुल हमीद-2 का खिलाफा यानी शासन चल रहा था जो कि जल्दी ही धराशाई होने वाला था, इस आखिरी #इस्लामिक ☪️खिलाफा (शासन) को बचाने के लिए अब्दुल हमीद-2
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ने जिहाद का आवाहन किया ताकि विश्व के मुसलमान एक हो कर इस आखिरी खिलाफा यानी इस्लामिक शासन को बचाने आगे आएं...
पूरे विश्व🌍 मे इसकी कोई प्रतिक्रिया नही हुई, सिवाए भारत के....भारत के अलावा एशिया का कोई भी दूसरा देश इस मुहिम का हिस्सा नही बना,
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लेकिन भारत के कुछ मुट्ठी भर मुसलमान इस मुहिम से जुड़ गए और हजारों किलोमीटर दूर, सात समंदर पार तुर्की के खिलाफा यानी इस्लामिक शासन को बचाने और अंग्रेज़ों पर दबाव बनाने निकल पड़े ! जबकि इस समय भारत खुद गुलाम था और अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर
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रहा था ! लेकिन अंतः 1922 में तुर्की से सुलतान के इस्लामिक शासन को उखाड़ फेंका गया और वहाँ सेक्युलर लोकतंत्र राज्य की स्थापना हुई और कट्टर मुसलमानों का पूरे विश्व पर राज करने का सपना टूट गया...इसी सपने को संजोए आजकल ISIS काम कर रहा है !
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भारत के चंद मुसलमानों ने अंग्रेज़ी हुकूमत पर दबाव बनाने के लिए बाकायदा एक आंदोलन खड़ा किया ! जिसका नाम था खिलाफा आंदोलन (Caliphate movement) अब क्योंकि अंग्रेज़ी में लिखे जाने पर इसका हिन्दी उच्चारण खलिफत होता है !
(अरबी में caliphate को khilafa=
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खिलाफा लिखते है)
तो.......
कांग्रेस ने बड़ी ही चतुराई से इसका नाम "खिलाफत आंदोलन" रख दिया ताकि देश की जनता को मूर्ख बनाया जा सके और लोगों को लगे कि यह "खिलाफत आंदोलन" #अंग्रेज़ो के खिलाफ है !
जबकि इसका असल मकसद purely religious यानि पूर्णतः
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धार्मिक☪️ था, इसका भारत की आज़ादी या उसके आंदोलन से कोई लेना देना नही था !
कुछ समझ मे आया...??
काँग्रेस द्वारा कैसे शब्दों की बाज़ीगरी से भारत की जनता व हिन्दुओं को मूर्ख बनाया जा रहा था,
कैसे खलिफत को खिलाफत बताया जा रहा था, (ठीक वैसे ही जैसे
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Feroze Khan Ghandi (घांदी) को Feroze Gandhi (फ़िरोज़ गांधी) बना दिया गया) ।
उस समय भारत मे इतने पढ़े लिखे लोग और नेता नही थे कि #गांधी-नेहरू की इस चाल को समझ सकें !
लेकिन इन सब के बीच कांग्रेस में एक पढ़ा लिखा व्यक्तित्व उपस्थित था, जिनका नाम "डॉ. केशव
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बलिराम हेडगेवार" था !
इन्होंने इस आंदोलन का जम कर विरोध किया, क्योंकि #खिलाफा सिर्फ तुर्की तक सीमित नही रहना था, इसका उद्देश्य तो पूरे विश्व पर इस्लाम☪️ की हुकूमत कायम करना था, जिसमे गज़वा-ए-हिन्द यानी भारत🇮🇳 भी शामिल था !
डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस के
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गांधी और नेहरू को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वे दोनों पट्ठे नही माने ! अंतः में डॉ हेगड़ेवार ने #कांग्रेस के इस खिलाफत आंदोलन का विरोध किया और कांग्रेस छोड़ दी !
तो अब समझ मे आया मित्रों की कांग्रेसी जो कहते हैं कि RSS ने आज़ादी के आंदोलन का विरोध किया था,
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तो वो असल मे किस आंदोलन का विरोध था..??
आप डॉ हेगड़ेवार के स्थान पर होते तो क्या करते..??
क्या आप भारत🇮🇳 को गज़वा-ए-हिन्द यानी इस्लामिक देश बनते देखते..??
या फिर डॉ साहब की भांति इसका विरोध करते..??
1919 में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ था और 1920 में डॉ हेगड़ेवार
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ने कांग्रेस छोड़ दी, और सभी को इस आंदोलन के बारे में जागरूक किया कि इस आंदोलन का भारत🇮🇳 की स्वतंत्रता से कोई लेना देना नही है और यह एक इस्लामिक☪️ आंदोलन है ! जिसका परिणाम यह हुआ कि यह आंदोलन बुरी तरह फ्लॉप हुआ, और 1922 में अंतिम इस्लामिक हुकूमत धराशाई हो गई !
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मुस्लिम नेता इस से बौखला गए और मन ही मन हिन्दुओ और संघ को अपना शत्रु मानने लगे और इसका बदला उन्होंने 1922-23 में केरल के मालाबार में हिन्दुओ पर हमला कर के लिया ! और असहाय अनभिज्ञ हिन्दुओ को बेरहमी से काटा गया, हिन्दू लड़कियों की इज़्ज़त लूटी गई, जबकि इस आंदोलन का
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भारत या उसके पड़ोसी देशों तक से कोई लेना देना नही था ।
1923 के दंगों में गांधी ने हिन्दुओ को ही दोषी ठहराते हुए हिन्दुओ को कायर और बुजदिल कहा था, गांधी ने कहा हिन्दू अपनी कायरता के लिए मुसलमानों को दोषी ठहरा रहे हैं, अगर हिन्दू अपने जान माल की सुरक्षा नही कर सकता ,
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तो इसमें मुसलमानों का क्या दोष..??
हिन्दुओ की औरतों की इज़्ज़त लूटी जाती है तो इसमें हिन्दू दोषी है, कहां थे उसके रिश्तेदार जब उस लड़की की इज़्ज़त लूटी जा रही थी...?? कुलमिला कर गांधी ने सारा दोष दंगा प्रभावित हिन्दुओ पर मढ़ दिया और कहा कि उन्हें हिन्दू होने पर शर्म आती है,
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जब हिन्दू कायर होगा तो मुसलमान उस पर अत्याचार करेगा ही ।
डॉ हेगड़ेवार को अब समझ आ चुका था कि सत्ता के भूखे भेड़िये भारत की जनता की बलि देने से नही चूकेंगे, इसलिए उन्होंने हिन्दुओ की रक्षा और उनको एकजुट करने के उद्देश्य से तत्काल एक नया संगठन बनाने का काम प्रारंभ कर दिया और
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अंततः 1925 में संघ (RSS) की स्थापना हुई !
हिन्दुओं, आज अगर हम होली और दीवाली मनाते हैं, आज अगर हम हिन्दू हैं.....तो केवल उसी खिलाफत आंदोलन के विरोध और संघ✊ की स्थापना की कारण, अन्यथा तो न जाने भारत🇮🇳 कब का गज़वा-ए-हिन्द बन चुक होता ।
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जन्नत की हूरों के बारे में ज़ाकिर नाइक को खुला पत्र---
परम आदरणीय जनाब-ए-आला स्कॉलर श्री ज़ाकिर नाइक साहब,
इस्लाम और दुनिया के तमाम धर्मों के बारे में आपके ज्ञान को देखकर चकित हूं। लेकिन एक हज़ार मुद्दों पर जानकारी लेने में मेरी दिलचस्पी कम है। मैं तो बस जन्नत की हूरों के
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बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता हूं। आशा है, जैसे आप भारत से भाग गए हैं, वैसे मेरे इन पैंतीस सवालों से नही भागेंगे।
1. मैंने सुना है कि धार्मिक पुरुष जब जन्नत पहुंचते हैं, तो उन्हें 72 हूरें मिलती हैं, लेकिन जब धार्मिक महिलाएं जन्नत पहुंचती हैं, तो उन्हें कौन मिलता है,
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और जो भी मिलते हैं, उनकी संख्या कितनी होती है?
2. कहीं ऐसा तो नहीं कि जैसे धरती पर महिलाओं से भेदभाव किया जाता है, वैसे ही जन्नत में भी उनकी अनदेखी की जाती है? वहां पुरुष तो हूरों के साथ मगन रहते होंगे, पर महिलाएं अपना वक्त कैसे काटती हैं?