अंग्रेजों ने भारत आगमन से ही सांस्कृतिक जहर घोलना शुरू कर दिया राम कृष्ण के वंशज भारत वासियों को आर्य द्रविड़ में बांट दिया कहा कि द्रविड़ आर्यों के भारत में आक्रमण से पूर्व उत्तर
भारत में ही निवास करते थे आर्यों ने उन पर हमला कर उन्हें विंध्य के पार समुंद्र तटीय दक्षिण भारत की ओर धकेल दिया खुद उत्तर मध्य भारत पर शासन करने लगे| अंग्रेज इतिहासकारों के बाद भारत में आर्यों को आक्रांता विदेशी सिद्ध करने का बीड़ा वामपंथी भारतीय इतिहासकारों ने उठा लिया |
एसएसटी, इतिहास से संबंधित एनसीईआरटी की किताबों में तो यदा-कदा आज भी आर्यों को विदेशी आक्रांता ही बताया जा रहा है इनकी चतुराई तो देखिए आर्यों को एक स्वर में विदेशी मानते हुए उनके उत्पत्ति स्थान पर सब भिन्न-भिन्न राय यह वामपंथी इतिहासकार देते है कोई कहता है आर्य इरान से
आए तो कोई मध्य एशिया तो कोई पश्चिम एशिया तो कोई यूरोप से आर्यों के आगमन के सिद्धांत को बताता|
अंग्रेजों ने यह झूठा जहरीला सिद्धांत हम पर शासन करने के लिए दिया कोई भी शासक अपने दास को अपने से श्रेष्ठ कैसे मान सकता है ?हमारी सांस्कृतिक एकता को तोड़ने के लिए अर्थात हम भी विदेशी तो
तुम भी विदेशी सिद्धांत के तहत यह सिद्धांत झूठ प्रचारित किया गया|
वामपंथी अपनी आदत से लाचार होकर बेशर्मी से इस झूठे जहरीले सिद्धांत पर आज भी अड़े हुए हैं... मंदबुद्धि बौद्ध तथाकथित दलितों के मसीहा के कहलाने वाले संगठन स्वार्थ की गंगा में हाथ बहा रहे हैं...
अपनी खुन्नस को निकालने के लिए.... वह मूलनिवासी मूलनिवासी गाते रहते हैं....
मैक्स मूलर जैसे कुटिल स्वघोषित संस्कृत के पंडित उसी की जमात के अंग्रेज जर्मन इतिहासकार के गाल पर सबसे पहला करारा तमाचा 19वीं शताब्दी के धार्मिक वैचारिक क्रांतिकारी संगठन आर्य समाज के
संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने लगाया उन्होंने कहा आर्य विदेशी नहीं है कोई नस्ल नहीं है और वह प्रत्येक मनुष्य आर्य है जो श्रेष्ठ है आर्य गुणवाचक शब्द है भारतवर्ष का प्राचीन नाम आर्यव्रत था हमारे पूर्वज ने पूरी दुनिया में सर्वोत्तम जान इसे बसाया |
हमारे पूर्वज आर्य सृष्टि की आदि से ही से ही इस भूभाग पर शासन करते आए हैं| जब आर्यवृत्त की स्थापना हुई तब संसार के अन्य किसी भूभाग पर मनुष्य का निवास नहीं था | ऐसे में यह प्रश्न ही नहीं उठता कि दुनिया के अन्य किसी भूभाग से मनुष्य चलकर भारत भूमि पर आए... अपितु हमारे पूर्वज
आर्यों ने ही अन्य भूखंडों दीप को ज्ञान कला कौशल संस्कृति से आबाद किया|
पश्चिमी ,वामपंथी इतिहासकार कहते हैं सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं आर्य वैदिक सभ्यता से प्राचीन है... आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता को नष्ट कर दिया...... पहले सिंधु घाटी
सभ्यता को 4000 वर्ष प्राचीन बताते थे अब यह सिद्ध हो गया है सिंधु घाटी सभ्यता कम से कम 9000 वर्ष प्राचीन है..... महाभारत को घटित हुए लगभग 5000 वर्ष हो चुके हैं... महाभारत ग्रंथ में कहीं भी किसी अन्य सभ्यता का जिक्र नहीं है सनातन वैदिक आचार आर्य संस्कृति का ही बखान
है ऐसे में यदि कोई अन्य समानांतर सिंधु घाटी/ हड़प्पा सभ्यता होती तो उसका उल्लेख जरूर होता सच्चाई तो यह है सिंधु घाटी /हड़प्पा सभ्यता आर्य वैदिक सभ्यता ही है|
वाल्मीकि रामायण जो महाभारत से भी हजारों लाखों वर्ष प्राचीन हैं यह अलग विषय है कि
वामपंथी इतिहासकार Ramayan ग्रंथ को ईसा पूर्व 600 का लिखित मानते हैं...... उसके किष्किंधा कांड में पंपा सरोवर किष्किंधा नगरी का बड़ा ही सुंदर विस्तृत उल्लेख मिलता है जो कर्नाटक दक्षिण भारतीय राज्य का हिस्सा है.... वहां महाराज सुग्रीव हनुमान अंगद महाराज बाली उसकी पत्नी तारा को
आर्य शब्द से ही संबोधित किया है | रामायण में द्रविड़ शब्द ढूंढने से भी दिखाई नहीं दिखाई देता| वानरों की सभ्यता भी आर्य सभ्यता ही थी बालि का भी विधिवत वैदिक रीति से अग्नि संस्कार हुआ... दक्षिण भारत की आर्य सभ्यता कला कौशल में उत्तर भारत की आर्य सभ्यता से बढ़ चढ़कर थी.....
हनुमान सुग्रीव बाली आदि हमारे पूर्वज भौगोलिक तौर पर दक्षिण भारतीय आर्य थे| दक्षिण भारत का वह इलाका समुद्र पर्यंत इक्ष्वाकु वंश के नंदीग्राम से समस्त भूगोल पर शासन कर रहे चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के ही अधीन था|
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने बाली वध को उचित
ठहराते हुए यह बात कही थी| फिर भी समझ से परे है रामायण जैसा ऐतिहासिक दस्तावेजी साक्ष्य होते हुए भी उत्तर व दक्षिण भारतीय में पूरा भारत अंग्रेजों वामपंथियों ने बांट दिया.... इसी कारण हिंदी आज भी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई....दक्षिण भारत के राजनीतिक दलो को हिंदी कतई बर्दाश्त नहीं है |
हमारे पूर्वज राम कृष्ण ऋषि मुनि जिनका उल्लेख रामायण महाभारत में मिलता है सभी आर्य थे अर्थात श्रेष्ठ थे|हम सभी उनके वंशज हैं |सभी भारतवासी मौसेरे भाई बहन है | इस पर अनुवांशिक विज्ञान की मुहर लग चुकी है यह दुर्भाग्य है सरकार ने कभी अनुवांशिकी के इतिहास पुरातत्व से संबंधित इस
विषय पर किए गए शोधों को सार्वजनिक नहीं किया है|
वर्ष 2010 से लेकर 2017 तक तमाम शोध पुरातात्विक खुदाई से मिले कंकालों उनसे प्राप्त डीएनए पर हुए हैं| वर्ष 2016- 17 में हरियाणा के हिसार के राखी गढ़ी गांव जो आर्य सभ्यता का प्रमुख केंद्र था... महाभारत कालीन वैदिक भारत के
योद्धय गणराज्य का हिस्सा था.... 40 मानव कंकाल प्राप्त हुए... इन कंकालों के कान के पास की हड्डी से डीएनए लिए गए... इंडिया ने नमूनों का मिलान... मध्य एशिया अफ्रीका यूरोप के मूल समाज के डीएनए से किया गया.. कोई भी नमूना मैच नहीं हुआ|
फिर इन कंकालों के डीएनए नमूनों का मिलान भारत
के ही उत्तर मध्य पूर्वी दक्षिण भारत में रहने वाले विभिन्न 1500 लोगों से लिए गए नमूने नमूनों से किया गया...| नमूना 99 दशमलव 99 फ़ीसदी मैच हो गया| इसका निष्कर्ष निकलता है राखी गढ़ी में दफन मानव अवशेष तथा आज के आम भारतवासी जिनका डीएनए नमूना लिया गया दोनों के पूर्वज
एक ही है..| ठीक ऐसे ही उत्तर प्रदेश के बागपत के सनौली जो महाभारत कालीन हस्तिनापुर का क्षेत्र था वहां से प्राप्त कंकाल से प्राप्त डीएनए नमूनों का मिलान भारत में ही खुदाई से प्राप्त हुए 12000 वर्ष पुराने कंकाल के नमूनों से किया गया नमूना मैच हो गया..|
अनुवांशिक विज्ञान चीख चीख कर कह रहा है उत्तर से लेकर दक्षिण पूर्व से लेकर पश्चिम में बसने वाले भारतीय सभी ऋषि-मुनियों आर्यों की संतान हैं सभी में एक ही रक्त है. आपको आश्चर्य होगा जिन 15 00लोगों का डीएनए लिया गया था उनमें 200 से अधिक हैदराबाद मुंबई अजमेर मुरादाबाद के
मुसलमान भी थे उन सभी का डीएनए मध्य एशिया पश्चिम एशिया पश्चिमी अफ्रीका अरब के मुस्लिम समुदाय से मैच नहीं हुआ अपितु भारतवासी जो गैर मुस्लिम थे उनसे मैच हुआ अर्थात भारतीय मुस्लिमों के पूर्वज आर्य ही है.
इस शोध में निकल कर आया जिसकी अगुवाई
भारत के प्रसिद्ध अनुवांशिक वैज्ञानिक जिन्होंने डीएनए टेस्टिंग फिंगर प्रिंटिंग पर उल्लेखनीय कार्य किया दिवंगत डॉक्टर लाल जी सिंह थे.... इस शोध से यह भी निकल कर आया भारत में पिछले 100000 सालों में निवास करने वाले भारत वासियों जिनकी उपलब्ध डीएनए सामग्री मिलती है
उनके डीएनए में कोई छेड़छाड़ नहीं हुआ है...|
भारत के संस्कृति मंत्रालय का दायित्व बनता है वह इस ऐतिहासिक प्रमुख अनुवांशिक शोध को भारत वासियों के सामने प्रस्तुत करें.... आर्यों को लुटेरा विदेशी बताने वाले लोगों की जुबान पर अब ताला लग जाना चाहिए.
बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है इस संस्कृति मंत्रालय से हम क्या उम्मीद लगाए? यह तो वामपंथियों की वैचारिक प्रति छाया है इसका नाम है संस्कृति मंत्रालय के रहते समलैंगिकता adultery भारत में कानूनी मान्यता हासिल कर गई ...इसने सर्वोच्च न्यायालय में अपोज तक नहीं किया ...आज
भी भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद संस्कृति मंत्रालय से लेकर पुरातत्व विभाग में वामपंथी भेड़िए कुर्सी पर कब्जा जमाए हुए बैठे हुए हैं.| सनातन भारतीय संस्कृति के चारों वर्ण एक ही पिता की संतान है...दुख होता है इनमें से जब एक संतान को विदेशी बताया जाता है | यह सिद्धांत पहले अंग्रेजों
न दिया कि ब्राह्मण विदेशी हैं भारत के मूलनिवासी काले रंग के हैं.गुलामी के कालखंड में इस जहरीले सिद्धांत का अंधानुकरण ज्योतिबा फुले ने किया उन्होंने एक पुस्तक लिखी गुलामगिरी अंग्रेजों की भूरी भूरी प्रशंसा की हालांकि अंग्रेजों ने कभी ज्योतिबा फुले को घास नहीं डाली..ज्योतिबा फुले
ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे आठवीं तक उनका अध्ययन था महाराष्ट्र की संस्कृति में होने वाले कुछ ढोंग आडंबर का उन्होंने विरोध किया यह तो उचित था | ज्योतिबा फुले की पुस्तक गुलामगिरी पर फिर कभी लिखा जाएगा| मूल प्रसंग की ओर लौटते हैं|
आज तक भारत की किसी भी सरकार ने सिंधु घाटी
सभ्यता से प्राप्त शिलालेख अभिलेखों में अंकित लिपि के रहस्य से पर्दा उठाने का अकादमी प्रयास नहीं किया है| सरकार भले ही अब राष्ट्रवादी देशभक्त माने जाने वाली भाजपा की हो लेकिन तंत्र अभी वामपंथी ही कार्य कर रहा है| दुनिया के किसी भी लिपि शास्त्री भाषा शास्त्री सिंधु घाटी सभ्यता की
लिपि को नहीं पढ़ पाए हैं यह भी एक सोचा समझा षड्यंत्र.... जब दुनिया की 3000 से अधिक लिपि पढ़ ली गई है तो फिर सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि का ना पढ़ा जाना इस हालात में जब लिपियों को पढ़ने में विकसित कंप्यूटर सॉफ्टवेयर आ गए हैं एक सोचे समझे षड्यंत्र का हिस्सा है..
वामपंथी इतिहासकार कभी नहीं चाहते कि सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि के रहस्य से पर्दा उठ जाए फिर उनका झूठ एक बार फिर बेनकाब हो जाएगा. पश्चिम इतिहासकार तथा वामपंथी इतिहासकार सिंधु घाटी सभ्यता को आर्य वैदिक सभ्यता के प्राचीन बताते हैं.... सच्चाई तो यह है सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि
में अंकित लेख है वह वेद व रामायण महाभारत मनुस्मृति के चुनिंदा उपदेश ही हैं... सिंधु घाटी या हड़प्पा वैदिक आर्य सभ्यता ही है.
कुछ लोग कहते हैं सत्य परेशान होता है पराजित नहीं होता हम कहते हैं सत्य कभी परेशान होता ही नहीं है और ना ही पराजित होता है |सत्य ,आडंबर
षड्यंत्र से छुपाया जा सकता है लेकिन सत्य उद्घाटित होकर ही रहता है चाहे विज्ञान से हो या जनश्रुति आस्था से.
आनुवंशिक विज्ञान ने तो यह भली-भांति सिद्ध कर दिया है आर्य द्रविड़ सिद्धांत के मामले में.।
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षट्कर्म से लेकर रक्षाविधान तक यज्ञका कर्मकाण्ड कराएँ ।विशेष पूजन- सम्भव हो तो सभी के हाथ में अक्षत पुष्प दें,