राष्ट्र के साथ"राष्ट्रीय धोखाधड़ी संघ"के धोखे तो खैर अब सबको पता चल ही रहे हैं।लेकिन पितृ पुरुष के साथ जिस लेवल के धोखे किये,उसका कोई जोड़ नही है।
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तो जेल से छूटे सावरकर ने मुंजे पर भरोसा किया,उन्हें हिन्दू महासभा की खड़ाऊ अध्यक्षी देकर चलाते रहे।
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यूथ विंग की तरह संघको भी पोषित किया। 1936तक यह व्यवस्था ठीक से चली,जब तक सावरकर ने इनसे कोई अपेक्षा न की।
फिर1936में सावरकर की राजनीतिक गतिविधियोंसे प्रतिबन्ध हट गया।वो खड़ाऊं को हटाकर खुद हिन्दू महासभाके अध्यक्ष बन गए।
उन्होंने संघ से महासभाके प्रचार/विकास में मदद मांगी, 9/2
लेकिन हेडगेवार, जो उनके ही पालित गुर्गे थे, ने बहानेबाजी और टालमटोली शुरू कर दी।
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दरअसल हेडगेवार सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त नही दिखना चाहते थे। जब भगत, गांधी, सुभाष, नेहरू सरदार वगैरह अंग्रेजो से लड़ ही रहे तो बेकार में भीड़ क्यों बढाना???
इस लाइन को अगले
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संघ प्रमुख गोलवरकर ने भी जारी रखा। खीजकर सावरकर ने कहा-
"संघ के कार्यकर्ता के टूम्ब स्टोन पर लिखा होगा, वो पैदा हुआ, शाखा गया,और कुछ करे बगैर मर गया"
संघ से दुखी सावरकरको जिन्ना का सहारा मिला और वो उनके साथ तीन राज्य में सरकार में शामिल हो गए।
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उन तीनों राज्यो की सरकार
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ने पाकिस्तान बनने का प्रस्ताव पारित किया। इसलिए सावरकर गांधी से बहुत नाराज हुए। इसलिए उन्होंने गोडसे को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।
आशीर्वाद से लैस गोडसे ने गांधी को उड़ा दिया। सावरकर गांधी मर्डर केस में अभियोजित हुए। जनता ने उनका रत्नगिरि का घर फूंक दिया।
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सावरकर तकनीकी आधार पर छूट गए, लेकिन जनता की नजर में गांधी हत्या के अपराधी बने रहे।
साथ ही हिन्दू महासभा छिन्न भिन्न हो गयी।
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महासभा के छिन्न भिन्न पार्ट को जोड़कर वेल्डिंग की गई, उसे ही जनसंघ कहते हैं। इसके एक एक पुर्जे पर 'मेड बाय सावरकर' लिखा था,पर इसकी सवारी करने को
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सावरकर को कभी नही बुलाया गया।
असल मे सावरकर की जीवन भर की जमा पूंजी, याने उनकी पार्टी हड़पकर,नया नाम देकर, उससे सत्ता कमा ली गई।लोग सांसद बने, मंत्री बने,प्रधानमंत्री बने लेकिन सावरकर को1948के बाद कभी इज्जत न दी।
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जनसंघ में उन्हें जीवनपर्यंत न तो अध्यक्ष बनाया, न सदस्य।
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मिलने कभी जाते तो गुपचुप। उदास सावरकर, एड़ियां घिसते,बेचारे गुमनामी में मरे।
हालात यह है कि उनका पोता प्रफुल्ल रूग्ण मानसिक अवस्था मे 2007में पुणे में भीख मांगता पाया गया। सावरकर के नाम पर सत्ता और विश्वगुरु होने का दम्भ पाले लोगो ने अपने पितृ पुरुष को अकेला छोड़ दिया।
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देवी दुर्गा, याने इंदिरा थी, जिन्होंने इतिहास के कूड़ेदान से उठाकर उन पर डाक टिकट निकाला, फिल्म्स डिवीजन की डाक्यूमेंट्री बनवाई। फाइनली सावरकर के नाम को सम्मान मिला, बदनामी कम हुई और संघी धीरे धीरे सावरकर का नाम फिर से लेने लगे।
आज अपयश से भरे उनके जीवन से मुक्ति की वर्षगांठ है। मुक्ति दिवस पर माफीवीर को नमन। उनकी आत्मा सदैव इंदिरा जी की ऋणी रहेगी।
ये। सरासर झूठ है कि स्टूडेंट्स यूक्रेन में फंसे हैं
जी हां, स्टूडेंट्स फंसे हैं लेकिन यूक्रेन में नहीं..... वो फंसे हैं और यहीं भारत में फंसे हैं.... वो फंसे हैं, प्राइवेट स्कूल कॉलेजों के चंगुल में, एजुकेशन लोन की किस्तों में, नॉनप्रैक्टिकल सिलेबस में, बाबा आदम के जमाने की
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मार्किंग व्यवस्था में,सिस्टम से हारे और अढॉक बेसिस पे पढा रहे किसी युवा की क्लास में,खुले चुनाव और बंद स्कूलों वाले सिस्टम में ज़ूम कॉल पे..
पढने के बाद एक्जाम के लिये,एक्जाम के बाद रिजल्ट के लिये,रिजल्ट के बाद नौकरीके लिये और नौकरी के बाद एक अदद छोकरीके लिये..चुनावी नारों में
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फर्जी अखबारों में,एंकर के होठों की लाली में, एफबी ट्विटर पर गाली में..यू ट्यूब टिक-टॉक और रील में,वर्चुअल सेलेब्रिटी बनने के फील में ..स्टूडें ट फंसा हुआ है
फंसा हुआ है झूठे भाषण में मुफ्त के राशन में, फेसबुक पे फर्जी राष्ट्रवाद में और अपने चार बाई चार के कमरेमें गहरे अवसाद में
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भयंकर प्रोपोगेंडा चल रहा है रूस और यूक्रेन के बीच। समूचा पश्चिमी और भारतीय मीडिया एकपक्षीय रिपोर्टिंग कर रहा है।
ऊपर से भारत में बीजेपी ITसेल वाले भी हैं और बिक चुका दरबारी मीडिया वीडियो गेम तक चैनलों में चला रहा है।
बात को ऐसे समझें-
यूक्रेन को 3 तरफ से घेरे रूस के 1.5 लाख
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सैनिकों में से करीब20हज़ार भाड़े के हैं। इनकी वर्दी और रंग-रूप इस कदर समान हैं कि यूक्रेन की सेना उन्हें पहचान नहीं पा रही है।उन्हें लड़ने में भी दिक्कत पेश आ रही है।
भाड़े के सैनिकों ने दुकानों, बैंकों को लूटा है, क्योंकि उन्हें कोर्ट मार्शल का डर नहीं होता।इन्हें रूसी सैनिक
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कहना ग़लत होगा।
दूसरी बात, रोमानिया का रास्ता कल से बंद कर दिया गया है।रूस को आशंका है कि नाटो देश वहां से हथियार और साज़ो-सामान की आपूर्ति कर सकते हैं।
रोमानिया भी अपनी सरहद पर काफ़ी पड़ताल के बाद लोगों(भारतीय बच्चों को भी)दाखिला दे रहा है।घंटों तक वेटिंग चल रही है।यानी30-50
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इसे ही प्रोपेगेंडा कहते हैं
दो दिन पहले सोशल मीडिया पर इस तरह के स्क्रीन शॉट की बाढ़ आ गई थी, युक्रेन के राजदूत के बयान को इस तरह से पेश किया गया जेसे दुनिया में अकेले ही मोदी ऐसे नेता हैं जो पुतिन को युक्रेन में हमला करने से मना कर सकते है, ऐसे ही प्रोपेगेंडा के सहारे कल सांसद
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हेमा मालिनी ने अपने बयानमें कहा,''रूस और युक्रेन में युद्ध चल रहा है.उसमें भी हमारे प्रधानमंत्री बीच में जाकर युद्ध को राकनेकी कोशिश कर रहे हैं.पूरे विश्व के नेता चाहतेहैं कि मोदी जी आगे जाकर कहें कि इस युद्ध को रोको और खत्म करो.पूरा विश्व हमारे प्रधानमंत्री को सम्मान दे रहाहै.
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मीडिया द्वारा ये सारा प्रोपेगेंडा यूक्रेन के राजदूत डॉक्टर आइगोर पोलिखा के दो दिन पहले दिए बयान पर रचा गया, लेकिन कल जब राजदूत आइगोर पोलिखा ने मोदी की कड़ी निन्दा की तो मीडिया यह दिखाने से साफ़ नकर गया राजदूत ने कहा कि अपने देश में रूस की सैन्य कार्रवाई को लेकर भारत के रुख़ से
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कल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन मसले पर वोटिंग हुई जिसमे भारत, चीन तथा यूएई ने वोटिंग में भाग नही लिया।
व्यवहारिक तौर पर वोटिंग में हिस्सा न लेने का अर्थ होता है कि सदस्य देश दोनो पक्षों के प्रति निरपेक्ष है और किसी का भी समर्थन या विरोध नही करता। 3/1
वोटिंग के बाद भारत द्वारा जो बयान जारी किया गया वो संकेत देता है कि भारतीय नीतिकार यूएस के इशारे पर रूस का विरोध कर रहे हैं ( यहां वाक्य ऐसे भी लिखा जा सकता था कि यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं लेकिन दोनो में बहुत बड़ा कूटनीतिक अंतर हो जाता )
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उन लोगों के लिए जो पूछते हैं:"#यूक्रेन क्यों मायने रखता है?"
यही कारण है कि यूक्रेन मायने रखता है। यह क्षेत्रफल के हिसाब से यूरोप में दूसरा सबसे बड़ा देश है और इसकी आबादी है
40 मिलियन से अधिक - पोलैंड से अधिक।
यूक्रेन रैंक:
यूरेनियम अयस्कों के सिद्ध पुनर्प्राप्ति योग्य
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भंडार में यूरोप में पहला;
टाइटेनियम अयस्क भंडार के मामले में यूरोप में दूसरा और दुनिया में 10 वां स्थान;
मैंगनीज अयस्कों के खोजे गए भंडार (2.3 बिलियन टन, या दुनिया के भंडार का 12%) के मामले में दुनिया में दूसरा स्थान;
दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क भंडार (30 अरब टन);
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पारा अयस्क भंडार के मामले में यूरोप में दूसरा स्थान;
यूरोप में तीसरा स्थान (दुनिया में 13 वां स्थान) शेल गैस भंडार (22 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर) में
प्राकृतिक संसाधनों के कुल मूल्य से दुनिया में चौथा;
कोयला भंडार में दुनिया में 7 वां स्थान (33.9 बिलियन टन)
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नाटो के महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने कह दिया है कि नाटो का यूक्रेन में सेना भेजने का कोई इरादा या योजना नहीं है..
ये है अमेरिका..अमेरिका जैसी मक्कारी सीखना आसान नहीं है... यूक्रेन को नाटो में शामिल होने का प्रस्ताव दे देकर अमेरिका ने इस युद्ध की नींव रखी..और आज जब यूक्रेन
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जलने लगा तो अमेरिका किनारे हो लिया..
दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि चीन ने रूस के इस कदम को हमला मानने से ही इनकार कर दिया है... और क्यों नहीं करेगा जी, आखिर उसको भी तो यही करना है ताइवान में,हांगकांग में,नेपाल में, और भारत में भी..
चीन के इस बर्ताव से अब रूस और चीन के
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संबंधों में और प्रगाढ़ता आएगी... और मेरा मानना है कि भारत इस युद्ध में तो तटस्थ बना रहे पर आगे अपने संबंध रूस से सुधारे... रूस ने कभी भारत की कीमत पर पाकिस्तान को गले नहीं लगाया.. आखिर भारत रूस की कीमत पर अमेरिका को गले लगाकर क्या करना चाहता है...
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