पाकिस्तानी मीडिया में मादरे वतन का उल्लेख ख़ूब मिलता है। मादरे वतन यानि मातृभूमि। भारत में जावेद अख़्तर सरीखे मुस्लिम व्यक्ति जब वंदे मातरम कहता है, तो ज़्यादातर लोगों को अच्छा लगता है।
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तारिक फ़तह तो #वंदे_मातरम का विरोध करने वालों को अक्सर गरियाते ही रहते हैं। बहर हाल,अभी लगभग सवा सौ साल पहले तक,वंदे मातरम गीत कोई नहीं जानता था। जबकि आज ये गीत अधिसंख्य भारतीयों के लिए अस्मिता और गौरव का प्रतीक बन चुका है।
इस गीत के रचियता #बंकिम_चन्द्र पहले भारतीय आईसीएस थे👇
उन्होंने अनेक किताबें लिखीं, #आनंदमठ से मशहूर हुए। वंदे मातरम गीत इसी उपन्यास का अंश था। अंग्रेज़ों द्वारा इसकी व्याख्या कुछ इस तरह की गई, कि भारत भूमि की वंदना के बहाने यह पुस्तक अंध राष्ट्रवाद को उकसावा देती है। सन् "1882" में पुस्तक प्रकाशित हुई, और ...
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और इसके मात्र तीन साल बाद ही, सन् 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई। क्या ये मात्र संयोग था? सन् 1857 के बाद अंग्रेज हर क़दम फूंक-फूंककर उठा रहे थे। इतने बड़े बहुराष्ट्र और सोना उगलने वाले उपनिवेश को वे हाथ से,किसी भी कीमत जाने नहीं देना चाहते थे,और विद्रोह का ख़ौफ़ भी ज़ारी था।👇
उन्हें लगा कि, अगर देसी बिचौलियों का एक तबक़ा उनकी तरफ़ हो जाए,तो बात बन सकती है। उस समय भारत के कुछ लोग ब्रिटिश से व्यापार में कुछ छूट चाहते थे। बदले में ये लोग साम्राज्य में बढ़ते असंतोष को कम करने और 1857 जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने देने का अंग्रेजों को भरोसा दे रहे थे👇
इधर भावुक बंगाली देशप्रेम का उबाल लाने की तैयारी कर रहे थे। गोखले स्वयं को अपरिहार्य साबित करने में विनम्रता पूर्वक लगे थे। लेकिन बंगाल में राष्ट्रवाद के ज्वार को रोकना नामुमकिन सा लग रहा था।
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संकेत मिल रहे थे कि भीतर ही भीतर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैल रही है।
बहरहाल अंग्रेज़ों से भूल हुई, या कर्ज़न की गणना में गड़बड़ी हो गई, भावुक बंगालियों में राष्ट्रवाद के ज्वार को थामने के लिए 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया गया। जो आग दबी थी उसे हवा मिली, वह ज्वाला बन गई। 👇
बिचौलियों के लिए यह ज़रूरी था कि वे शासकों को इस बात के लिए संतुष्ट करें, कि भारत के आम लोगों पर उनकी (यानि कांग्रेस) की पकड़ है, और कांग्रेस शासकों के हित में फ़ायर ब्रिगेड का काम अच्छी तरह कर सकती है।
वंदेमातरम गीत, तब तक बंगालियों के लिए आत्म गौरव का गीत बन चुका था।
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वंदेमातरम गीत, छोटी - मोटी टोलियों में, बंगाल के गांवों में गाया जा रहा था, इसलिए बंगालियों के लिए आत्म गौरव का गीत बन चुका था। 7th अगस्त 1906 को कलकत्ता के टाउन हॉल में #बंगाल_विभाजन के विरोध में बहुत विशाल जनसभा हुई, जिसमें सबने बड़े जोश के साथ यह गीत गाया।
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वक़्त की नब्ज़ को पहचानते हुए अगले ही माह, सितंबर 1906 में अपने वाराणसी अधिवेशन में कांग्रेस ने भी यह गीत गाया था। कांग्रेस के प्लेटफ़ार्म के बाद, यह गीत जन-जन के ह्रदय की आवाज़ बन गया।
ब्रिटिश साम्राज्य पर पहले ही से दबाव बढ़ रहा था। पहले विश्वयुद्ध की आहट सुनाई देने लगी थी।👇
कांग्रेस के ज़रिये भारत का बिचौलिया वर्ग भी इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। धीरे-धीरे बार्गेनिंग पॉवर बढ़ाने का पूरा कोशिश जारी था। उत्तर भारत में विशेषकर वर्तमान पाकिस्तान और यूपी से लेकर बंगाल तक अब निम्न मध्यवर्ग में भी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ असंतोष सघन हो रहा था।👇
कुछ उत्साही युवक सशस्त्र विद्रोह के रास्ते पर भी विचार कर रहे थे। कुछ घटनाएँ भी हो चुकी थीं। सन सत्तावन का दुःस्वप्न भी अभी तक अंग्रेज़ों के ज़ेहन में था।
बहरहाल, #वंदेमातरम् अब सम्पूर्ण भारत के लिए मुक्तिगान बन चुका था।
इजरायल - फिलिस्तीन मामले में भारत में हर इस्लामी अपनी प्रतिक्रिया देते थे पर अब तालिबान जब 15से45 उम्र की लड़कियों और विधवाओं का जबरन "सेक्स स्लेव" बनाने के लिए घर से उठा रहा है और सड़कों पर लाशों का ढेर लगी हो तो कोई क्यों ज्ञान नहीं दे रहा ?
क्या इस्लाम में ये जायज़ है ?
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#कट्टरपंथी_इस्लामिक_संगठन_तालिबान और अफगान सेनाओं के बीच चल रहे संघर्ष का खामियाजा अफगानी लोगों को भुगतना पड़ रहा है। तालिबान पूरे देश पर कब्ज़ा करना चाहता है और इसके लिए, अत्याचार कर रहा है। हजारों की संख्या में अफगानी अपने घरों को छोड़, सुरक्षित स्थानों की तलाश में हैं।
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अपने 6 बच्चों को लेकर कुंडुज छोड़कर आईं 36 वर्षीय फरीबा बताती हैं कि उनके शहर में #तालिबान के कब्जा के बाद सड़कों पर लाशों के ढेर लगे हुए हैं और कुत्ते उन्हें नोच रहे हैं। कुंडुज शहर के ही मीरवाइज खान ने बताया कि तालिबान ने एक नाई को सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि उनपर शक था।
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