मामला कुछ नया सा लगता है, मगर है नही। असल मे बहुत पुराना है, और इस मैथड का उपयोग करने वाले कौन थे, पता है???
अंग्रेज, और उनकी ईस्ट इंडिया कम्पनी।
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तो हुआ ये की कम्पनी ने धन्धा शुरू किया, चीन से हाई क्वालिटी चाय ब्रिटेन में बेचनी शुरू की। ये जादुई द्रव,
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रईसों का पेय था,जबराट पॉपुलर।पूरा ब्रिटेन इसका दीवाना था।
इसका पेमेंट, गोल्ड और सिल्वर में होता। इसे ट्रेड डेफिसिट कहते हैं।जैसे आजकल तेल खरीदना हमारी जेब खाली करता है, अंग्रेजो की जेब चाय ने खाली करनी शुरू की।
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अब सामान के बदले कुछ सामान तो भेजना था चीन को, लेकिन ब्रिटेन
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में कोई ऐसी चीज नही थी, जिसकी चीन को जरूरत हो।
लेकिन अगर ब्रिटिश डर्टी माइंड हार मान ले, तो एम्पायर दुनिया पर राज थोड़ी करता। दिमाग लगाया, और भारत मे अफीम की खेती चालू कर दी। कम्पनी के एजेंट, लोकल जमींदार को पैसे देते...
और जमीन्दार किसान को तभी खेती करने देता, जब वो एक बड़े
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हिस्से में अफीम उगाए।उगाई गयी अफीम कौड़ियों के भाव ली जाती।गंगा के किनारे का इलाका अफीम का अड्डा बन गया।
बनारस से पटना तक और फिर हुगली तक। गंगा अफीम ट्रांसपोर्ट का हाइवे बन गयी।आज भी उत्तर प्रदेश के कई इलाकोंमें अफीम उगती है।
तो इस अफीमको सस्तेमें खरीदकर,अंग्रेज चीन ले जाते,
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और बदले में चाय लेते। फिर चाय को ब्रिटेन ले जाकर सोने के भाव बेचते। हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा चोखा।
चीन में अफीम ने पूरी एक पीढ़ी को तबाह कर दिया। जब राजा ने विरोध किया, तो ब्रिटेन को लड़ने का बहाना मिल गया। 2 अफीम युद्ध हुए।
हां जी, इतिहास चीन में लड़े गए कम्पनी के
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युद्धों को अफीम युद्धों के नाम से जानता है। इस लड़ाई के नतीजे में हांगकांग कम्पनी को मिल गया। जो 1990 तक ब्रिटिश कब्जे में रहा।
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बहुत से भारतीयों ने अफीम के इस व्यापार का जमकर फायदा उठाया है। राजे महाराजे भी अफीम उगवाते, स्मगल करवाते। इसमे इन्वॉल्व छोटे छोटे लोग, जल्द ही।
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बड़े बड़े व्यापारी बन गए।
उस दौर में धनाढ्य हुए सेठो की हिस्ट्री निकालिये।सब अफीम में डूबे मिलेंगे।इनमे से कई, आने वाले वक्त में मुम्बई में जमीन और फैक्ट्री लगाने वाले थे।
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अफीम की कमाई की खुशबू फैली,तो राजस्थान और मध्यभारत में भी अफीम उगाई जाने लगी।मगर ये अफीम इल्लीगल थी।
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इसलिए कि सरकार खुद अफीम का धंधा करे, तो लीगल और दूसरा करे तो इल्लीगल होता है। इस अफीम को चुपके से पार करने के धंधे को स्मगलिंग कहते है। जो तब भी अफसरों के संरक्षण में ही होता था।
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तो लीगल और इल्लीगल, दोनों अफीम के बिजनेस को फंडिंग की जरूरत थी।इसी जरूरत को पूरा करने भारत मे
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पहली बार बैंक बने।कलकत्ता में एक बैंक ऑफ हिन्दोस्तान बना।फिर औऱ भी बैंक आये।भारत मे बैंकिंग का"विकास"हुआ।ये लोन नही, सीधे इन्वेस्ट करते।
बैंकों,और अफीम उत्पादकों के एजेंट पूरे बंगाल बिहार और उत्तरप्रदेश में फैल गये।फसलों का चक्र बदल दिया गया।कर्ज दे देकर सिर्फ वही उगवाया जाता,
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जिसमे कम्पनी और एजेंटों का फायदा था।
तो अफीम,नील और कपास,किसानों को तबाह करने वाली इन तीन कमोडिटी ने भारत के सबसे पुराने,इज्जतदार पूंजी की जड़ें मिलेंगी। किस किसकी खानदानी पूंजी का राज अफीम में है, उनका नाम सर्च करना आपका काम है।
लेकिन मगर नये जमाने के घरानों की तेजी भी तो
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अफीम से ही पोषित हो रही है।नफरत और धर्म की अफीम से।मन्दिर वहीं का नारा लगाकर आप बटन दबाते हैं,चढ़ावा उनकी चौखट तक पहुंचता है।दो सौ साल बाद गंगा फिर से अफीम का हाइवे बनी है।
गंगा के बिन बुलाए मेहमान ने बनारस को इसका केंद्र चुना है,और वहां के लोग लहालोट हैं।लिहाजा शिवकी नगरीमें
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चाय पिलाकर,धर्म की अफीम खूब बांटी जा रही है।अंग्रेजो की ईजाद तकनीक को उनके मुखबिर बखूबी इस्तेमाल किया है।असर पूरे हिंदुस्तान पर हो रहा है।
आज देखना है कि बनारस इस अफीम के व्यापार के खात्मे की शुरआत करेगा,या चिलमबाजी के गहरे दौर में डूब जाएगा।
11 @NiranjanTripa16@BramhRakshas
चुनाव,व्यवस्था से असन्तोष का सेफ पैसेजहै।ठीक वैसे ही,जैसे प्रेशर कुकरमें सीटी होतीहै। जो इतनी भारी होती है कि भाप को रोक सके, लेकिन इतनी हल्की होती है, कि कुकर फटने से पहले उठकर भाप निकाल दे।
"अच्छे दिन आएंगे"से"खेला होबे"और "खदेड़ा होबे'
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तक,नारों के टोन में अंतर महसूस कीजिए।पहला एस्पिरेशन, दूसरा खीज, और तीसरा गुस्सा है। पहला नारा भाजपा के लिए और बाकी दो उसके खिलाफ है।
व्यवस्था जैसी भी हो, नागरिक को एक समय के बाद थकावट और ऊब होने लगती है। सब अच्छा हो, तो और अच्छा चाहिए। सब बुरा हो, तो जल्द से जल्द बदलकर पुरानी
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वाली अवस्था मे लौटने का मन होता है।
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यहीं पर आरएसएस- भाजपा और कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों का अंतर है। कांग्रेस, और दूसरी पार्टियां जानती हैं कि सत्ता आज जा रही है, तो कल फिर आ जायेगी। नो बिग डील..
लेकिन आरएसएस भाजपा... "फाइट लाइक देयर इज नो टुमारो"
भारत मे तेल के दाम बढ़ाने की कोई जरूरत नही है..बल्कि तेल के दाम घटाए जा सकते है..
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◆ भारत का ₹ रूस के रूबल के मुकाबले मजबूत हो चुका है..इस वक्त 1₹ = 1.70 रूबल है..डॉलर को एक बार भूल जाइए
◆ भारत रूस से अपनी क्रूड जरूरत का केवल 1% इम्पोर्ट करता है..
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भारतको किसी की परवाह किए बिना रूस से इम्पोर्टको बढ़ाना चाहिए..
◆रूस रोज1.1करोड़ बैरल/प्रतिदिन क्रूड उत्पादन करता है और70लाख बैरल/प्रतिदिन एक्सपोर्ट करताहै..भारत रूससे लगभग44,000बैरल प्रतिदिन खरीदता है..
★★भारतको रूस से इम्पोर्ट10लाख बैरल/प्रतिदिन का करना चाहिए..रूस भारतके
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ऐतिहासिक रिश्ते रहेहै..रूस को मनाए जानेकी जरूरतहै..
★★सबसे बड़ी बात:रूस के क्रूडका भाव $85है और रूस भारत के पोर्ट्स पर डिलीवरी करता है..यानी मालभाड़ा और इन्शुरन्स भी रूस पेमेंट करता है..ईरान भी भारतको इन्ही शर्तो पर तेल देताहै..
क्या आप उम्मीद कर सकतेहै कि दिल्ली/मुंबई में बस स्टैंड पर एक बड़ा विस्फोट हों इस विस्फोट में लगभग80लोगो मारे जाए और वो भी ऐसे कि उनके शरीर के चिथड़े पोटली बनाकर समेटने पड़ेहों..लेकिन जब इस मामले की पुलिस जांचहो और7साल बाद निचली अदालतका फैसला आए तो किसीभी आरोपी को कोई सजा नहो...
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आप कहेंगे कि ऐसा केसे संभव हैं
यह चमत्कार संभव हुआ है मध्यप्रदेश के पेटलावद ब्लास्ट में आए अदालती फैसले में......
एमपी के झाबुआ जिले के पेटलावद में 12 सितंबर 2015 को बस स्टैंड के पास जिलेटिन छड़ों के गोदाम में हुए भीषण विस्फोट से हुईं 79 मौतों के मामले जिला न्यायालय का फैसला
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आया हैं इसमें मुख्य आरोपी राजेन्द्र कासवां (जिसे विस्फोटमें मृत बतायागया)और सह आरोपी धर्मेन्द्र राठौड़(विस्फोटक सप्लाई का आरोपी)को भी बरी कर दिया गया।विस्फोटक रखने के5आरोपी पहले ही बरी हो चुके हैं।यानी पेटलावद विस्फोट कांड में बनाए गए तीन अलग-अलग केसोंके सभी7आरोपी बरी होगए हैं।
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महिला दिवस की शुभकामनाएं..रात दिन महिला सशक्तिकरण का ढोल पीटोगे..और अगर महिला जरा भी सशक्त हो गयी तो झेल नही पाओगे....सशक्त महिला को रंडी कहोगे...कुतिया कहोगे..वामपंथी रांड कहोगे...महिला को जब जब पुरुष कंट्रोल नही कर पाता,तो उसको रंडी,वैश्या,और 500 रु मे बिकने वाली ही कहता है..
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महिला सम्मान के नाम पर हमाम में हर पुरुष नंगा है..
तस्लीमा नसरीन..
अरुंधती रॉय..
रेखा..
राणा अयूब..
शेहला रसीद..
और ये हर विचारधारा के पुरुष करते हैं.... सिर्फ संघी नही....चूंकि महिलाएं सॉफ्ट टार्गेट होती हैं..और उनकी सारी इज्जत उनके दोनो पैरों के बीच ही होती है..इसलिए पुरुष
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को सदैव अपना टार्गेट पता होता है.....
कोई स्मृति ईरानी को टार्गेट करता है तो कोई अंजना ओम कश्यप को....कोई इंदिरा गांधी के संबंध तलाशने के लिए जॉन मथई के लेख पढ़ता है तो कोई मायावती और कांशीराम पर कीचड़ उछालता है....चाहें कांग्रेसी हो,भाजपाई हो,सपाई हो,बसपाई हो.. पुरुष सिर्फ
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★★ उत्तरप्रदेश :भारत को बचा लीजिए..केवल पेट्रोल डीज़ल गैस ही नही, GSTके रेट भी बढ़ने वाले है..मोदी ने जनता की जेब से 2.5लाख करोड़ और निचोड़ने की साजिश की है..
● अब तक GSTके 4स्लैब है : 5%, 12%, 18% और 28%..यही बहुत ज्यादा है..
👉 अब GST के 3 स्लैब बनेंगे : 8%, 18% और 28%..
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● 5% वाले स्लैब को 8% किया जाएगा और 12% को 18% में विलय किया जाएगा..
◆ 5% को 8% करने से सरकार को 1.5 लाख करोड़ का ज्यादा टैक्स मिलेगा..5% वाले प्रोडक्ट गरीब जनता के इस्तेमाल वाले है..5 किलो अनाज फ्री दे कर लूट लेगा..
2 @BramhRakshas @NiranjanTripa16 @fighterGOKU143
◆ 12% को 18% में विलय करने पर 1 लाख करोड़ ज्यादा टैक्स की कमाई होगी..