देवों के देव महादेव को पंचदेवों का प्रधान कहा गया है । ये अनादि परमेश्वर हैं और आगम - निगम आदि शास्त्रों के अधिष्ठाता हैं । शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं । इस आधार पर दैवीय शक्ति के जीव तत्व को चेतन करने वाले स्वयं भगवान शिव।
शक्ति के साथ इस समस्त जगत मंडल व ब्रह्मांड में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं।
मृत्युंजयाय रुद्राय , नीलकंठाय संभवै , अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नमो नमः मृत्युंजय महारुद्र त्राहिमाम , शरणागतम् , जन्म - मृत्यु जरा व्याधि , पीड़ितम कर्म बंधनः
अर्थात ... मृत्यु को जय करने वाले भगवान महाशंभू को हम नमन करते हैं जिन्होंने नीलकंठस्वरूप को धारण करके संसार के समस्त गरल ( विष ) को शमन किया है । साथ ही मृत्यु को जीतने वाले महाशिव हम आपको साधना के साथ नमन करते हुए जन्म - मृत्यु के बंधन से पीड़ित अवस्था से मुक्त होकर आपसे
प्रार्थना करते हैं कि आप हमें ज्ञान , वैराग्य सहित सांसारिक कर्म बंधन से मुक्ति का मार्ग प्रदान करें । कल्पांतरों के अंतर्गत ऐसे कई कल्प व युग बीत चुके हैं जिसमें भगवान शिव की प्रभुसत्ता विशेष रूप से दृश्य होती है । शिव महापुराण के अनुसार वेद के अधिष्ठात्र
ब्रह्माजी को वेद का ज्ञान कराने वाले और वेद ग्रंथ देने वाले स्वयं भगवान शिव ही हैं । वे ही साक्षात ईश्वर हैं जिन्होंने सृष्टि के तीनों अनुक्रमों को स्थापित किया है । शिव करते हैं जीव चेतना का संचार शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं ।
ब्रहमा द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का उल्लेख एवं सृष्टि का संचार क्रम शिव से है । शिव प्रथम , विष्णु द्वितीय तथा ब्रह्मा तृतीय स्थान पर हैं लेकिन ये तीनो एक ही है किंतु सांसारिक मान्यता में ब्रह्मा प्रथम , विष्णु द्वितीय तथा शिव तृतीय प्रलयंकारी के रूप में माने जाते हैं
शिव स्वरूप में समाया सारा संसार भगवान शिव के स्वरूप तथा क्रिया विधि के अंतर्गत जो स्थितियां सामने आती हैं उसे देखें तो जिन्होंने वेद पुराण के माध्यम से जगत को अपने ज्ञान तथा अध्यात्म से परिचय करवाया ऐसे महाशिव एक सामान्य प्राणी को अपने विशिष्ट पद से लेकर आत्मा परमात्मा का अनुभूत
सिद्धांत प्रदान करते हैं । संसार सहित ब्रह्मांड के कालक्रम सिद्धांत के अनुसार संसार के भरण - पोषण आदि क्रम को वेदों के माध्यम से अन्य देवताओं की नियुक्तियों द्वारा संपादित करने की अवस्था का अनुक्रम दिया गया है ।
हर हर महादेव 🙏🏻🙏🏻
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द्रोणाचार्य ने कुरु कुमारो को राजा द्रुपद को हराने के लिए कहा क्योंकि अध्यापन के लिए गुरुदक्षिणा लेने का विचार किया और/ अर्जुन द्रुपद को कैदी के रूप में लाते है और द्रोणाचार्य पांचाल का आधा हिस्सा द्रुपद को वापस कर देते है।
संपूर्ण सैन्य प्रशिक्षण पूरा होने के बाद, द्रोणाचार्य ने धृतराष्ट्र के पुत्रों से गुरु दक्षिणा लेने का विचार किया।
तो वह धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को बुलाते है और उन्हें बताते है कि वह पांचाल के राजा द्रुपद को अपने गुरुदक्षिणा के रूप में चाहते है।
धृतराष्ट्र के पुत्र द्रोणाचार्य को खुश करने के लिए उनकी बात पर सहमत हो जाते है और हमला करते हैं। तो दुर्योधन युयुत्सु दुशासन विकर्ण और उनके मित्र आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं और पहले हमला करने के लिए दौड़ते हैं वे राजधानी शहर पहुंचते हैं और सभी विनाश के युद्ध में शामिल होते हैं
ब्राह्मणवादी व्यवस्था की जब चर्चा होती है तो एक ऐसी काल्पनिक व्यवस्था का चित्र जान पूछकर उभराया जाता है जिसमें सामाजिक भेदभाव को पनपाकर शूद्र कहे जाने वाली जातियों का शोषण हुआ हो।
जब अपनी बौद्धिक क्षमता से ब्राह्मणों ने शुद्रो पर अत्याचार जैसी काल्पनिक कहानियों को झूठा और निराधार साबित किया और वामपन्थियों धर्म बदले चुके शुद्रो से ब्राह्मणों ने सीधा टकराव लिया और सब को परास्त कर दिया।
तब वामपन्थियों की दाल नही गली तो मनुस्मृति आदि ग्रन्थों को मनुवादी व्यवस्था का नाम देकर हमला किया जाने लगा।
इतिहास मैं देखे तो ब्राह्मण राज कहे जाने वाला महाराष्ट्र के पेशवा ब्राह्मण राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता साम्राज्य के बड़े केंद्र के रूप में उभरे। विचित्र बात यह है कि
एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे । रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु- एक जिज्ञासा है मेरे मन में , अगर आज्ञा हो तो ? श्री कृष्ण ने कहा- अर्जुन , तुम मुझसे बिना किसी हिचक , कुछ भी पूछ सकते हो।
तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ? यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा।
श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया । इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो।
ये आगरा मैं हॉस्पिटल है इसमे भगवान जी की मूर्ति को जमीन से कुछ इंच ऊपर लगाया गया है यानी पैरो के पास क्या अब भगवान का इस्तेमाल थूक रोकने के लिए किया जाएगा ये घटिया लोग पैसे कमाने के चक्कर मैं मानसिक रूप से बीमार हो चुके है इनका इलाज जरूरी है
अगर कोई भाई आगरा से है तो भाई इनका इलाज करवाओ या आगरा के किसी हिन्दू संगठन को सूचित करो।
हिन्दू संगठन इतना तो करी सकते है। फ़ोटो मैं इनके नंबर भी दिए है मेने अभी इनसे बात की लेकिन इन्होंने मेरा नम्बर ब्लॉक कर रखा है अगर आप सूचित नही कर सकते है तो फोन तो कर ही सकते है ।
हमारे होते आराध्य देवो का अपमान नहीं हो सकता इन लोगो को बता दीजिए कि सब वापंथी नही होते है। @KapilMishra_IND
भीष्म ने द्रोणाचार्य को अपने गुरु के रूप में क्यों चुना / ओर दुपद ने द्रोणाचार्य का अपमान क्यों किया / अश्वत्थामा ने गेहूं का आटा मिलाकर दूध के रूप में पानी मिलाया।
सैन्य रक्षा के सभी रूपों में पारंगत होने के बाद द्रोणाचार्य सीधे राजा द्रुपद के पास गए। उन्हें उस मित्र द्रुपद की याद आई, जिन्होंने घोषणा की थी कि जब द्रुपद पांचाल का राजा बनेगे, तो उस समय द्रोणाचार्य को समान दर्जा प्राप्त होगा।
दरअसल द्रुपद के धन की तुलना में द्रोणाचार्य का धनबहुत कम था वह अपने छोटे बेटे के लिए एक गाय चाहते थे जो दूध पीना चाहता था जब बच्चे ने दूसरे शाही राजकुमार को गाय का दूध पीते देखा। द्रोणाचार्य अपने पुत्र से बहुत प्रेम करते थे।