सॉफ्ट और हार्ड हिंदुत्व, धर्मांध राष्ट्रवाद का ही एक रूप है। राजनीति को धर्मांधता से बचना चाहिए। धर्म का आधार ही निजी आस्था है और इस पर तर्क संभव नहीं है। जबकि राजनीति और राज्य की अवधारणा, लोककल्याण और रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य से जुड़े असल मुद्दों के समाधान के लिये हुयी है।
मंदिरों और मज़ारो पर जाकर फ़ोटो खिंचाते राजनीतिक व्यक्ति खुद को धार्मिक घोषित तो करते हैं, पर इसमे उनके आस्थाभाव का कितना अंश होता है, यह तो वही जानें, पर यह धर्मभीरु जनता को अपना धार्मिक चेहरा दिखाने और आस्था के सहारे अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार करना भी उनका एक उद्देश्य होता है।
धर्म और धर्मांधता दोनों अलग अलग चीजें हैं। धर्म जब राजनीति में घुलमिल जाता है तो, जो उत्पाद बनता है वह धर्मांधता होती है। धर्म को यदि आप सच मे समझ चुके हैं तो, धर्मांधता आप को अधर्म ही लगेगी जो, धर्म को उसके मूल उद्देश्य से भटका कर, सत्ता प्राप्त करने का एक साधन बन जाती है।
दुनियाभर के इतिहास में हुए युद्धों का अध्ययन कीजिए तो अधिकतर साम्राज्य विस्तार में धर्म को एक हथियार बना कर इस्तेमाल किया गया है। आस्था पर तर्क का कोई जोर नहीं चलता है और, और जब आस्था अंधी हो जाती है, वही आस्था जो धर्म का मूल प्रेरक भाव होती है, धर्मविरुद्ध आचरण करने लगती है।
धर्म कब अधर्म बन जाता है, यह पता ही नही चलता है। समस्या, धर्म, ईश्वर, उपासना स्थल नहीं है और न ही आस्थावान लोग है, बल्कि समस्या है धर्मांधता। राजनीतिक जमात यह समझ चुकी है कि रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य की समस्याओं का समाधान आसान नही है पर धर्मांधता से सत्ता में जमे रहना सरल है।
सत्ता पाने और सत्ता में जमे रहने का यही शॉर्टकट अब लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपना लिया है। इससे जनता से जुड़े असल मुद्दे प्राथमिकता में पीछे छूट जाते हैं। इन मुद्दों पर कोई भी पार्टी बात भी कम ही करती है। चुनाव में भी इन पर उतनी चर्चा नहीं होती हैं जितनी धार्मिक मसलों पर होती है।
जनता को लगातार धार्मिक मुद्दों पर बरगलाते रहने और सत्ता में जमे रहने की, राजनीतिक दलों की, इस प्रवित्ति को, बदलने के लिये, न केवल उन्हें बाध्य करना होगा, बल्कि उन्हें घेर कर रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के मुद्दों पर लाना होगा। धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल को हतोत्साहित करना होगा।
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होशियार नेता कभी भी कानून व्यवस्था और अपराध स्थिति को लेकर न तो डींगें हांकता है और न ही अपनी पीठ थपथपाता है। अपराध को रोक दिया जाय, यह संभव नही है। पर अपराध का खुलासा हो जाय, अपराधी जेल जांय और उनकी सज़ा हो जाय, यह तो हो सकता है। पर समाज अपराधमुक्त हो जाय, यह असंभव है।
अपराध नियंत्रण के लिये जरूरी है कि पुलिस को बेहतर और संवेदनशील बनाया जाय। पुलिस के भय के बजाय लोगो के मन मे कानून का भय और सम्मान की बात की जाय। कानून कभी भी गैरकानूनी तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है। पुलिस को Law&Order बनाये रखने के लिए गैरकानूनी उपाय अपनाने की छूट न दी जाय।
ऐसा भी होता है कि जब पुलिस बेहतर L&O पर खुशी मना रही होती है, तभी किसी बड़े अपराध की खबर आ जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ नही कि अपनी उपलब्धियों पर, जश्न ही न मनाया जाय। बल्कि यह मान कर चला जाय कि, अपराध कहीं भी, कभी भी, हो सकता है पर उसे प्रोफेशनल तरीक़ो से ही निपटा जा सकता है।
एनसीबी द्वारा आर्यन ड्रग केस में रखे गए पंचनामे के गवाह, आदिल फजल उस्मानी का इस्तेमाल एनसीबी अधिकारियों द्वारा 2020 से कम से कम पांच नारकोटिक्स बरामदगी के मामलों में किया गया है।
दो अन्य लोगों के बारे में सवाल उठाए गए हैं। एक, केपी गोसावी, उस समय एक वांछित अभियुक्त था,जो अब गिरफ्तार है, और मनीष भानुशाली, जिसका भाजपा से संबंध है।
एनसीबी के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें ऐसे गवाहों को बार बार रखना होता है, क्योंकि, ड्रग छापे के दौरान, डर और कानूनी उलझनों से बचने के लिए कम ही लोग फर्द बरामदगी के गवाह बनने को राजी होते हैं। अतः हर बार नया गवाह ढूंढना व्यावहारिक रूप से कठिन होता है।
SIT की जांच रिपोर्ट के अनुसार UP के 69 जिलों में नियुक्त किए गए 5,797 अध्यापकों में से 1086 की डिग्रियां फेक यानी जाली हैं। ये डिग्रियां सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गयी हैं।
इस कृत्य को अंजाम देने वालों में दो बड़े नाम हैं, (1) प्रो रजनीश कुमार शुक्ला जो तब डिप्टी रजिस्ट्रार थे और वर्तमान में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति हैं ।
(2) प्रो गंगाधर पांडा जो तब रजिस्ट्रार थे और वर्तमान में कोल्हान यूनिवर्सिटी, चाईबासा, झारखंड के कुलपति हैं।
प्रो शुक्ला, ICSSR की चयन कमेटी में हाल ही में मेम्बर चुने गए थे जिनके जिम्मे 18 non-ex officio मेम्बर का चयन करने का दायित्व था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोम में है। उन्होंने वहां से ट्वीट किया,
‘रोम में, मुझे महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर मिला जिनके आदर्शो ने दुनियाभर में लाखों लोगों को साहस और प्रेरणा दी है.’
PM की पार्टी और थिंकटैंक RSS के मित्रगण आप की क्या प्रतिक्रिया है इस पर ?
संघ आज भी गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का खुलकर बचाव करता है। भाजपा की एमपी और आतंकी अपराध की मुलजिम, प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में गांधी जी के खिलाफ अभद्र बात कही और उन्हें खुद पीएम भी दिल से माफ नहीं कर पाए,
ग्वालियर में गोडसे का मंदिर बनाने की चर्चा होती है तो मेरठ में गांधी हत्या की मॉक ड्रिल की जाती है, और उसी आरएसएस के एक प्रचारक रहे मोदी जी को विदेश में जाकर गांधी की महानता और उनके व्यक्तित्व के आगे झुकना पड़ता है !
बौद्धिक वर्ग और जाति के प्रश्न पर,
डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा था ----
" हिन्दुस्तान का बौद्धिक वर्ग ,जो ज्यादातर ऊंची जाति का है .भाषा या जाति या विचार की बुनियादों के बारे में आमूल परिवर्तन करने वाली मानसिक क्रांति की सभी बातों से घबराता है ....
.... वह सामान्य तौर पर और सिद्धांत के रूप में ही जाति के विरुद्ध बोलता है . वास्तव में ,वह जाति की सैद्धांतिक निंदा में सबसे ज्यादा बढचढ कर बोलेगा पर तभी तक जब तक उसे उतना ही बढ़चढ़ कर योग्यता और समान अवसर की बात करने दी जाये ....
इस निर्विवाद योग्यता को बनाने में ५ हज़ार बरस लगे हैं .कम से कम कुछ दशकों तक नीची जातियों को विशेष अवसर देकर समान अवसर के नए सिद्धांत द्वारा ५ हज़ार बरस की इस कारस्तानी को ख़तम करना होगा ......
आर्यन खान केस में एक एथिकल हैकर की चिट्टी ने नया ट्विस्ट (New Twist in Aryan Khan Case) ला दिया है। हैकर का दावा है कि उसे शाहरुख खान की मैनेजर पूजा ददलानी का मोबाइल हैक (Pooja Dadlani Phone Hack) करने का ऑफर मिला था। यही नहीं उसे 'आर्यन खान वॉट्सऐप चैट' भी दिखाए गए थे।
'फ्री प्रेस जर्नल' के मुताबिक, इस एथिकल हैकर का नाम मनीष भांगले है। उन्होंने मुंबई पुलिस कमिश्नर को एक चिट्ठी लिखी है। इसमें दो लोग आलोक जैन ओर शैलेष चौधरी का नाम लिया गया है।
मनीष ने चिट्ठी में लिखा है कि 6 अक्टूबर को इन दोनों लोगों ने उनसे संपर्क किया और कुछ अन्य लोगों के साथ ही शाहरुख खान की मैनेजर पूजा ददलानी के फोन कॉल रिकॉर्ड्स हैक करने का ऑफर दिया।