असम सरकार में मंत्री अशोक सिंग्ला जब कहते हैं कि हिमंता विसवा सरमा की सरकार हिंदुओं के विरासत और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, संकल्पित है, प्राचीन संरचना और मंदिरों को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए, तब सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
विस्मय नहीं यदि मैं कह दूं हिमानता बिसवा सरमा को कार्य करने की यह ताकत इसलिए प्राप्त है क्योंकि एक भी मुसलमानों ने असम में भाजपा को वोट नहीं दिया था। भाजपा के मुस्लिम प्रकोष्ठ के कार्यकर्ताओं तक ने भी नहीं। फिर जाकर हेमन्त ने इन प्रकोष्ठों को भंग कर दिया था।
अगर एक भी मुस्लिम वोट डालकर सरकार को अपना प्रतिनिधित्व दे देता, तो निश्चित ही हिमन्ता सरकार की नैतिक शक्ति इतनी प्रबल नहीं होती। अगर यह सरकार इतनी प्रबलता से हिंदू सांस्कृतिक विरासत को ध्यान में रखकर कार्य कर रही है तो निश्चित ही यह शक्ति असम के मुसलमानों ने ही दी है।
क्योंकि जब चुनाव में हिमंता विसवा सरमा ने मुस्लिम तुष्टीकरण से आजिज आकर घोषणा की थी कि उन्हें एक मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए, तब मुसलमानों ने भी हेमंत के संकल्प को तोड़ने का प्रयत्न भी नहीं किया था।
आज हिमंता विसवा सरमा का यही आत्मविश्वास हेमंत की सरकार को वह शक्ति प्रदान करता है जिस शक्ति से 30,000 एकड़ शिव मंदिर की जमीन पर जन्में अवैध मरुस्थली कांटो को वे साफ कर रहे हैं। कांग्रेस ने कहा कि ये कांटे 1970 से यहां पोषित हो रहे हैं इसलिए इन्हें नहीं हटाना चाहिए।
अतिक्रमण हटाने गए पुलिसकर्मियों से पूर्व ही यहां रह रहे मरुस्थली सभ्यता के दानवों ने 10000 की संख्या में बलात प्रतिरोध शुरू कर दिए। नारेबाजी के साथ साथ हमला भी कर दिया। 9 पुलिसकर्मी घायल हुए। पुलिसकर्मियों ने सेल्फ डिफेंस के लिए पहल किया और महज 2 लोग मारे गए।
मुझे याद आ रहा है 25 अगस्त 2017 की म्यांमार की रखाइन प्रांत की घटना। जब रोहिंग्या मुसलमानों ने 30 पुलिस चौकियों और एक सैन्य छावनी पर धावा बोल दिया था। मानवाधिकार समूह ह्यूमन राइट्स वाच के रिपोर्ट के अनुसार इन्होंने 7000 घरों को भी आग लगा दी थी।
शक्ति से तत्कालीन आंग सान सू की सरकार ने सैन्य कार्रवाई किया। तकरीबन 700000 रोहिंग्या मुसलमानों को पलायन कर जाना पड़ा।
दरअसल इन मुसलमानों ने आरसा नाम का एक संगठन बना लिया था। यह संगठन अपने ही सरकार के खिलाफ द्रोह के लिए 2013 में ही प्रशिक्षण ले लिया था।
साल 2012 में रोहिंग्या मुसलमानों में से किसी ने एक बौद्ध का रेप और मर्डर कर दिया था। जिसके बाद बौद्धों ने मुसलमानों के खिलाफ आवाज उठाई थी। मामला हिंसा तक पहुंच गया था। इसी के बाद 2013 में इन मुसलमानों ने रोहिंग्या की सुरक्षा के नाम पर आरसा नाम का एक संगठन बनाया।
2013 में इसने पहली प्रशिक्षण ली। 2016 के अक्टूबर में इसने पहला विद्रोह किया पुलिसकर्मी के खिलाफ। जिसमें 9 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। पश्चात 2017 में म्यांमार सरकार की रोहिंग्या के खिलाफ कार्रवाई निर्णायक हुई।
इसके बाद अफ्रीका का एक इस्लामिक देश गांबिया ने मामले को इंटरनेशनल कोर्ट में ले गया। 2021 में सेना के तख्तापलट के कारण आंग सान सू की आज तक नजर बंद की हुई हैं। लोकतंत्र पूरी तरह से तबाह हो गया है वहां का।
यह परिणाम होता है मरुस्थली कांटो को उपजने देने का।असम के दारांग जिले में मंदिर के जमीन में पोषित हो रहे बांग्लादेशी मरुस्थली कांटे 1970 में बोए गए थे।एक रिपोर्ट के अनुसार आसपास के इलाकों में डाका डालने का काम करते थे।यही क्रम चलता रहा तो 1 दिन ये लोग आरसा जैसा संगठन बना लेंगे।
हिमानता बिसवा सरमा की सख्ती के बावजूद आज इस नए भारत में सांस लेकर इतना तो कह ही सकता हूं कि किसी गांबिया जैसे देश की हिम्मत नहीं कि मोदी के रहते अब ऐसे किसी मामले को इंटरनेशनल कोर्ट में पहुंचा दे। हां, अपने ही देश के कांग्रेसों से हमें सावधान रहने की आवश्यकता है।
अच्छा सुनो
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UN में जो हुआ अब उसकी चर्चा मोदी जी के दौरे की तरह खत्म हो चुकी है , लेकिन वहां की बातें कई मायनो में आने वाले समय में बड़े उलटफेर करेंगी । अफ्रीकी देश चीन की BRI योजना से लगातार पीछे हटते जा रहे हैं और
उनका झुकाव भारत की ओर इसलिए लगातार होते जा रहा है क्योंकि जो चीन अपनी वेक्सिन दूसरे देशों को कर्ज के रूप में देने जा रहा था जबकि भारत ने बड़ा दांव खेला और चीन की पिछली जेब से पैसे निकाल कर मुफ्त वेक्सिन छोटे देशों को बांट दिया ।
हैरान है न कि मोदीजी ने चीन से कैसे पैसे निकलवा लिये 😎
दरअसल ट्रम्प ने जब who को फंड देने से मना किया तो चीन नें अपना दान 2 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 5 करोड़ डॉलर कर दिया था । इसके बाद भारत नें who को नकद धनराशि न देकर कम दरों में वेक्सिन देने और गरीब देशों को
किसान आंदोलन के नाम पर विपक्ष की पोल पूरे देस के सामने खुल चुकी ह ।
एक तरफ ह 72 साल का आदमी जो रात में भी बनती सरकारी इमारतों का काम देखने जाता ह ओर एक तरफ ह कांग्रेस जो हमेशा इसी जुगत में रहती ह की इस भारत को कैसे बन्द किया जाए ।
मगर भारत अब दौड़ पड़ा ह , अब भारत बन्द नही होगा।
किसानों के नाम पर कॉंग्रेस अपनी मृत राजनीति और अवांछनीय नेताओ में जान फूंकने की कोशिश कर रही ह।
कथित किसान नेता इसे जनता का आंदोलन बता रहे ह ओर जनता ही इस आंदोलन से परेशान ह ,
किसी नेता या कॉरपोरेट्स को रत्ती भर भी फर्क नही पड़ रहा आपके इस जमावड़े से।
जनता कांडोलन बताने वाले क्या ये बताएंगे कि इसमे जनता कहा ह , हा सड़क रोक कर दिल्ली के बोर्डरों पर बैठी भीड़ को किसान मत कहना क्योंकि उनकी किसानी देस ओर दुनिया 26 जनवरी को देख चुकी ह ।
आज तक की पत्रकार अंजना कश्यप के पति स्वयं एक सिविल सर्वेन्ट हैं। उन्हें इतना प्रोटोकॉल तो जरूर पता होगा अधिकारी आधिकारिक रूप से बोलने के लिए ही अधिकृत होता है। अधिकारी अगर संयुक्त राष्ट्र संघ में पोस्टेड हो तो उसका एक एक शब्द चुन चुनकर तय किया जाता है।
एक वक्तव्य पर घंटों मंथन होता है, कॉमा फुल स्टॉप तक बार बार चेक किया जाता है फिर कोई अधिकारी उसे संयुक्त राष्ट्र में जाकर पढता है।
ऐसे में उस अधिकारी का बयान लेने के लिए गन माइक उसके मुंह के सामने रखकर घोर मूर्खता का परिचय दिया है।
यह तो भला हो इस महिला अधिकारी स्नेहा दूबे का जिसने इनकी मूर्खता का बहुत शालीनता से उत्तर दिया और हाथ के इशारे से बाहर निकाल दिया। अगर वह इनके झांसे में आ जाती तो उसकी नौकरी भी जाती।
लेकिन ये मूर्खता अकेले अंजना कश्यप ही करती हैं ऐसा नहीं है। यही मूर्खता आज का टेलीवीजन न्यूज है।
जलने दीजिए जिन्हें जलने की बीमारी है बस देश हरा भरा रहना चाहिएआज देश का जितना गैर जिम्मेदाराना और वाहियात विपक्ष आया है वह शायद पहले कभी नहीं था।
मोदी विरोध मैं बेशर्म की तरह पाकिस्तान से सहायता मांगी जाती है कांग्रेस के नेताओं द्वारा भारत की सेना जब एयर स्ट्राइक करती है
तब मजाक उड़ाया जाता है और हमारे पायलट को जब पाकिस्तान द्वारा पकड़ लिया जाता है सब टीवी चैनल के ऊपर पाकिस्तान के कसीदे किए जाते हैं परंतु जब सरकार के दबाव के कारण पाकिस्तान हाथ जोड़कर हमारे अभिनंदन को हमारे क्षेत्र में लौटा कर जाता है तब विपक्ष को सांप सूंघ जाता है?
आज पूरी दुनिया इस बात की प्रशंसा कर रही है जिस तरह से हमारी सरकार ने कोरोना बीमारी का सामना किया और भविष्य में हमारी वैक्सीन को बहुत बड़ा बाजार मिलने वाला है परंतु इसके बावजूद सरकार द्वारा फ्री राशन दिया जाता रहा और आप पूरे देश में चले जाइए
आश्चर्य होता है कि प्रधानमंत्री के दौरे में भारत की विपक्षी राजनीति खामियाँ ढूंढ रही है !
कोशिश भी है और चाहत भी कि किसी तरह दौरा नाकाम हो जाए !
मतलब देश के स्वाभिमान पर मोदी के प्रति बीस बरस से चली आ रही नफरत भारी पड़ गई !
एक ही लालसा कि किसी तरह दौरा विफल हो जाए और मोदी की किरकिरी हो जाए !
इसीलिए टिकैत तक से टैग ट्वीट करा दिया गया !
भारत से बहुत सारी राजनैतिक शक्तियाँ ऐसे प्रयासों में जुटी हैं कि बाइडन किसी भी तरह भारत को दोस्त न मान पाएं ?
मतलब राष्ट्रवाद जाए भाड़ में , बस मोदी फेल हो जाएं । कूटनीतिक तैयारियाँ काम न आएं , कुछ ऐसा हो जाए कि बनते बनते बात बिगड़ जाए ।
खैर ऐसा कुछ नहीं हुआ । प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बाइडन की बीच बहुप्रतीक्षित बातचीत भी हो गई और क्वाड बैठक भी हो गई ।
ये जो 69 साल के नरेन्द्र दामोदर दास मोदी है ना....वो किसकी लड़ाई,किसके लिये और क्यों लड़ रहे है.......???
इन्ही तीन सवालों का जवाब जिस दिन देश का बहुसंख्यक समाज जान जायेगा...विश्वास करिये उसी दिन जातिवाद,क्षेत्रवाद की दीवार ढ़हा कर मोदी के साथ खुल कर खड़ा हो जायेगा...!!
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मोदी भले ही आज हमारी राजनैतिक लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन अब अपनी संस्कृति,सभ्यता और अस्मिता की लड़ाई हमको खुद भी आगे बढ़ कर लड़ना होगा....क्योंकि धर्मयुद्ध का बिगुल बज चुका है....और बेहद शातिर,मक्कार और छल छंद मे माहिर शत्रु से हमारा मुकाबला है...!
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कभी सोचा है कि मोदी आज हैं लेकिन कल...कल क्या होगा...??
इसीलिये सनातन राष्ट्रवाद की वैचारिक अवधारणा...अर्थात वेद,पुराण,श्रृतियों,स्मृतियों,महाकाव्यों,शास्त्रानुकरणीय हर उस व्यवहारिक सिद्धांत और आचरण का हम सबको अनुसरण करना चाहिये,
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