टेन प्लस टू व्यवस्था जब लागू हुई, ग्यारहवी के बाद से, विषय विशेष को चुनना होता था। कुछ राज्यों मे तो नवी से ही विषय चयन हो जाता था। तब एक ट्रेण्ड चला करता था - सबसे होशियार विद्यार्थी गणित लेते, कम होशियार विज्ञान, और कम होशियार कामर्स 9/1
और गदहे आर्ट्स के सब्जेक्ट लेते।
यह वर्गीकरण सत्य नही है, कई अच्छे विद्यार्थी चयन करके भी कोई विषय लेते। लेकिन अधिकांश जिन्हे कैरियर गाइडेंस उपलब्ध नही था, इस आधार पर भेंड़चाल मे विषय चयन करते। कईयों के मां बाप भी लड़के के आर्ट्स लेने पर बड़े शर्मिदा होते और बच्चे को गणित
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लेने का दबाव डालते।
थ्री इडियट मे आपने देखा ही है - "मेरा बेटा इंजीनियर बनेगा ..."
तब व्हाइट कालर जाब्स,गणित-विज्ञान वालों को उपलब्ध थे,दुकानदारी वाले परिवार के बच्चे कामर्स ले लेते। इस तरह भारतीय सोसायटी मे इतिहास, पालिटिकल साइंस,नागरिक शास्त्र, लोक प्रशासन, राजव्यवस्था,
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सोशल थिंकर्स के बारे मे भारतीय समाज मे जानकारी बेहद घटती गई।
इस पीढी को इस विषय मे सारा ज्ञान,ताजा ताजा ही व्हाट्सप से मिला है।सबसे पहले मोबाइल और सूचना तकनीक इस्तेमाल करने वाले सबसे ही वेटरन और सीनियर भक्तहैं। सबसे ज्यादा ब्रेनवाश्डहैं।
अब जब आइटी सेल को बराबर टक्कर देने
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वाले सोर्स आ गए है, सचाई सामने आने लगी है, तो ये दस साल से बनी धारणाओ के गलत तथ्य आधारित होने का कड़वा सच, पचा नही पाते।
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अपना सर्वस्व, अपनी अस्मिता, अपना सम्मान, अपना पूरा स्टैंड ही फेक होने की आत्मस्वीकृति करना बेहद दिल तोड़ने वाला होता है।यह टूटता है, तो गुस्सा आता है,
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गाली निकलती है, और फिर टूटे हुए आत्मसम्मान के टुकड़ों से चीत्कार निकलती है -
"हां, हम भक्त है, हिंदू है, हम देशभक्त हैं, हम गलत है... तो है। हम ऐसे ही हैं ...ऐसे ही रहेंगे। जो करना है कर लो ..."
इस दौर मे सबसे ज्यादा समझदार बिहेव करने वाले आर्ट्स के स्टूडेंट मिलते है।
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सबसे उद्दंड भक्त वे,जो विज्ञान और गणित पढे हुए है, अच्छे छात्र रहे है, और तब के सुपीरियरटी काम्प्लेक्स से ग्रस्त हैं।
ये सभी भारत के सुनहरे दौर मे सस्ती सब्सिडी वाली शिक्षा से आदमी बने है,जाब पा चुके हैं, कमा खा रहे हैं।ये खुद को मेहनतकश और टैक्सपेयर समझते है,बाकी दुनिया को
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मुफतखोर, वामपंथी और मनरेगा का मजदूर।
इन्हे लगता है, देश इनके पैसों से चलता है.. इसलिए बदला ले रहे है।
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इसलिए कितना भी बड़ा इंजीनियर हो, डाक्टर हो, एमबीए वैज्ञानिक या सीए हो, घण्टे पर नही लेता। दो मिनट की बातचीत मे समझ आ जाता है, कि बन्दा तकनीकी शिक्षा का मारा हुआ है।
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कोट, पैंट,टाई, कार,बंगले पर न जाइये, वो मानसिक रूप से दरिद्र है। इस दरिद्रता का खामियाजा हमारी सोसायटी, हमारा लोकतंत्र, और हमारा उनका परिवार भुगत रहा है। वह दरअसल भारत को भाड़ मे झोकने का अपराधी है।
उसकी सीमित तकनीकी शिक्षा का खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है।
~~9/9 @BramhRakshas
■ विज्ञान कहता हैं कि एक नवयुवक स्वस्थ पुरुष यदि सम्भोग करता हैं तो,उस समय जितने परिमाण में वीर्य निर्गत होताहै उसमें बीस से तीस करोड़ शुक्राणु रहते हैं..यदि इन्हें स्थान मिलता,तो लगभग इतने ही संख्या में बच्चे जन्म ले लेते!
वीर्य निकलते ही बीस तीस करोड़ शुक्राणु पागलोंकी तरह
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गर्भाशयकी ओर दौड़ पड़ते है..भागते भागते लगभग तीन सौ से पाँचसौ शुक्राणु पहुँच पाते हैं उस स्थान तक।
बाकी सभी भागनेके कारण थक जाते है बीमार पड़ जाते है और मर जातेंहैं!!!
और यह जो जितने डिम्बाणु तक पहुंच पाया, उनमेसें केवल मात्र एक महाशक्तिशाली पराक्रमी वीर शुक्राणु ही डिम्बाणुको2
फर्टिलाइज करता है,यानी कि अपना आसन ग्रहण करता हैं!!
और यही परम वीर शक्तिशाली शुक्राणु ही आप हो, मैं हूँ ,हम सब हैं !!
कभी सोचा है इस महान घमासान के विषय में?इस महान युद्ध के विषय में?
👉 आप उस समय भाग रहे थे..तब जब आप की आँख नहीं थी, हाथ,पैर,सिर,टाँगे, दिमाग कुछ भी नही था..
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सौभाग्य ना सब दिन सोता है!
देखें आगे क्या होता है!!
आशावादी लोग्स राष्ट्रकवि की इन पंक्तियों को बार बार दुहराते हैं, खासकर तब, जब भाग्य उनका साथ नहीं दे रहा होता है! ..तो वे इन्ही लाइनों के साथ खुद को तसल्ली दे लेते हैं! कुछ अंग्रेजी *
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खोदने वालेHope for the bestयाGood luckभी कहते हुए सुनाई देजातेहैं!!
भूमिका बांधनेका लब्बोलुआब ये है कि हर कोई ये मानकर चलताहै कि एक न एक दिन भाग्य उसका साथ जरूर देगा!!विधाता इतना क्रूर नहींहो सकता!
लेकिन इसी देशमें एक प्रजाति ऐसी भीहै जिसके करम में सौभाग्यवती होनेका सुख लिखाही 2
नहीं विधाता ने!!
बदनसीब इंसान के बारे में कहा जाता है कि करम फूट गये हैं बिचारे के! इनके करम में मानों विधाता ने 300किलो RDXबांधकर विस्फोट करा दिया हो! ऐसा नसीब है इनका!
इस प्रजाति का नाम है -अंधभक्त!!
बिचारे जबसे पैदा लिए... सदमे ही सदमे खा रहे! एक सदमे से उबरे नहीं कि दूसरा
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हाँ तो इसमे क्या बुराई है ?
जब भी मैंने यूनिक हैल्थ आईडी,वैक्सीन पासपोर्ट जैसे विषयों पर लिखाहै ओर लोगोको सर्विलांस के खतरेके बारेमें आगाह किया है तो बहुत से मित्र कहते हैं कि इसमे बुराई क्या है? आपका सारा डेटा स्मार्ट फोन के जरिए गूगल के पास जा ही रहाहै तो अगर अब वह वैक्सीन को
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आधार से लिंक करनेके जरिए सरकारके पास जा भी रहा तो उसमें क्या गलतहै?
ऐसे लोगो के लिए एक सूचना है ...यूपी की योगी सरकारने छात्र-छात्राओं को जो स्मार्ट फोन वितरित कियेहै उन स्मार्टफोन ओपेन करनेपर जो पहला नोटिफिकेशन आता है वो यह है कि यह डिवाइस प्राइवेट नहीं है। आपका आईटी एडमिन इस
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डिवाइस पर आपका डेटा और आपकी एक्टिविटी देखने में सक्षम है।....
इसका सीधा अर्थ यह है कि इस डिवाइस पर जो भी एक्टिविटी होगी वह सरकार की नजर में होगी स्मार्टफोन का कैमरा, गैलरी कंटैक्ट, कंटैक्ट हिस्ट्री तमाम चीजों का परमिशन सरकार के पास है। और आप चाहकर भी इन्कार (Deny)नहीं कर सकते।
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भरत खण्डे इलेक्शन मुनि के आश्रमें एक चूहा रहा करता था।मुनिश्री के चारों ओर उछल कूद करता था।मुनि भी उसको बहुत प्यार करते थे। इसी कारण वो इलेक्शन मुनिश्री के कुछ ज्यादा मुंह लग गया । एक दिन उसको सहमा-सहमा देखकर मुनि ने पूछा बेटा तुमको हमारे लोकतांत्रिक आश्रम में क्या कष्ट है जो
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इतने सहमे हुए रहतेहो?चूहेने कहा बाबा वैसे तो यहां सारा सुख है मगर आपके आश्रममें ये जो इटैलियन बिल्ली है,मुझे देखकर अक्सर गुर्राती रहती है।मुनिने कहा तो इसका निराकरण क्या हो सकताहै?चूहेने कहा कि महाराज आप मुझे भी बिल्ली बना दें।सुनते ही मुनिश्री ने कहा एवमस्तु तुम बिल्ली बन जाओ।
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अब वो चूहा बिल्ली बन गया। जो पहले चूं..चूं..चूं..चूं करता था अब म्याऊं-म्याऊं करने लगी। फिर भी वो सहमी -सहमी रहने लगी। एक दिन फिर मुनिश्री ने पूछा क्या हुआ तुम क्यों सहमी रहती हो। बिल्ली ने दुख से कहा बाबा आपके आश्रम में वो जो वाम पंथी कुत्ता है वो मुझे बहुत परेशान करता है। आप
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