एक पाक्षिक हिंदी पत्रिका हुआ करती थी, "सरिता". महिलाओं में विशेष लोकप्रिय. उसमें एक स्थायी स्तम्भ हुआ करता था, "हमारी बेड़ियाँ". उसका विषय हुआ करता था, हिन्दू धर्म की सभी परम्पराओं को कुप्रथा सिद्ध करना.
कोई लिखता था, मेरी भाभी को डायबिटीज है. उन्होंने डॉक्टर के मना करने के बावजूद करवा चौथ का व्रत रखा. वे और बीमार पड़ गईं, उन्हें हॉस्पिटल में भरती होना पड़ा. किसी ने बताया, मेरे मामा के बेटे का मुंडन किया गया, उसके सर पर घाव था वह और बढ़ गया. वह बहुत बीमार पड़ा और मर गया.
किसी को याद आता था कि किसी ने अपने घर में दीपावली पर लक्ष्मी पूजा की और घर के दरवाजे रात भर खुले रखे...उसके यहाँ चोरी हो गई...यानि जिसने भी हिन्दू धर्म के संस्कारों को माना, उसका कुछ अनिष्ट ही हुआ. आपको यह कभी पढ़ने को नहीं मिलेगा कि किसी बच्ची की ड्रेस में बर्थडे की कैंडल से
आग लग गई और वह जल गई, या कोई न्यू ईयर की पार्टी मनाता हुआ दारू पीकर मोटरसाइकिल से गिर गया और उसे हेड इंज्यूरी हो गई.
हमने "सरिता" को "श्रीमती जी" जैसी कार्टून स्ट्रिप के लिए ही जाना, लेकिन वह पत्रिका एक बहुत बड़े अभियान का एक हिस्सा थी.
एक बड़े से यंत्र का एक छोटा सा पुर्जा भर थी. उस पत्रिका के संपादक थे विश्वनाथ. उनकी एक किताब है, "तुलसीदास हिन्दू समाज के पथभ्रष्टक". उनकी निष्ठा हिन्दू-द्रोह की पॉलिटिक्स से बहुत गहरे जुड़ी हुई थी. वीएस नायपॉल की पुस्तक "India : A million mutinies now"
में विश्वनाथ की विचार प्रक्रिया और उनके क्रिया कलापों का विस्तार से जिक्र है.
आज हिन्दू धर्म की सभी आस्थाओं और परंपराओं पर चौतरफा हमला हो रहा है. यह आज की नई घटना नहीं है. वर्षों वर्षों से इसकी तैयारी चल रही है, और यह आज जो हम होली पर पानी की कमी या दीवाली पर
प्रदूषण का हल्ला सुन रहे हैं, यह उसी अभियान का अधिक एवोल्व्ड रूप है. कल जो हमला वैज्ञानिकता और अंधविश्वास के नाम पर हो रहा था, वही आज पर्यावरण के नाम पर हो रहा है. हम उनके एक हमले को नाकाम करते हैं, तबतक वे दूसरा मोर्चा खोल देते हैं.
एक समय था जब जैन और बुद्ध मत हिंदू धर्म के द्वेष में सारी हद पार गए थे।
जैन समाज का विरोध जहां केवल सैद्धांतिक स्तर पर था वहीं बुद्ध मत हमसे घृणा में हिंदू मूर्तियों के भंजन से लेकर एथेंस को सत्ता केंद्र बनाने तक की जुगत में लग गया था। इनके मठाधीशों के अंदर से राष्ट्रीय चेतना
इतनी लुप्त हो गई थी कि ये कहना शुरू कर दिए थे कि क्या हुआ अगर भारतवर्ष की राजधानी पाटलिपुत्र से एथेंस चला जायेगा तो? बल्कि ये तो हमारे लिए एक अवसर होगा कि बुद्ध के संदेश को यूनान तक ले जा सकेंगे।
समय के साथ दोनों मतों के अनुयायियों को समझ आ गया कि "मातृ छाया" से अधिक
सुरक्षित आश्रय कोई भी नहीं है। यहां जन्मा बुद्ध मत यहीं की भूमि से उखड़ गया और यहां उसके बस नामलेवा भर बचे रह गए। जैन मत के ऐसे लोगों की मानसिकता में भी परिवर्तन आया और फिर हिंदू समाज ने भी उस मत को, उनके तीर्थों और तीर्थांकरों को इतना आदर दिया कि अब उन्हें पृथक कर देखने का
धर्मांतरण के मामले में यूपी एटीएस ने अभी तक 16 गिरफ्तारियां की है और उमर गौतम का लड़का उप्र एटीएस ने अब्दुल्ला गिरफ्तार कर लिया है। धर्मांतरण के लिए हवाला और दूसरे माध्यमों से 57 करोड़ रुपए पकड़े गए और अभी अब्दुल्ला के खाते में 95 लाख रूपए पकड़े गए।
उमर गौतम और दूसरे अन्य 15 लोगों के परिवार के वो सब सदस्य पकड़े जायेंगे जो धर्म परिवर्तन कराने का काम कर रहे हैं।
इस पोस्ट के माध्यम से बताना चाहती हूं कि उप्र में योगी जी की सरकार बनवाना क्यों जरूरी है। पिछली सरकारों के समय में मुस्लिम लोग बिना किसी भय के हिंदुओं का धर्म
परिवर्तन कराते थे क्योंकि पिछली सरकारें उनके साथ खड़ी थीं। यहां तक कि आईएएस इफ्तखारुद्दीन खान नौकरी करने के साथ साथ धर्म परिवर्तन कराता था लेकिन अखिलेश सरकार ने जानबूझकर उसको इस कुकृत्य के छूट दे रखी थी।आज योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में जितनी सतर्कतापूर्ण तरीके से कार्यवाही की है
सरकार का हथौड़ा चल पड़ा,
फर्जी किसान आंदोलन को
खड़ा करने वाले परेशान -
परसों NIA की एक 3 सदस्यों
की टीम सिख फॉर जस्टिस
(SFJ) और कुछ अन्य संगठनों
की भारत में फंडिंग की जांच के
लिए कनाडा पहुंची --
इस टीम को कनाडा के प्रधानमंत्री
ट्रुडो के 4 दिन के निमंत्रण पर ही
भेजा गया है जब ट्रुडो ने आश्वस्त
किया कि टीम को पूरी तरह मदद
की जाएगी --टीम के लीडर एक
IG लेवल के अधिकारी हैं -
NIA के जाने के 24 घंटे बाद ही
भारत ने कनाडा सरकार से मांग
कर दी कि वह SFJ को बैन करे -
कब करता है ट्रुडो, ये अलग बात
है मगर उस पर दबाब जरूर
बनेगा --
मोदी सरकार ने कुछ दिन पहले
कनाडा और अन्य कुछ देशों में
रहने वाले 12 PIOs (Person
of Indian Origin) के वीसा
कैंसिल कर दिए क्यूंकि ये लोग
परोक्ष या अपरोक्ष तरीके से
भारत में अराजकता फ़ैलाने
और भारत विरोधी प्रचार कर
रहे हैं --
हमें यह तो बता दिया गया है कि जिन्ना के आह्वान पर डायरेक्ट एक्शन डे पर अविभाजित बंगाल यानी कोलकाता और नोवाखली में 25 से 30,000 हिंदुओं का कत्लेआम एक झटके में कर दिया गया
लेकिन यह नहीं बताया गया इस कत्लेआम के तीन प्रमुख किरदारों को ईश्वर ने कितनी भयानक सजा दी
डायरेक्ट एक्शन डे के तीन प्रमुख किरदार थे
पहला किरदार था मोहम्मद अली जिन्ना दूसरा किरदार था उस वक्त तत्कालीन बंगाल यानी आज का बांग्लादेश और बंगाल का मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी जो जिन्ना की पार्टी मुस्लिम लीग से था और तीसरा सबसे प्रमुख किरदार था मुस्लिम लीग का यूथ विंग
का प्रमुख शेख मुजीब उर रहमान।इन तीनों ने बड़े पैमाने पर कत्लेआम को अंजाम दिया हालांकि मोहम्मद अली जिन्ना दिल्ली में बैठा हुआ था लेकिन उसके दोनों प्यादे हुसैन शहीद सुहरावर्दी और शेख मुजीबुर्रहमान ने कोलकाता और नोआखली की गलियों में घूम घूम कर हिन्दुओ के कत्लेआम को अंजाम करवाया