नॉमिनेशन वाले ट्वीट पे युद्ध छिड़ा हुआ है! जो लोग बैंक के रूल्स को लालफीताशाही या आलस्य मानती है क्या वो मेरे कुछ प्रश्न का जवाब देंगे? 1) अगर बीबी आपकी है या बच्चा आपका है तो उससे एक सादे पेपर पे लिखवा कर क्यों नहीं आते बैंक बैलेंस जानने के लिए?
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2) जब चेक के ऊपर ओवर राइटिंग है और तो क्या चेक इश्यू करते समय आपने नहीं देखा था, देखा था तो उसी समय उस बदलाव को अधिकृत करवाने के लिए खाताधारक का sign क्यों नहीं करवाते! बैंकर कैसे निश्चय करे की आप खाताधारक के पति या पत्नी होकर उसके साथ धोखा नहीं कर रहे होंगे!
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3/n नॉमिनेशन लगाना अत्यंत ही साधारण प्रक्रिया है और अगर नहीं लगा है तो बैंकर कैसे निर्धारित करे की आप ही उस संपत्ति के मालिक हो! हो सकता है अपने भाई बहनों में से सबसे लाउड माउथ आप हो और अपने बाकी के लोगों का हक मार रहे हो!
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4/n लगभग हरेक बैंक में क्वाटरली या मंथली स्टेटमेंट ईमेल पे फ्री में आता है! क्या एक बार बैंक जाके ईमेल अपडेट करते हुए यह एप्लीकेशन नहीं दे सकते की ईमेल पर स्टेटमेंट चाहिए! फिर बैंक से हार्ड कॉपी के लिए 118 रुपए की मांग करने पे गुस्सा क्यों आता है?
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ऐसी बहुत सी बाते हैं जो आप अकाउंट खोलते समय ही निर्देशित कर सकते हो! पहले पासबुक या चेकबुक के मिलने पर देख सकते की कहीं आपके नाम या पता में कुछ प्रोब्लम तो नहीं हुई? जब भी बैंक जाए तो पता कर सकते हैं की खाता में सब सही है या नही! क्या रोकता है इस अधिकार के उपयोग से?
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ये सारी बातें लिखते समय मैंने एज्यूम किया है की आपको मेरे पापा की तरह ही स्मार्टफोन चलाना नहीं आता है!
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There are three terms "Pardanashin" "Burkha Clad" and "ones wering Hijab" legal stand point is clear on "Pardanashin" and are in protected category as per Indian Contract Act 1872 as well!
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However it is categorically said that just because one wears Burkha doesn't imply her to be "Pardanashin"!
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In Satish Chandra vs. Kali Dasi it was said that a woman of rank who lives in seclusion, shut in the Zenana, having no communication except behind the parda or screen with any male persons save a few near relations.
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एक महीने पहले तक देश की इकोनॉमी, किसान आंदोलन, @yuvahallabol जैसे ग्रुप्स, प्राइवेटाइजेशन के विरुद्ध उठती आवाज़, छात्र आंदोलन आदि जैसे सम्मिलित प्रयास ने बहुत मुश्किल से चुनाव का मुद्दा बेरोज़गारी पे आया था! हेल्थ सेक्टर की बात लोग भूल चुके थे!
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फिर अचानक एक मुद्दा उठता है उडुपी में हिजाब का! मिड सेशन रोकना यूं तो किसी भी समझ वाले को चेता दे की कुछ है, पर तंत्र इतना मज़बूत की परीक्षा के 2 महीने रह गए, संविधान फैसला लेगा और जहां तक मेरी समझ है वो यह ही लेगा की यूनिफॉर्म कॉमन होना चाहिए, पर तब तक चुनाव बीत चुका होता!
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आज के समय में अपने TL खंगाल लो तो दिख जाएगा की (including my TL) की बेरोज़गारी, प्राइवेटाइजेशन, किसान, मंहगाई, शिक्षा और हेल्थकेयर से बड़ा मुद्दा है फंडामेंटल राइट्स का हिजाब vs भगवा वाला! पर शायद लोग भूल गए हैं की ये अघोषित इमरजेंसी है! भूखमरो की! बेरोजगारों की!
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