बंधुओ शुभ संध्या!आज आप सबसे कुछ कहने की इच्छा हो रही है!आपको पता है कि सोशल मीडिया के प्रायः सभी प्लेटफार्म जितनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति का दावा करते हैं उतनी स्वतंत्रता प्रत्येक समुदाय समूह को नही देते इनकी सारी अवधारणायें इनके राजनैतिक आर्थिक और उनके पांथिक अवधारणाओ पर आधारित रहती
हैं।वर्ग विशेष और विचारधारा विशेष के प्रति नरम रवैय्या इनके आर्थिक लाभ हानि के गणित पर निर्भर रहता है।आज हम सबको एक साथ जुड़े रहना एकत्व हिंदुत्व और हिंदूराष्ट्र केलिये अति आवश्यक है।आज हिंदू नामो से भी छद्म हिंदू सक्रिय है जो जाति धर्म रिवाज पर बहुसंख्यक समुदाय को बांटने बरगलाने
मे लगे है हमे उनके षडयंत्र को सतर्कता पूर्वक निरस्त करना है और साथ ही पाजिटिव वातावरण भी बनाना है अतः विनम्र अनुरोध है आवेशजनित आवेग जनित भावुक प्रतिक्रियावादी और सुनी सुनाई खबरों के बजाय पुष्ट सूचनाओ पर संयमित भाषा मे प्रतिक्रिया व्यक्त करें संगठन सशक्त करे भावुक प्रतिक्रिया से
मुझे कयी बार अकारण अपनी नयी पहचान बनानी पड़ी यह हमारा आपका साझा अनुभव है तो क्यों न हम एक दूसरे को सपोर्ट करते हुये गम्भीर अर्थ मे तीखे पर शब्दों मे शालीन रूप मे अपने विचार अभिव्यक्त करे !यदि सहमत हों तो मुखर समर्थन करें।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
शुभ संध्या बंधुओ!
मार्गशीर्ष माह गीता जन्ममास होने से पवित्र है इसी शुक्लपक्ष एकादशी को गीता जयन्ती है अतःएक प्रणाम निवेदन करना आवश्यक है
"पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्!न त्वत्समोSस्त्यभ्यधिकः कुतोSन्यो
लोकत्रयेSप्यप्रतिम प्रभाव ।।
भावार्थ-हे श्रीकृष्ण!आप
ही इस चराचर संसारके पिताहै!पूज्यनीयहै! गुरुओके महान गुरुहैं!हेअनन्त प्रभावशाली भगवन्!इस त्रिलोकीमेआपकी समानता करसके ऐसाकोई नहीहै और बढ़कर होने कातो प्रश्नही नही है।
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्। पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियःप्रियायार्हसि देव सोढुम्।।
भावार्थ-अतःमै आपको साष्टांग प्रणाम करती हूं मै दण्ड की तरह श्रीचरणो मे प्रणत हूं प्रसन्न होइये!जैसे पिता पुत्र का!मित्र मित्रके और पति प्रियपत्नी के द्वारा हुये अपमान को सहन कर लेता है वैसे ही हे देव!आप मेरे द्वारा हुये अपमान कोभी सहने समर्थ हैं अतः क्षमा करें!
त्वमेव माता च पिता