सरकार से, न केवल किसान आंदोलन से जुड़े मुद्दों, एमएसपी, गृहराज्यमंत्री की बर्खास्तगी और अन्य कृषि मामलों पर बात होनी चाहिए, बल्कि पागलपन की तरह, सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को बेचने का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उस पर भी सरकार से पूछताछ की जानी चाहिए।+
नए श्रम कानून, बैंको का निजीकरण, इंफ्रास्ट्रक्चर में PPP की शर्तों और अन्य जनहित के मुद्दों भी एकजुट होना पड़ेगा। संसद अब धीरे धीरे अप्रासंगिक होती जा रही है। राज्यसभा से जिस तरह से सदस्यों का निलंबन हुआ है उससे लगता है कि सरकार, किसी भी प्रकार की चर्चा, नहीं चाहती।+
चर्चा, बाद, विवाद संवाद आदि लोकतंत्र के जो मूल भाव हैं उन्हें न तो यह सरकार पसंद करती है और न ही सरकार का थिंक टैंक। किसान आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने एक ओढ़े हुए मज़बूत व्यक्ति का खोल उतार कर उसे अनावृत्त कर दिया।+
गांधी जी की सबसे बड़ी उपलब्धि यही थी कि शांतिपूर्ण सिविल नाफरमानी से न केवल उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपना लक्ष्य पाया बल्कि दुनिया के सबसे ताकतवर साम्राज्य जो अक्सर संसदीय परम्पराओं का स्वघोषित झंडाबरदार होने का दम्भ भरता था को, समय समय पर झुका दिया।+
यकीन कीजिए, सरकार, गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को भी, उनके पद से हटाएगी, और एमएसपी पर भी कोई न कोई गारंटी देगी। यह अलग बात है कि सरकार समर्थक, तरह तरह की बात करते रहेगे। उन्हें पढ़िये और नज़रअंदाज़ कीजिए।+
संसदीय लोकतंत्र बिना शातिपूर्ण आंदोलन के सफलतापूर्वक चल ही नहीं सकता है। जब जब संसद उपेक्षित और अप्रासंगिक होगी, सड़कें मुखर होंगी।+
यूरोपीय फासिज़्म, जहां से संघ अपने विचार ग्रहण करता है को भारत मे दोहराया ही नहीं जा सकता है। इसका कारण भारत का बहुलतावाद है, वाद विवाद संवाद और शास्त्रार्थ की दीर्घ परम्परा है।
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● पुलवामा में आर डी एक्स कौन लाया इन्हे आज तक नहीं पता !
● नोट बंदी में कितने लोग लाइन में लगे लगे स्वर्ग सिधार गए , इन्हे नहीं पता !
● लॉक डाउन में कितने लोग पलायन कर गए , इन्हे नहीं पता !
● ऑक्सीजन की कमी से कितने मरीज मर गए, इनके पास इनका कोई डाटा नहीं !
● मुंद्रा पोर्ट पर उतरी दवाई का मालिक कौन है, इन्हें नहीं पता !
● किसान आंदोलन में कितने किसान धरने में मर गए, इन्हे नहीं पता !
आखिर इन्हे पता क्या है ?
● कितने कांग्रेसी किस राज्य में पाला बदलने वाले है - इन्हे पता है !
● कौन अपने हक़ के लिये सर उठा रहा है, उसे कैसे दुरुस्त करना है - इन्हे पता है !
● कौन इनके सुर से सुर मिला रहा है और, उसे क्या इनाम देना है, इन्हे पता है !
होशियार नेता कभी भी कानून व्यवस्था और अपराध स्थिति को लेकर न तो डींगें हांकता है और न ही अपनी पीठ थपथपाता है। अपराध को रोक दिया जाय, यह संभव नही है। पर अपराध का खुलासा हो जाय, अपराधी जेल जांय और उनकी सज़ा हो जाय, यह तो हो सकता है। पर समाज अपराधमुक्त हो जाय, यह असंभव है।
अपराध नियंत्रण के लिये जरूरी है कि पुलिस को बेहतर और संवेदनशील बनाया जाय। पुलिस के भय के बजाय लोगो के मन मे कानून का भय और सम्मान की बात की जाय। कानून कभी भी गैरकानूनी तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है। पुलिस को Law&Order बनाये रखने के लिए गैरकानूनी उपाय अपनाने की छूट न दी जाय।
ऐसा भी होता है कि जब पुलिस बेहतर L&O पर खुशी मना रही होती है, तभी किसी बड़े अपराध की खबर आ जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ नही कि अपनी उपलब्धियों पर, जश्न ही न मनाया जाय। बल्कि यह मान कर चला जाय कि, अपराध कहीं भी, कभी भी, हो सकता है पर उसे प्रोफेशनल तरीक़ो से ही निपटा जा सकता है।
एनसीबी द्वारा आर्यन ड्रग केस में रखे गए पंचनामे के गवाह, आदिल फजल उस्मानी का इस्तेमाल एनसीबी अधिकारियों द्वारा 2020 से कम से कम पांच नारकोटिक्स बरामदगी के मामलों में किया गया है।
दो अन्य लोगों के बारे में सवाल उठाए गए हैं। एक, केपी गोसावी, उस समय एक वांछित अभियुक्त था,जो अब गिरफ्तार है, और मनीष भानुशाली, जिसका भाजपा से संबंध है।
एनसीबी के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें ऐसे गवाहों को बार बार रखना होता है, क्योंकि, ड्रग छापे के दौरान, डर और कानूनी उलझनों से बचने के लिए कम ही लोग फर्द बरामदगी के गवाह बनने को राजी होते हैं। अतः हर बार नया गवाह ढूंढना व्यावहारिक रूप से कठिन होता है।
SIT की जांच रिपोर्ट के अनुसार UP के 69 जिलों में नियुक्त किए गए 5,797 अध्यापकों में से 1086 की डिग्रियां फेक यानी जाली हैं। ये डिग्रियां सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गयी हैं।
इस कृत्य को अंजाम देने वालों में दो बड़े नाम हैं, (1) प्रो रजनीश कुमार शुक्ला जो तब डिप्टी रजिस्ट्रार थे और वर्तमान में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति हैं ।
(2) प्रो गंगाधर पांडा जो तब रजिस्ट्रार थे और वर्तमान में कोल्हान यूनिवर्सिटी, चाईबासा, झारखंड के कुलपति हैं।
प्रो शुक्ला, ICSSR की चयन कमेटी में हाल ही में मेम्बर चुने गए थे जिनके जिम्मे 18 non-ex officio मेम्बर का चयन करने का दायित्व था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोम में है। उन्होंने वहां से ट्वीट किया,
‘रोम में, मुझे महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर मिला जिनके आदर्शो ने दुनियाभर में लाखों लोगों को साहस और प्रेरणा दी है.’
PM की पार्टी और थिंकटैंक RSS के मित्रगण आप की क्या प्रतिक्रिया है इस पर ?
संघ आज भी गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का खुलकर बचाव करता है। भाजपा की एमपी और आतंकी अपराध की मुलजिम, प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में गांधी जी के खिलाफ अभद्र बात कही और उन्हें खुद पीएम भी दिल से माफ नहीं कर पाए,
ग्वालियर में गोडसे का मंदिर बनाने की चर्चा होती है तो मेरठ में गांधी हत्या की मॉक ड्रिल की जाती है, और उसी आरएसएस के एक प्रचारक रहे मोदी जी को विदेश में जाकर गांधी की महानता और उनके व्यक्तित्व के आगे झुकना पड़ता है !
सॉफ्ट और हार्ड हिंदुत्व, धर्मांध राष्ट्रवाद का ही एक रूप है। राजनीति को धर्मांधता से बचना चाहिए। धर्म का आधार ही निजी आस्था है और इस पर तर्क संभव नहीं है। जबकि राजनीति और राज्य की अवधारणा, लोककल्याण और रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य से जुड़े असल मुद्दों के समाधान के लिये हुयी है।
मंदिरों और मज़ारो पर जाकर फ़ोटो खिंचाते राजनीतिक व्यक्ति खुद को धार्मिक घोषित तो करते हैं, पर इसमे उनके आस्थाभाव का कितना अंश होता है, यह तो वही जानें, पर यह धर्मभीरु जनता को अपना धार्मिक चेहरा दिखाने और आस्था के सहारे अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार करना भी उनका एक उद्देश्य होता है।
धर्म और धर्मांधता दोनों अलग अलग चीजें हैं। धर्म जब राजनीति में घुलमिल जाता है तो, जो उत्पाद बनता है वह धर्मांधता होती है। धर्म को यदि आप सच मे समझ चुके हैं तो, धर्मांधता आप को अधर्म ही लगेगी जो, धर्म को उसके मूल उद्देश्य से भटका कर, सत्ता प्राप्त करने का एक साधन बन जाती है।