श्री यमुनाष्टकम के पाठ की महिमा!
पूज्यपाद आदि शंकराचार्यजी वर्णन करते हैं कि कैसे श्री यमुनाजी अपने भक्तों को श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाने के लिए आशीर्वाद दे सकती हैं। #Yamunaji #Thread
प्रायः हम प्रभु से लौकिक वस्तुओं या उपलब्धियों के लिए प्रार्थना करते हैं। परन्तु श्री भगवान हम से तब प्रसन्न होते हैं जब हमारे स्वभाव में परिवर्तन आता है। यदि श्री यमुनाजी की कृपा हो जाए तो जीव के स्वभाव में परिवर्तन आता है और वो श्री ठाकुरजी का प्रिय बन जाता
1) मुरारिकायकालिमाललामवारिधारिणी
तृणीकृतत्रिविष्टपा त्रिलोकशोकहारिणी।
मनोऽनुकूलकूलकुञ्जपुञ्जधूतदुर्मदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥1॥

आपका पवित्र जल मुरारी (श्रीकृष्ण) के शरीर के सुंदर (नीले) रंग को छूता है। और इसलिए कृष्ण के स्पर्श के कारण ये स्वर्ग को तुच्छ बनाकर,
तीनों संसार के दुखों को दूर करने के लिए आगे बढ़ता है। श्री कृष्ण के द्वारा स्पर्श की गयी ये यमुना जी की धारा हमारे अहंकार को मिटा देती है और हमें भक्तिमय बना देती है। हे कालिंद नंदिनी (कलिंद पर्वत की पुत्री), कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
मलापहारिवारिपूरभूरिमण्डितामृता
भृशं प्रपातकप्रवञ्चनातिपण्डितानिशम्।
सुनन्दनन्दनाङ्गसङ्गरागरञ्जिता हिता
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥2॥

आपका अशुद्धियों को दूर करने वाला पवित्र जल प्रचुर मात्रा में अमृत जैसे गुणों से जो भरा हुआ है, जो पापियों के मन में गहरे बैठे पापों को
भी धोने में एक विशेषज्ञ की भांति है। न जाने कितने युगो से आप लगातार सबके पापों को धोती आ रही हैं। आपका जल अत्यंत लाभकारी है क्यूंकि यह नन्द गोप के पुत्र के श्यामल देह से स्पर्श हो रंगीन हो रहा है। हे कालिंद नंदिनी, कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
3) लसत्तरङ्गसङ्गधूतभूतजातपातका
नवीनमाधुरीधुरीणभक्तिजातचातका।
तटान्तवासदासहंससंसृता हि कामदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥3॥

आपकी चमकदार और चंचल लहरों का पावन स्पर्श जीवित जीवों में उठने वाले पापों को धो देता है। आपके तट पर कई चातक पक्षी रहते हैं जो भक्ति से उत्पन्न हुई
ताजी मिठास को ग्रहण करते हैं। (प्रतीकात्मक: जैसे एक चातक पक्षी बारिश की पहली बूंदों से ही अपनी प्यास बुझाता है उसी प्रकार एक भक्त भी सदैव भक्ति की ही तरफ केंद्रित रहता है अर्थात श्री कृष्ण में ही रमा सा रहता है...अन्यत्र कहीं नहीं l) आप इतनी कृपामयी हो कि जल पर बैठे उन हंसों को
भी आशीर्वाद दे देती हो जो आपके किनारों की सीमा पर अभिसरण और निवास करते हैं। हे कालिंद नंदिनी, कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
विहाररासखेदभेदधीरतीरमारुता
गता गिरामगोचरे यदीयनीरचारुता।
प्रवाहसाहचर्यपूतमेदिनीनदीनदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥4॥

हे यमुना महारानी, आपके शांत तट पर बहने वाली पवित्र हवाएं प्रभु की लीलाएं और रासलीला इत्यादि की मधुर स्मृतियों (vibrations) को धारण किये हुए है,
गोपियों के विरह की स्मृतियों से अति सुन्दरतम हुई आपकी जलधारा के संयोग से संपूर्ण पृथ्वी और अन्य नदियाँ भी शुद्ध हो गई हैं। हे कालिंद नंदिनी, कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
5) तरङ्गसङ्गसैकताञ्चितान्तरा सदासिता
शरन्निशाकरांशुमञ्जुमञ्जरीसभाजिता।
भवार्चनाय चारुणाम्बुनाधुना विशारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥5॥

आपके घुमावदार और रेतीले किनारे आपकी पवित्र लहरों के संपर्क में रहने के कारण चमकते रहते हैं। नदी के रेत हमेशा आपके बहने वाली लहरों के
संपर्क में रहने से चमकती रहती है। यमुना नदी और नदी के किनारे शरद ऋतु की रात को और भी खूबसूरत दिखाई देते हैं। जो आपके इस सुन्दर स्वरुप की पूजा करते हैं, उनको पाप-रहित कर आप भक्ति में सुशोभित करती हैं। हे कालिंद नंदिनी, कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
6) जलान्तकेलिकारिचारुराधिकाङ्गरागिणी
स्वभर्तुरन्यदुर्लभाङ्गसङ्गतांशभागिनी
स्वदत्तसुप्तसप्तसिन्धुभेदनातिकोविदा।
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥6॥

आपकी जलधारा उस सुंदर राधाजी के स्पर्श से रंगी हुई है जो आपके इस जल में श्रीकृष्ण के साथ खेला करती थी। आप दूसरों को उस दिव्य स्पर्श
(राधा-कृष्ण के) से पोषण करती हो, जिसे प्राप्त करना अत्यंत दुष्कर है। आप सप्त सिन्धु (सात नदियों) के साथ भी इस दिव्य स्पर्श के पवित्र प्रभाव को मौन रहकर साझा करती हो। आप तेज और कृपा का विस्तार करने में अति निपुण हो माते। हे कालिंद नंदिनी, कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
7) जलच्युताच्युताङ्गरागलम्पटालिशालिनी
विलोलराधिकाकचान्तचम्पकालिमालिनी।
सदावगाहनावतीर्णभर्तृभृत्यनारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥7॥

आपके इस जल में अच्युत (श्रीकृष्ण) का रंग मिल गया है, जब वे भावप्रवाण गोपियों के साथ खेलते थे, जो मधुमक्खियों की तरह उनके संग घूमती थीं,
तभी आप श्यामल दिखती हो। आप धन्य हो क्यूंकि श्री राधा रानी के लटकते बालों से गिरे चम्पक के फूल आपकी जलधारा को सुशोभित करते थे। और तो और, श्री भगवान के पार्षद नारदजी भी आपके जल में हमेशा स्नान करने के लिए उतरते हैं। हे कालिंद नंदिनी, कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
8) सदैव नन्दनन्दकेलिशालिकुञ्जमञ्जुला
तटोत्थफुल्लमल्लिकाकदम्बरेणुसूज्ज्वला
जलावगाहिनां नृणां भवाब्धिसिन्धुपारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥8॥

आपका नदी-तट सुंदर उपवनों से भरा हुआ है जिसमें नंद के पुत्र (श्री कृष्ण) हमेशा खेलते हैं, और आपका किनारा हमेशा मल्लिका और कदंब
के फूलों के पराग (यानी फूल) के साथ चमकता ही रहता है। जो जीव आपकी नदी के पानी में स्नान करते हैं, आप उन्हें संसार सागर से पार कर देती हैं। हे कालिंद नंदिनी (कलिंद पर्वत की पुत्री), कृपया मेरे मन से अशुद्धियों को दूर करो।
Image credits:
Yamunaji Pichwai painting: artist is Vannalya via daily designist
rest all images: Pinterest

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