सऊदी अरब ने तबलीगी जमात की एंट्री पर बैन लगा दी है। सरकार ने यह भी कहा है कि यह संगठन आतंकवाद के दरवाजों में से एक है। सरकार ने मौलानाओं को आदेश दिया है कि यह संगठन समाज के लिए खतरा है और मस्जिदों में शुक्रवार के उपदेश में इसके बारे में लोगों चेतावनी देना शुरू कर दें।
सरकार ने ट्वीट के माध्यम कई ऐसे सारे विंदु बताये हैं, जिनकी वजहों से तबलीगी जमात देश के लिए खतरा बना है और इसे बैन किया जा रहा है. मंत्रालय ने कहा कि इस्लामिक मामलों के मंत्री डॉक्टर अब्दुललतीफ अल अलशेख ने मौलानाओं से कहा है ताकि अगले शक्रवार को इस आदेश को सबको बताएं।
। भारत में यह संगठन 1926 के करीब अस्तित्व में आया था. तब्लीगी जमात एक सुन्नी इस्लामिक मिशनरी आंदोलन है. यह संगठन मुसलमानों को सुन्नी इस्लाम में लौटने और धार्मिक उपदेश देने का काम करता है. यह एक बेहद पुराना रूढ़वादी संगठन है और अब इसकी पहुंच दुनिया भर के तमाम देशों में हो चुकी है।
दुनिया भर में इसकी 350 से 400 मिलियन सदस्य हैं. सऊदी सरकार का कहना है कि वैसे तो यह संगठन यह दावा करता है कि इसका ध्यान केवल धर्म पर है और यह राजनीति और बहसबाजी से दूर रहता है लेकिन उनके दावे पूरी तरह से खोखले हैं।
Saudi Arabia imposed ban on Tablighi Jamaat says Its One of The Gates of Terrorism -
तबलीगी जमात पर सऊदी अरब का बड़ा एक्शन, 'आतंकवाद का दरवाजा' बता कर लगाया प्रतिबंध – News18 हिंदी - hindi.news18.com/news/world/sau…
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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 13 कंपनियों के ऋण बकाया के कारण लगभग 2.85 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है जबकि यस बैंक और आईएल एंड एफएस जैसे संकटग्रस्त संस्थानों को उबारने का काम करते रहे हैं. बैंकों के संघ यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) ने सोमवार को यह आरोप लगाया।
यूएफबीयू के संयोजक बी रामबाबू ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि संगठन ने बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2021 के विरोध में और सरकारी बैंकों के निजीकरण के केंद्र के कथित कदम का विरोध करते हुए 16 और 17 दिसंबर को पूरे देश में बैंकों की दो दिन की हड़ताल का आह्वान किया है.
यूएफबीयू द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 13 निजी कंपनियों का बकाया 4,86,800 करोड़ रुपये था और इसे 1,61,820 करोड़ रुपये में निपटाया गया, जिसके परिणामस्वरूप 2,84,980 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
भारत एक गरीब और काफी असमानता वाले देशों की सूची में शामिल हो गया है, जहां वर्ष 2021 में एक फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा है जबकि निचले तबके के पास 13 फीसदी है. एक रिपोर्ट में यह कहा गया है.
‘विश्व असमानता रिपोर्ट 2022’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के लेखक लुकास चांसल हैं जो ‘वर्ल्ड इनइक्यूलैटी लैब’ के सह-निदेशक हैं. इस रिपोर्ट को तैयार करने में फ्रांस के अर्थशास्त्री थॉमस पिकेट्टी समेत कई विशेषज्ञों ने सहयोग दिया है.
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की वयस्क आबादी की औसत राष्ट्रीय आय 2,04,200 रुपये है जबकि निचले तबके की आबादी (50 प्रतिशत) की आय 53,610 रुपये है और शीर्ष 10 फीसदी आबादी की आय इससे करीब 20 गुना (11,66,520 रुपये) अधिक है.
● पुलवामा में आर डी एक्स कौन लाया इन्हे आज तक नहीं पता !
● नोट बंदी में कितने लोग लाइन में लगे लगे स्वर्ग सिधार गए , इन्हे नहीं पता !
● लॉक डाउन में कितने लोग पलायन कर गए , इन्हे नहीं पता !
● ऑक्सीजन की कमी से कितने मरीज मर गए, इनके पास इनका कोई डाटा नहीं !
● मुंद्रा पोर्ट पर उतरी दवाई का मालिक कौन है, इन्हें नहीं पता !
● किसान आंदोलन में कितने किसान धरने में मर गए, इन्हे नहीं पता !
आखिर इन्हे पता क्या है ?
● कितने कांग्रेसी किस राज्य में पाला बदलने वाले है - इन्हे पता है !
● कौन अपने हक़ के लिये सर उठा रहा है, उसे कैसे दुरुस्त करना है - इन्हे पता है !
● कौन इनके सुर से सुर मिला रहा है और, उसे क्या इनाम देना है, इन्हे पता है !
सरकार से, न केवल किसान आंदोलन से जुड़े मुद्दों, एमएसपी, गृहराज्यमंत्री की बर्खास्तगी और अन्य कृषि मामलों पर बात होनी चाहिए, बल्कि पागलपन की तरह, सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को बेचने का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उस पर भी सरकार से पूछताछ की जानी चाहिए।+
नए श्रम कानून, बैंको का निजीकरण, इंफ्रास्ट्रक्चर में PPP की शर्तों और अन्य जनहित के मुद्दों भी एकजुट होना पड़ेगा। संसद अब धीरे धीरे अप्रासंगिक होती जा रही है। राज्यसभा से जिस तरह से सदस्यों का निलंबन हुआ है उससे लगता है कि सरकार, किसी भी प्रकार की चर्चा, नहीं चाहती।+
चर्चा, बाद, विवाद संवाद आदि लोकतंत्र के जो मूल भाव हैं उन्हें न तो यह सरकार पसंद करती है और न ही सरकार का थिंक टैंक। किसान आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने एक ओढ़े हुए मज़बूत व्यक्ति का खोल उतार कर उसे अनावृत्त कर दिया।+
होशियार नेता कभी भी कानून व्यवस्था और अपराध स्थिति को लेकर न तो डींगें हांकता है और न ही अपनी पीठ थपथपाता है। अपराध को रोक दिया जाय, यह संभव नही है। पर अपराध का खुलासा हो जाय, अपराधी जेल जांय और उनकी सज़ा हो जाय, यह तो हो सकता है। पर समाज अपराधमुक्त हो जाय, यह असंभव है।
अपराध नियंत्रण के लिये जरूरी है कि पुलिस को बेहतर और संवेदनशील बनाया जाय। पुलिस के भय के बजाय लोगो के मन मे कानून का भय और सम्मान की बात की जाय। कानून कभी भी गैरकानूनी तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है। पुलिस को Law&Order बनाये रखने के लिए गैरकानूनी उपाय अपनाने की छूट न दी जाय।
ऐसा भी होता है कि जब पुलिस बेहतर L&O पर खुशी मना रही होती है, तभी किसी बड़े अपराध की खबर आ जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ नही कि अपनी उपलब्धियों पर, जश्न ही न मनाया जाय। बल्कि यह मान कर चला जाय कि, अपराध कहीं भी, कभी भी, हो सकता है पर उसे प्रोफेशनल तरीक़ो से ही निपटा जा सकता है।
एनसीबी द्वारा आर्यन ड्रग केस में रखे गए पंचनामे के गवाह, आदिल फजल उस्मानी का इस्तेमाल एनसीबी अधिकारियों द्वारा 2020 से कम से कम पांच नारकोटिक्स बरामदगी के मामलों में किया गया है।
दो अन्य लोगों के बारे में सवाल उठाए गए हैं। एक, केपी गोसावी, उस समय एक वांछित अभियुक्त था,जो अब गिरफ्तार है, और मनीष भानुशाली, जिसका भाजपा से संबंध है।
एनसीबी के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें ऐसे गवाहों को बार बार रखना होता है, क्योंकि, ड्रग छापे के दौरान, डर और कानूनी उलझनों से बचने के लिए कम ही लोग फर्द बरामदगी के गवाह बनने को राजी होते हैं। अतः हर बार नया गवाह ढूंढना व्यावहारिक रूप से कठिन होता है।