राहुल गांधी के दो दिन पहले लोकसभा में दिए गए भाषण पर समूचे भगवा ब्रिगेड और संघी संपादकों को सांप क्यों सूंघ गया?
दरअसल, राहुल ने नरेंद्र मोदी सरकार और उनके दरबारी मीडिया के देश में संसदीय लोकतंत्र को ख़त्म करने की तमाम कोशिशों को पलीता लगा दिया।
नरेंद्र मोदी खिड़कीसे मुंह 6/1
निकालकर दुनिया को यह ज़रूर फेंक सकते हैं कि वे अभिव्यक्ति की आज़ादी को कितना समर्थन देते हैं।
लेकिन अपनी सरकार की नाकामयाबियों पर जवाब तो दूर, विपक्षी सांसदों को बोलने देने से कतराते हैं।
लेकिन चूंकि राहुल प्रश्नकाल नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस में बोल रहे थे,
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लिहाज़ा उन्हें रोक पाना नामुमकिनथा।
और उन्होंने पूरे देशको मोदीकी इसी कथनी-करनीका सच बता दिया, जो पेडिग्री दरबारी मीडिया के सवालों में नहीं आता। पर राहुल का संसद में दिया भाषण था, तो छापना ही पड़ा। सुलगनी ही थी।
दुनियाके लोकतांत्रिक सूचकांकमें भारत खिसकता जा रहाहै।क्यों?
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इस मूल सवाल का मोदी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। इसीलिए मोदी सरकार ने खुद राज्यसभा सचिवालय को चिट्ठी लिखकर कहा है कि इस बारे में कोई भी सवाल न लें।
मैं शशि थरूर का सम्मान करता हूं, क्योंकि वे बड़े कूटनीतिक हैं।
उन्होंने फिर यही सवाल लोकसभा में पूछा है, लेकिन आज सुबह
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सवालों की अंतिम सूची में उनका सवाल नहीं है।
आज इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर खबर छापी है।
क्या नए संसद भवन में मोदी सरकार बहस, सवालों और जवाबदेही मांगने पर घोषित पाबंदी लगाएगी?
कल एक मित्र ने मुझे और कुछ मित्रों को टैग कर पोस्ट किया कि वे अखबार, टीवी नहीं देखते।
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TRP मीडिया बेशक न देखें, लेकिन अखबारों से दूरी मत बनाइये। सिर्फ कुछ पोस्ट पर निर्भर न रहें।
इलेक्शन कमीशन द्वारा हर विधानसभा या लोकसभा सीट पर खर्च की सीमा बाधी गयी है।
प्रत्याशी को अपना बैंक खाता खोलना पड़ता है, जिसमे आने वाली और खर्च होने वाली राशि का आडिट कराकर चुनाव के बाद एक समय सीमा में जमा करना होता है। हिसाब न देने पर आप
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अगलीबार से चुनाव नही लड़सकते
विधानसभा के लिए27लाख की सीमा है।इत्ते में तो काम बनता नही।दस पन्द्रह लाख तो ग्राम प्रधानी चुनावमें खर्च हो जाते है।आप पोस्टर पेम्फलेट आधे दाम पर आधी संख्यामें छपना दिखाकर27लाख की सीमामें एक करोड़ खर्च सकते हैं।लेकिन मौजूदा दौरमें यह भी नाकाफी है।
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तो दो तरीके अपनाए जाते हैं।
पहला- कुछ निर्दलीय कैंडिडेट खड़ा करो। जो विपक्षी के हमनाम हों,या उसकी जात बिरादरी के वोट काट सकें। प्रमुख प्रत्याशी अपने ओवर बजट खर्चे इस निर्दलीय के एकाउंट से एडजस्ट करवा देगा।
इसमें कुछ नारियल,टीवी,मूली छाप निर्दलीय तो खुद ही इसलिए खड़े होते है
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राहुल गांधी ने बड़े सौम्य/सभ्य तरीके से सरस्वती पूजा वाले दिन "हिजाब" का मुद्दा उठाया है..अपने नेता राहुल गांधी की बातों पर अब मैं भी कुछ लिखता हूँ..
★★ "हिजाब" से इस्लाम का कोई धार्मिक रिश्ता नही है..2500 BC से हिजाब भारत, यूरोप, अरब, अफ्रीका में प्रचलित रहा है..
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हिजाब हर धर्म मे अलग अलग रूप में है..हिजाब का रिश्ता एक इलाके की जलवायु और समाज मे इसके प्रयोग से है..
◆ हिजाब शब्द का अर्थ : पर्दा (Curtain), खुद को छिपाना, सेपरेशन, Cover वगैरह..हिजाब हमारी पोशाकों का हिस्सा है..हिजाब कोई "ड्रेस कोड" नही हज बल्कि एक "ड्रेस" है..
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हिजाब मॉडर्न फैशन का महत्वपूर्ण हिस्सा है..
★★मदर मेरी जब गर्भवती थी तब उन्होंने खुद को अलग रखने के लिए हिजाब या घर मे परदों का इस्तेमाल किया था..ऐसे ही अलग अलग धर्मों में आराध्य देवताओं ने हिजाब का इस्तेमाल किया है..
● विश्व के लगभग हर राजपरिवार के सदस्य हिजाब का इस्तेमाल
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बिजनौर विधान सभा से राष्ट्रीय लोकदल पार्टी से डॉक्टर नीरज चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं । डॉक्टर नीरज चौधरी जाट बिरादरी से हैं । उनके ख़िलाफ़ एक FIR दर्ज हुई है कि उन्होंने एक गाँव में पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगवाए हैं । 3/1
ऑल्ट न्यूज़ साबित कर चुका है कि आकिफ़ भाई ज़िंदाबाद के नारे को पाकिस्तान ज़िंदाबाद बनाया गया है । होना तो यह चाहिए था कि उस व्यक्ति को पकड़ा जाता जिसने यह विडीओ एडिट की है क्योंकि भावनाएँ तो वो भड़का रहा है लेकिन प्रशासन को इससे कोई ख़ास मतलब नहीं है । अब बात करें लॉजिक की तो
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भाई एक जाट पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे क्यों लगवाएगा ?? किसी जाट का पाकिस्तान से क्या सम्बंध हो सकता है ??
क्या भाजपा ने मान लिया है कि उत्तर प्रदेश के लोग मूर्ख हैं ?? अगर नहीं हैं तो भाजपा की इस ग़लतफ़हमी को दूर कीजिए । 3/3 @BramhRakshas @NiranjanTripa16
ओवैसी साहब की गाड़ी पर गोली चली । गोली चलाने वाले CCTV कैमरा में आ गए । वो अपने पिस्टल छोड़कर भाग गए । एक पकड़ा गया फिर दूसरे ने सरेंडर कर दिया । हमलावर भाजपा का कार्यकर्ता निकला । उसके फ़ोटो भाजपा के बड़े बड़े नेताओ के साथ हैं ,
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फ़ोटो सोशल मीडिया पर वाइरल होने लगे । न्यूज़ चैनल में बहस शुरू हो गयी । ओवैसी साहब का संसद में इस मुद्दे पर दिया गया भाषण वाइरल होने लगा।सुरक्षा देने और सुरक्षा लौटाने की खबरें चलने लगी।
ओवैसी सपा ,बसपा,कांग्रेस के विरोधी हैं , उनके वोटर जितने भी हैं वो सब भी पहले कांग्रेस,
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सपा या बसपा के वोटर थे । उनके पास कोई एक वोटर भी ऐसा नहीं हैं जो पहले भाजपा को वोट करता हो फिर भाजपा को उनसे क्यों ख़तरा होगा ?? वो भाजपा के वोट तो काट नहीं रहे , फिर भाजपा का कार्यकर्ता उन पर गोली क्यों चलाएगा ?? अगर सपा , लोकदल, बसपा या कांग्रेस का कोई कार्यकर्ता उन पर गोली
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साफ साफ बोलें तो यदि 6th pay commission के जरिये लगभग दो ढाई करोड़ लोगों ( पढ़ें 18 - 20 करोड़ आबादी ) की तनख्वाहें और पेंशन इतनी ज्यादा न बढ़ी होती तो आज न इनके पास बाइक होती , न कार होती , न ये लोन लेकर घर बनवा पाते ,
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न अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों की फीस भर सकते थे,न प्राइवेट इलाज करा सकतेथे. सेविंग के नाम पर धेला न होता और एक बेरोजगार बेटा दस साल उम्र कम कर देता औऱ जवान होती बेटी की सूरत देख कर तकिए में मुंह छिपा कर रोते...
भला हो मनमोहन सिंहका जिन्होंने एक झटकेमें तनख्वाहें
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लगभग दूनी कर दी ... और दूसरी ओर मनरेगा ने ग्रामीण भुखमरी पर लगभग लगाम लगा दी...इसी का नतीजा था कि डॉमेस्टिक सेविंग के दम पर 2008 की महामंदी से जनता की मौत नही हुई...
मिडिल क्लास और ग्रामीण अर्थव्यस्था छठे वेतन आयोग और मनरेगा ही था जो अब तक उनकी हालत थामे हुये था ...
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