इतना याद रखिए, देवता कोई नहीं होता। न नेहरू न सुभाष न कोई और।
द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर के साथ जाना सही निर्णय तो नहीं ही था। रेकर्ड्स बताते हैं कि हिटलर कभी भारत की आज़ादी के पक्ष में नहीं रहा। जो योरप के देशों को ग़ुलाम बना रहा था, वह भारत को क्या आज़ाद कराता?
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कांग्रेस अध्यक्ष रहते बिना साथियों को भरोसे में लिए नेताजी की जर्मनी और जापान के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात एक राजनैतिक चूक थी।
पर्ल हार्बर जैसी घटनाएँ हों या दूसरी जगहों पर जापान का व्यवहार, भरोसा करना मुश्किल है कि जापान या जर्मनी हमारे मुक्तिदाता होते।
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कांग्रेस में वह वामपंथ के पक्ष में लड़ रहे थे, बाहर फासीवाद से समझौता कर रहे थे। आज़ादी की तड़प के बावजूद यह नीति कैसे सही थी? इसका विरोध करने वाले पटेल या नेहरू विलेन क्यों माने जाएँ?
देखें तो वक़्त ने उनका निर्णय ग़लत ही साबित किया। अगर भारत हिटलर के साथ जाता तो क्या मिलता?
अक्सर कहा जाता है कि जहाँ मुस्लिम बहुसंख्य हैं वहाँ लोकतंत्र नहीं। इस थ्रेड में कुछ उदाहरण पढ़िए
1/n *अजरबैजान की कुल आबादी में 8,6,75,000 (92.2%) मुस्लिम है। अजरबैजान एक धर्मनिरपेक्ष (Secular State) देश है। संदर्भ के लिए उनके संविधान के अनुच्छेद 48 को देखें।
*अल्बानिया की कुल आबादी में 2,5,22,000 (79.9%) मुस्लिम हैं और वह आज एक सेक्युलर देश है। लोग अपने धार्मिक विश्वास करने या ना करने और अपने धार्मिक विश्वास को बदलने के लिए स्वतंत्र हैं।
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*बुर्कीना फासो की कुल आबादी में 9,29,2000 (59.0%) मुस्लिम हैं। उनके संविधान के अनुच्छेद 31 में कहा गया है कि “बुर्किना फ़ासो एक लोकतांत्रिक, एकात्मक और धर्मनिरपेक्ष राज्य है।
लोकमान्य के पुत्र श्रीधर तिलक जातिवाद के ख़िलाफ़ लिखते रहे। ज्योतिबा फुले की तारीफ़ की और अम्बेडकर के साथ उनके मित्रतापूर्ण सम्बन्ध थे। डॉ अम्बेडकर ने कहा था - असली लोकमान्य तो श्रीधर हैं। हालत यह कि तिलकपंथियों ने केसरी में उनके लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 1/n
8 अप्रैल 1921 को जब उन्होंने ‘समता संघ’ की स्थापना की तो मुख्य अतिथि थे अम्बेडकर। इसमें सहभोजन का कार्यक्रम किया गया। उन्होंने सहभोजन उत्सव ‘अस्पृश्य मेला’ आयोजित किया। इसमें विघ्न पहुँचाए गए। मारपीट की नौबत आई लेकिन वह झुके नहीं। 2/n
फिर तिलक की मृत्यु के बाद केसरी के अधिकार को लेकर तिलकपंथियों ने उन्हें कोर्ट-कचहरी में घसीटा। आर्थिक संकट बढ़ते गए और मानसिक भी। परेशान होकर श्रीधर ने बम्बई में एक ट्रेन के आगे छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। 3/n
किस्सा नेहरू का
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मोतीलाल नेहरू का परिवार मूलतः कश्मीर घाटी से था। अठारहवीं सदी के आरम्भ में पंडित राज कौल ने अपनी मेधा से मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़सियर का ध्यान आकर्षित किया और वह उन्हें दिल्ली ले आये जहाँ कुछ गाँव जागीर के रूप में मिले।
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किस्सा नेहरू का 2/n
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हालाँकि फ़र्रुख़सियर की हत्या के बाद जागीर का अधिकार घटता गया लेकिन यह परिवार दिल्ली में ही रहा और उनके पौत्रों मंशाराम कौल और साहेबराम तक ज़मींदारी अधिकार रहे। मंशाराम कौल के पुत्र लक्ष्मीनारायण दिल्ली के मुग़ल दरबार मे ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले वकील हुए।
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लक्ष्मीनारायण के पुत्र गंगाधर 1857 में विद्रोह के समय दिल्ली में एक पुलिस अधिकारी थे। 1857 में गंगाधर ने दिल्ली छोड़ दी और अपनी पत्नी जेवरानी तथा दो पुत्रों, बंशीधर और नंद लाल व बेटियों के साथ आगरे आ गए जहाँ 1861 में 34 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।