देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती आज 17 सितंबर शुक्रवार को मनाई जाएगी। उन्हें विश्व का पहला इंजीनियर कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने ही इंद्रलोक, द्वारिका, जगरनाथ पुरी, भगवान शिव के त्रिशूल एवं
भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण किया था इसलिए उन्हें देव शिल्पी भी कहा जाता है। आज कन्या संक्रांति है और इसी दिन ही उनकी जयंती मनाई जाती है।
षट्कर्म से लेकर रक्षाविधान तक यज्ञका कर्मकाण्ड कराएँ ।विशेष पूजन- सम्भव हो तो सभी के हाथ में अक्षत पुष्प दें,
उक्त स्तुति में विश्वकर्मा जी के हाथ में चार प्रतीक कहे गये हैं-
१. पुस्तक २. पैमाना ३.जलपात्र ४. सूत्र- धागा।
यह सृजन के चार अनिवार्य माध्यमों के प्रतीक हैं। सृजन के लिए चाहिए
(१) ज्ञान (पुस्तक), (२) सही मूल्याङ्कन (पैमाना), (३) शक्तिसाधन (पात्रता),
(४) कौशल का सतत क्रम (सूत्र)।
प्रार्थना-
हे विश्वकर्मा प्रभो!
(१) हमें सृजन का ज्ञान दें, अवसर दें, और ऐसी समझदारी दें, ताकि हम उसका लाभ उठा सकें। (पुस्तक स्पर्श)
(२) हमें सृजन का उत्साह दें और ऐसी ईमानदारी दें कि हम उसके साथ न्याय कर सकें। (पैमाना का स्पर्श)
(३) हमें शक्ति- साधना दें और ऐसी जिम्मेदारी दें कि हम उनका सदुपयोग कर सकें (पात्र का स्पर्श)।
(४) हमें वह कौशल और उसे वहन करते रहने की बहादुरी प्रदान करें। (सूत्र का स्पर्श)।
#महादेव के गणों मे एक हैं भृंगी। एक महान शिवभक्त के रुप में भृंगी का नाम अमर है। कहते हैं जहां शिव होंगे वहां
गणेश, नंदी, श्रृंगी, भृंगी, वीरभद्र का वास स्वयं ही होगा। शिव-शिवा के साथ उनके ये गण अवश्य चलते हैं। इनमें से सभी प्रमुख गणों के बारे में तो कहानियां प्रचलित हैं। जैसे दक्ष यज्ञध्वंस के लिए वीरभद्र उत्पन्न हुए।
मां पार्वती ने श्रीगणेश को उत्पन्न किया।
नंदी तो शिव के वाहन हैं जो धर्म के अवतार हैं। शिलाद मुनि के पुत्र के रूप में जन्म लेकर शिवजीके वाहन बने नंदी। आपने यह सब कथाएं खूब सुनी होंगी पर क्या प्रमुख शिवगण भृंगी की कथा सुनी है?भृंगी की खास बात यह हैं कि उनके तीन पैर हैं। शिव विवाह के लिए चलीबारात में उनका जिक्र मिलता हैं
अंग्रेजों ने भारत आगमन से ही सांस्कृतिक जहर घोलना शुरू कर दिया राम कृष्ण के वंशज भारत वासियों को आर्य द्रविड़ में बांट दिया कहा कि द्रविड़ आर्यों के भारत में आक्रमण से पूर्व उत्तर
भारत में ही निवास करते थे आर्यों ने उन पर हमला कर उन्हें विंध्य के पार समुंद्र तटीय दक्षिण भारत की ओर धकेल दिया खुद उत्तर मध्य भारत पर शासन करने लगे| अंग्रेज इतिहासकारों के बाद भारत में आर्यों को आक्रांता विदेशी सिद्ध करने का बीड़ा वामपंथी भारतीय इतिहासकारों ने उठा लिया |
एसएसटी, इतिहास से संबंधित एनसीईआरटी की किताबों में तो यदा-कदा आज भी आर्यों को विदेशी आक्रांता ही बताया जा रहा है इनकी चतुराई तो देखिए आर्यों को एक स्वर में विदेशी मानते हुए उनके उत्पत्ति स्थान पर सब भिन्न-भिन्न राय यह वामपंथी इतिहासकार देते है कोई कहता है आर्य इरान से