नारद जी एक बार नगर में आए। एक पुराना मित्र उन्हें मिला संसार की विपत्तियों में फंसा हुआ। नारद जी ने कहा "यहां संकट में पड़े हुए हो। आओ तुम्हें स्वर्ग ले चलें"।
उसने कहा "और क्या चाहिए।"
दोनों पहुंच गए स्वर्ग में। जहां सुंदर पत्तों वाला सुंदर छाया वाला कल्पवृक्ष खड़ा था।
नारद ने कहा "तुम इस वृक्ष के नीचे बैठो मैं अभी अंदर से मिल कर आता हूं।"
नारद चले गए तो उस आदमी ने इधर-उधर देखा। सुंदर वृक्ष, सुंदर छाया, धीमी धीमी शीतल वायु। उसने सोचा "कितना उत्तम स्थान है यदि एक आराम कुर्सी भी होती तो मैं उस पर बैठ जाता।"
उसे क्या मालूम वह था कल्पवृक्ष।
उसके नीचे खड़े होकर जो इच्छा की जाए वह पूरी होती है। उसी समय पता नहीं कहां से एक आराम कुर्सी भी आ गई। वह उस पर बैठ गया। बैठकर उसने सोचा 'यदि एक पलंग भी होता तो थोड़ी देर के लिए लेट जाता मैं।"
विचार करने की देर थी कि पलंग भी आ गया।वह लेट गया। लेटते ही सोचने लगा
"'घर में होता तो पत्नी से कहता मेरी टांग दबा दे। मेरा सिर मल दे।"
सोचते ही बहुत सी अप्सराएं वहां उपस्थित हो गई। कोई पांव दबाने लगी, कोई गीत गाने लगी । उस आदमी ने सब को देखा तो सोचा "यदि इन स्त्रियों के साथ मेरी पत्नी मुझे देख ले तो झाड़ू़ लेकर मेरी पिटाई ही कर डाले।"
सोचना अभी समाप्त भी नही हुआ था कि पत्नी हाथों में झाड़ू लेकर आ गई। धड़ाधड़ उसे मारने लगी। वह उठ कर दौड़ा। आगे-आगे वह, पीछे पीछे झाडू लिए हुए पत्नी।
नारद जी ने लौटते हुए उसे दूर से देखा। पुकार कर बोले "मूर्ख सोचना ही था तो अच्छी बात सोचते यह क्या सोच बैठे तुम। यह तो कल्पवृक्ष है।"
सो भाई जब भी सोचना अच्छी बात सोचना। बुरी बातें मत सोचना।
मन और प्राण का गहरा संबंध है। जहां एक जाता है वहां दूसरा भी जाता है। मन को शांत करने के लिए प्राणायाम एक उत्तम साधन है।
अच्छा सोचोगे, तो अच्छा ही होगा।
जय श्री राधे @RitaSinghal6 @iRichaAwasthi @Kashi_Ka_Pandit
दोस्तों ये बात दिल्ली के 'चांदनी चौक' प्रसिद्ध लाल जैन मन्दिर की है। ये लगभग 800 साल पुराना मन्दिर है।इसके बारे में कहते हैं, जब क्रूर औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश अपने सिपाहियों को दिया तो,ये बात लाला भागमल जी को पता चली, जो बहुत बड़े व्यापारी थे।
उन्होंने औरंगजेब की आंखों में आंखे डालकर ये कह दिया था कि तू अपना मुह खोल जितना खोल सकता है, बता तुझे कितना जजिया कर चाहिए?
औरंगजेब तू बस आवाज़ कर, लेकिन मन्दिर को कोई हाथ नही लगाएगा, मन्दिर की घण्टी बजनी बन्द नही होगी।कहते हैं उस वक़्त औरंगजेब ने औसत जजिया कर से 100 गुना
ज्यादा जजिया कर हर महीने मांगा था, और लाला भागमल जी ने हर महीने, बिना माथे पर शिकन आये जजिया कर औरंगजेब को भीख के रूप में दिया था, लेकिन लाला जी ने किसी भी आततायी को मन्दिर को छूने नही दिया।
हृदय और लक्ष्य बड़े शरारती बच्चे थे, दोनों कक्षा 5 के विद्यार्थी थे और एक साथ ही स्कूल आया-जाया करते थे।
एक दिन जब स्कूल की छुट्टी हो गयी तब लक्ष्य ने हृदय से कहा, “ दोस्त, मेरे दिमाग में एक आईडिया है?”
"बताओ-बताओ…क्या आईडिया है?”, हृदय ने उत्सुक होते हुए पूछा।
लक्ष्य-“देखो, सामने तीन बकरियां चर रही हैं।”
हृदय- “तो! इनसे हमे क्या लेना-देना है?”
लक्ष्य-”हम आज सबसे अंत में स्कूल से निकलेंगे और जाने से पहले इन बकरियों को पकड़ कर स्कूल में छोड़ देंगे। जब स्कूल खुलेगा, सभी इन्हें खोजने में अपना समय बर्वाद करेगे,हमें पढाई नहीं करनी पड़ेगी…”
हृदय- “पर इतनी बड़ी बकरियां खोजना कोई कठिन काम थोड़े ही है, कुछ ही समय में ये मिल जायेंगी और फिर सबकुछ सामान्य हो जाएगा….”
लक्ष्य- “हाहाहा…यही तो बात है, वे बकरियां आसानी से नहीं ढूंढ पायेंगे, बस तुम देखते जाओ मैं क्या करता हूँ!”
ट्रेन के इंतजार में एक बुजुर्ग रेलवे स्टेशन पर बैठकर रामायण पढ़ रहे थे, तभी वहां ट्रेन के इंतजार में बैठे एक नव दंपत्ति जोड़े में से उस नवयुवक ने कहा...
बाबा आप इन सुनी सुनाई कहानी कथाओं को पढ़कर क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, इनसे आपको क्या सीखने को मिलेगा ?
अगर पढ़ना ही है तो इंडिया टुडे पढ़ो, अखबार पढ़ो और भी बहुत सारी चीजें हैं जो आपको दुनियादारी की बातें सिखाती हैं, व्यवहारिक ज्ञान देती है, उन्हें पढ़ो।
तभी अचानक ट्रेन आ गई, युवक अगले गेट से और बाबा पिछले गेट से ट्रेन में चढ़ गए।
ट्रेन चलने के थोड़ी देर बाद युवक के चीखने चिल्लाने की आवाज आई।
क्योंकि युवक खुद तो ट्रेन में चढ़ गया था, पर उसकी पत्नी नीचे रह गई, ट्रेन में नहीं चढ़ सकी।
तभी बाबा ने कहा- बेटा तुमने इंडिया टुडे, अखबार व अन्य सैकड़ों पुस्तकें पढ़ने के बजाय अगर रामायण पढ़ी होती