कहा जा रहा है, एसएसपी गाज़ियाबाद पवन कुमार के निलंबन का कारण विधानसभा चुनाव की मतगणना के दौरान पुलिस और बीजेपी नेताओं के बीच हुआ एक विवाद है। भाजपा नेताओं ने तभी, मुख्यमंत्री से शिकायत करने की धमकी दी थी।
10 मार्च को विधानसभा चुनाव की मतगणना के दौरान पुलिस ने मतगणना स्थल के 200 मीटर के दायरे में बिना पास वालों को रोकने के लिए बैरियर लगाए थे। दोपहर 2 बजे करीब गाजियाबाद के भाजपा अध्यक्ष संजीव शर्मा, महापौर आशा शर्मा और राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल ने मतगणना स्थल तक जाने के लिए कहा।
पुलिस द्वारा रोकने पर भाजपा नेता हंगामा धरने पर बैठ गए। पुलिस भाजपा नेताओं को गोविंदपुरम चौकी ले गई थी और करीब चार घंटे चौकी में बैठाने के बाद उन्हें रिहा किया गया। पुलिस द्की इस कार्यवाही से भाजपा अध्यक्ष, महापौर और सांसद ने पुलिस पर भाजपा की जीत न पचा पाने का आरोप लगाया।
BJP नेताओं ने, एएसपी आकाश पटेल और एसपी ट्रैफिक रामानंद कुशवाहा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की और साथ ही इनके खिलाफ कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखने की बात कही थी। पवन कुमार भाजपा नेताओं द्वारा पुलिस अधिकारियों की इस प्रकार बेइज्जती किये जाने पर एकदम फ्रंट फुट पर आ गये।
SSP ने रविवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि बिना पास धारक लोगों को बैरियर से आगे न जाने के आदेश उन्होंने ही दिए थे। एएसपी आकाश पटेल और एसपी ट्रैफिक रामानंद कुशवाहा ने अपनी ड्यूटी को अंजाम दिया है। मतगणना के दिन हुए घटनाक्रम की पूरी जिम्मेदारी उनकी है।
कप्तान द्वारा इस तरह बचाव में आने के बाद जहाँ भाजपा नेताओं के हौसले पस्त हुए हैं तो वहीं पुलिस विभाग अपने कप्तान के इस फैसले पर गर्वित हो रहा है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि CM पुलिस कप्तान की हौसला अफजाई करते हुए उन्हें गाजियाबाद का कप्तान बनाए रखते हैं या फिर अपने नेताओं की सिफारिश पर पुलिस का मनोबल गिराते हुए कप्तान का तबादला करके भाजपा नेताओं को कानून व्यवस्था तार-तार करने की छूट देते हैं। #पुलिस#गाजियाबाद
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सुबह से शाम तक काश्मीर पर जनता को बरगलाते है..पर ये नही बताते की गुजरात मे भी धारा 370 जैसी धारा 371 लागू है..गुजरात के कच्छ, सौराष्ट्र में जमीन के अलग कानून है..इन इलाकों में हर सामान्य व्यक्ति जमीन नही खरीद सकता है।
अनु 371 महाराष्ट्र, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में लागू है. इसमे महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यपाल को कुछ विशेषाधिकार है. महाराष्ट्र के राज्यपाल विदर्भ और मराठावाड़ा में अलग से विकास बोर्ड बना सकते हैं. इसी तरह गुजरात के राज्यपाल भी सौराष्ट्र और कच्छ में अलग विकास बोर्ड बना सकफे हैं।
अनुच्छेद 371 के तरह कोई भी व्यक्ति जो हिमाचल प्रदेश से बाहर का वह है राज्य में एग्रीकल्चरल लैंड (खेती के लिए जमीन) नहीं खरीद सकता है. वहीं अगर कोई व्यक्ति हिमाचल प्रदेश का निवासी है और किसान नहीं है तब भी वह खेती के लिए जमीन नहीं खरीद सकता है.
#TheKashmirFiles फ़िल्म देख कर गुस्सा आना और उत्तेजित होना स्वाभाविक है। यह एक सामान्य भाव है। पर यह फ़िल्म कुछ सवाल भी उठाती है कि,
● 1990 में किन परिस्थितियों में कश्मीर से पंडितों का पलायन हुआ।
● जब पलायन हो रहा था, तब क्या इस पलायन को रोकने की कोई कोशिश की गयी थी ?
● उस समय जो भी केंद्र और राज्य सरकार सत्ता में थी, उसकी भूमिका उस पलायन में क्या थी ?
● क्या पलायन को लेकर कोई गोपनीय योजना थी, जिसे पलायन के बाद लागू किया जाना था ?
● क्या ऐसी कोई योजना किन्ही कारणों से लागू नहीं की जा सकी ?
● लम्बे समय तक 1990 के बाद घाटी में अशांति फैली रही, और जब कुछ हालत सुधरने लगी तब क्या सरकार ने कोई ऐसी योजना बनाई कि, कश्मीरी पंडितों की वतन वापसी की जा सके ?
● 1991 से 96 तक देश मे पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। उनके कार्यकाल में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास पर क्या किया गया ?
प्यारे लाल पंडिता जो अपने परिवार के साथ 2011 से जगती टाउनशिप में रह रहे हैं, उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया कि
" इस फिल्म में कश्मीर की अधूरी कहानी बयान की गयी है। हमारे साथ साथ कश्मीर के मुस्लिम और सिख भी विस्थापित हुए थे, लेकिन इस कहानी में उनका कहीं ज़िक्र नहीं है।"
प्यारेलाल पंडिता कहते हैं,
"सरकार कोई पॉलिसी बनाने से पहले जो लोग विस्थापित कैंपों में, जम्मू के जगती में रहते हैं, उनकी पीड़ा को देखते हुए उनके हक़ में फैसला करे न कि उन लोगों के साथ बैठकर फैसला करे, जो कभी कैंपों में रहे ही नहीं और दिल्ली में बैठकर उनकी रिप्रजेंटेशन करते हैं।"
भाजपा सरकार से तीखा सवाल पूछते हुए पंडिता ने बीबीसी हिंदी से साफ़ लफ़्ज़ों में कहा,
'हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि आप कहते थे, पहले की सरकारों ने कश्मीरी पंडितों को उजाड़ा लेकिन जब से केंद्र में आप की सरकार चल रही है आप ने भी कश्मीरी पंडितों की सुध नहीं ली है।'
विस्थापित कश्मीरी पंडित और जम्मू के जगती कैंप में रहने वाले सुनील पंडिता ने कहा है,
'1990 से लेकर आज तक हमारे ओर कश्मीर के लोगों के बीच जो दूरियां थी उसे सिविल सोसाइटी के लोगों ने कड़ी मेहनत करके कम करने का काम किया था लेकिन इस फिल्म की वजह से वो दूरियां और बढ़ गयी हैं.'
(BBC)
"सरकारी अफसर से लेकर मीडिया और सियासतदानों ने हमें हर जगह बेचा है. यह कब तक होता रहेगा. हम स्थाई समाधान चाहते हैं, अपने घर लौटना चाहते हैं, और कुछ नहीं."
सुनील पंडिता इस समय कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडित परिवारों का हवाला देते हुए कहते हैं, 'कम से कम 5000 परिवार इस समय कश्मीर घाटी में रह रहे हैं और वे सब डरे हुए हैं, उन्हें इस बात का डर सता रहा है, कि कहीं कुछ अनहोनी घटना न हो जाये। यहाँ जम्मू में उन्हें भी धमकियां मिल रही हैं।'
बुलंदशहर के स्याना में 2018 में हुई हिंसा को लेकर 36 आरोपियों पर राजद्रोह का मुक़दमा चलेगा। आरोपियों में बजरंग दल का नेता योगेश राज भी शामिल है। योगेश राज सहित 5 आरोपियों पर Insp सुबोध सिंह की हत्या में शामिल होने का आरोप है। हिंसा के दौरान सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी गई थी।
अपर सत्र न्यायालय ने राजद्रोह के आरोप में मुक़दमा चलाने का आदेश दिया है। इससे पहले बुलंदशहर की स्याना कोतवाली पुलिस ने इस मामले में राजद्रोह का केस दर्ज करते हुए सरकार से मुक़दमा चलाने की अनुमति मांगी थी। सरकार से उसकी अनुमति मिल गई थी, लेकिन अदालत में अब याचिका दायर हो सकी थी।
हिंदुस्तान अखबार के अनुसार अपर सत्र न्यायाधीश विनीता सिंघल ने इसकी अनुमति दी है। न्यायालय ने माना है कि 36 आरोपियों ने एक भीड़ के साथ मिलकर क़ानून व्यवस्था को बिगाड़ा, अराजकता फैलाई और हिंसा को प्रोत्साहित किया। ये सब धारा-124ए के अंतर्गत अपराध हैं।
पीएम मोदी ने बस्ती में कहा:
" हमारे पास तेल रिफाइनरियां नहीं हैं, हम कच्चे तेल का आयात करते हैं... उन्होंने (विपक्ष) इस पर कभी ध्यान नहीं दिया।"
असलियत:
● भारत के पास दुनिया के कुल तेल भंडार का केवल 0.3% है।
लेकिन इसकी रिफाइनिंग क्षमता दुनिया की कुल रिफाइनिंग क्षमता का 5.1% है।
● भारत रिफाइनिंग में विश्व में शीर्ष 4 में अग्रणी! और हमारे पीएम कहते हैं कि भारत में तेल रिफाइनरियां नहीं हैं, दूसरों ने ध्यान नहीं दिया!
● तथ्य यह है कि मोदी के शासन के दौरान, भारत का घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन 53 लाख मीट्रिक टन गिर गया, यानी लगभग 33%।
यूपीए के दौरान भारत का घरेलू कच्चे तेल का योगदान 23.5% था। अभी यह सिर्फ 15.8% है।
हां, यही हकीकत है। यही तथ्य है।
भारत के कच्चे तेल के उत्पादन में यह गिरावट अकारण नहीं है। यह विकास का नया डिजाइन है।