हर चीज पर प्रश्न उठाना लोकतंत्र है, चाहे शहीद जवानों की ज्योति क्यों ना हो! लोकतंत्र में प्रश्न को दबाया नहीं जा सकता!

इसलिए राष्ट्र पर जब भी प्रश्न उठेगा एक राष्ट्रभक्त अवश्य डिफेंस में आएगा। विश्व में शायद ही ऐसा कोई देश होगा जिसने अपने संप्रभुता की लड़ाई में शहादत दी हो और
उसके पास अपना वॉर मेमोरियल ना हो। प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन लड़ा तो मित्र राष्ट्र की तरफ से सहादत के लिए इंडिया गेट भारत में बना दिया।

लेकिन जब 1971 के युद्ध में हमारे 3,843 सैनिक शहीद हुए तो उसी इंडिया गेट में एड हॉक अरेंजमेंट किया गया और अमर जवान ज्योति जलाई गई। न कि अलग से
कोई छोटा सा स्मारक भी बनाया गया। कितने शर्म की बात है यह?

मोदी जी ने 2019 में स्मारक बनवाया। नाम है नेशनल वॉर मेमोरियल। 26,466 शहीद सैनिकों के सम्मान में। आज उस अमर जवान ज्योति को नेशनल वॉर मेमोरियल में ले जाया जाएगा, दोपहर के 3:30 में।

अब इसको लेकर भी प्रश्न उठाया जा रहा। एक
शिगूफा खोज लिया गया है, कहा जा रहा है कि 50 वर्षों से जल रही अमर जवान ज्योति को बुझा दिया जाएगा। दरबारी मीडिया जमकर हेडलाइन काट रहे। जबकि यह राष्ट्र के लिए आत्म स्वाभिमान की बात है।
साभार
@Sabhapa30724463 @badal_saraswat @Sunnyharsh44 @Trishul_Achuk @arunbajpairajan @PNRai1

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Jan 22
🙏सन् 1840 में काबुल में युद्ध में 8000 पठान मिलकर भी 1200 राजपूतो का मुकाबला 1 घंटे भी नही कर पाये।
वही इतिहासकारो का कहना था की चित्तोड की तीसरी लड़ाई जो 8000 राजपूतो और 60000 मुगलो के मध्य हुयी थी वहा अगर राजपूत 15000 राजपूत होते तो अकबर भी जिंदा बचकर नहीं जाता। Image
इस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिसमे 8000
राजपूत और 40000 मुग़ल थे वही 10000 के करीब
घायल थे।
और दूसरी तरफ गिररी सुमेल की लड़ाई में 15000
राजपूत 80000 तुर्को से लडे थे, इस पर घबराकर शेर
शाह सूरी ने कहा था "मुट्टी भर बाजरे (मारवाड़)
की खातिर हिन्दुस्तान की सल्लनत खो बैठता"
उस युद्ध से पहले जोधपुर महाराजा मालदेव जी नहीं गए
होते तो शेर शाह ये बोलने के लिए जीवित भी नही
रहता।
इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की
किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई
जाती है जिसमे हम कमजोर रहे,
वरना बप्पा रावल और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर
Read 7 tweets
Jan 22
मुझे नहीं पता आपमें से कितनों को मुजफ्फरनगर वाला जाट नरसंहार याद है या नहीं, किंतु मुझे भली प्रकार याद है.....

तब देश में कांग्रेस की सरकार थी चौधरी अजीत सिंह कांग्रेस के सहयोगी थे और सरकार में सम्मिलित भी थे ....

तब शांतिदूतों द्वारा एक जाट लड़की से छेड़खानी का विरोध करने पर Image
लड़की के दोनों भाइयों को शांतिदूतों की भीड़ द्वारा दौड़ाकर चक्की के पाटों से कुचलकर मारा गया था.

दोनों लड़कों की स्थिति ऐसी थी कि चेहरा तक पहचानना संभव नहीं था.

तब प्रदेश में समाजवादी सरकार थी आजम खान की तूती बोला करती थी.

मुलायम अखिलेश सपने में भी आजम के तलवे में दबे रहते थे.
मीडिया तब पूरी तरह से कांग्रेस के इशारों पर काम करता था, ये न्यूज़ उनके एजेंडे को सूट नहीं करती थी अतः कवरेज भी नहीं मिली,

तब जाटों द्वारा एक महापंचायत का आवाह्न किया गया और उस आह्वान पर महापंचायत में सम्मिलित होने के बाद वहां से लौटते समय शांतिदूतों की भीड़ द्वारा घात लगाकर
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Jan 20
#पुष्पा
पुष्पा के खास दोस्त का नाम "केशव" था । पुष्पा की मां का नाम "पार्वती" था । उसके पिता का नाम "वेंकटरमण" था । उसकी प्रेमिका का नाम "श्रीवल्ली" था । उसके ससुर का नाम "मुनिरत्नम" था ।

पुष्पा के मालिक का नाम "कोंडा रेड्डी" था । जिस डीएसपी ने पुष्पा को पकड़ा था उसका
नाम "गोविंदम" था ।
जिस थानेदार ने पुष्पा के साथ इंट्रोगेशन किया उसका नाम "कुप्पाराज" था ।

पुष्पा के सबसे बड़े दुश्मन का नाम "मंगलम श्रीनू" था । जो पुष्पा को मारना चाहता था , श्रीनू का साला उसका नाम "मोगलिस" था ।
डॉन कोंडा रेड्डी के विधायक दोस्त मंत्री जी का नाम "भूमिरेड्डी
सिडप्पा नायडू" था ।
लाल चंदन का सबसे बड़ा खरीददार "मुरुगन" था ।

फ़िल्म मुझे इसलिए भी अच्छी लगी क्योंकि इसमें कैरेक्टर वाइज कोई न सलीम था न कोई जावेद था । न रहम दिल अब्दुल चचा थे । न पांच वक्त का नमाजी सुलेमान था ।
न अली-अली था न मौला-मौला था । न दरगाह थी , न मस्जिद थी ,
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Jan 20
जब मायावती ने मुलायम से कान पकड़ कर उठक-बैठक करवाई तो सपाई गुंडे मायावती की हत्या पर आमादा हो गए

दयानंद पांडेय

तथ्य यह भी दिलचस्प है कि अपने को सेक्यूलर चैंपियन बताने वाले मुलायम सिंह यादव पहली बार 1977 में जब मंत्री बने तो जनता पार्टी
सरकार में बने जिस में जनसंघ धड़ा भी शामिल था। मुलायम सहकारिता मंत्री थे , कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री , रामनरेश यादव मुख्य मंत्री। फिर सेक्यूलर मुलायम सिंह यादव पहली बार भाजपा के समर्थन से ही मुख्य मंत्री बने थे। लेकिन बिहार में आडवाणी की रथ यात्रा
लेकिन तब के दिनों जब भी मायावती और कांशीराम लखनऊ आते तो मुलयम सरकार बचेगी कि जाएगी , की चर्चा सत्ता गलियारों और प्रेस में आम हो जाती। सरकार में हर काम के हिसाब-किताब के लिए कांशीराम ने आज के कांग्रेस नेता तब के आई ए एस पी एल पुनिया को मुलायम का सचिव बनवा रखा था।
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Jan 13
..घोड़े की पीठ से उतर कर गधे की पीठ पर बैठना....(एक संस्मरण)....

बात उन दिनों की है जब गाँव गिरांव में प्राइवेट विद्यालयों ने अपना पैर पसारना शुरू ही किया था! ऐसा इसलिये कह रहा हूँ क्यों कि आजकल तो कुकुरमुत्ते की तरह हर तरफ फैले हुए हैं! हाँ तो उस जमाने में अपनी जान पहचान के एक
अध्यापक हुआ करते थे! परास्नातक की योग्यता प्राप्त करने के बाद खाली बैठने से अच्छा सोचे कि कुछ शिक्षण कार्य ही किया जाये!क्यों कि सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरी मिलना तो उस समय भी आसमान से तारे तोड़ लाने जैसी बात थी! इसलिये बिचारे एक स्थानीय CBSE पैटर्न पर चलने वाले सीनियर
सेकेंडरी विद्यालय में पढ़ाना शुरू कर दिये! योग्यता तो थी ही साथ ही पढ़ाने की शैली भी बहुत अच्छी थी इसलिये बड़े जल्दी छात्र प्रिय भी हो गये! और दो तीन महीने के बाद ही विद्यालय की प्रबंधन कमेटी ने उन्हें वहाँ का प्रधानाध्यापक भी बना दिया !क्यों कि जो योग्य और कर्मनिष्ठ होता है
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Jan 11
भाजपा के विरोधी भाजपा को बहती गंगा बोलते हैं।

और यह सच भी है। तात्पर्य यह है कि एक से एक नीच व्यक्ति भी जब तक भाजपा मे रहता है, भले ही ऊपरी मन से सही, दिखावे के लिए ही सही राष्ट्रभक्त और हिन्दुत्व वादी राहत है।

हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या भाजपा
मे आते हैं, तो टीका लगाने लगते हैं, भगवा पहनने लगते हैं, हिन्दू वादी हो जाते हैं। यही स्वामी प्रसाद अब सपा मे गए हैं जल्द ही टोपी पहने रोजा की दावतें करते नजर आएंगे। बुक्कल नवाब सपा से भाजपा मे आते हैं तो हनुमान चालीसा पढ़ते नजर आते हैं। और भी ढेरों उदाहरण हैं। व्यक्ति वही है,
बस जिस विचारधारा वाले दल मे जाता है वैसी ही सोंच हो जाती है।

इसी लिए ध्यान रखिए उम्मीदवार मायने नहीं रखता।मायने रखता है दल की विचार धारा। यही स्वामी प्रसाद जब भाजपा मे थे तो इनको दिए वोट ने राम मंदिर बनवाया।यही जब सपा मे हैं तो इनको दिया वोट राम भक्तों पर गोलियां चलवाता है।
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