दस अतिशय जन्म के समय होते हैं वे हैं―
शरीर की स्वेद रहितता, शारीरिक-निर्मलता, श्वेत-रुधिर, समचतुरस्रसंस्थान, सुगंधित शरीर, अनंतशक्ति, शरीर का उत्तम लक्षणों से युक्त होना, अनुपम रूप, हितमित-प्रिय वचन और उत्तम संहनन ।
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केवलज्ञान के समय होने वाले दस अतिशय ये हैं―
विहार के समय दो सौ याजन तक सुभिक्ष का होना, निर्निगल का दृष्टि, नख और केशों का वृद्धि रहित होना, कवलाहार का न रहना, वृद्धावस्था का न होना, शारीरिक-छाया का न होना, एक मुंह होने पर भी चार मुंह दिखायी देना,
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(३/५)
उपसर्ग का अभाव, प्राणिपीड़ा का अभाव और आकाश-गमन ।
चौदह अतिशय देवकृत होते हैं ।
जीवों में पारस्परिक मैत्रीभाव, मंद सुगंधित वायु का बहना, सभी ऋतुओं के फूल और फलों का एक साथ फूलना-फलना, दर्पण के समान पृथिवी का निर्मल होना,
एक योजन पर्यंत पवन द्वारा भूमिका निष्कंटक किया जाना, स्नतिककुमार देवों द्वारा सुगंधित मेघवुष्टि का होना, चलते समय चरणों के नीचे कमल-सृष्टि का होना, पृथिवी की धन-धान्य आदि से पूर्णता रहना, आकाश का निर्मल होना, दिशाओं का धूल और धुएँ आदि से निर्मल होना, धर्मचक्र का आगे-आगे चलना, 👇
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अर्द्धमागधी भाषा, आकाश में द्रव्यों का होना और आठ मंगल द्रव्यों का रहना ।
1. तीर्थंकर केवली- जिनके तीर्थंकर नामकर्म का उदय
होता है व् जिनके कल्याणक होते है
2. उपसर्ग केवली - जिनके मुनिदशा में उपसर्ग होता है
3. मूक केवली- जिनका धर्मोपदेश नहीं होता
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(२/४) 4. सातिशय केवली- जिनके केवलज्ञान में अतिशय होते है
5. सामान्य केवली- जिनके समवशरण की रचना नहीं होती और कोई भी अतिशय नहीं होता। गंध्कुती की रचना होती है तथा धर्मोपदेश होता है।
6. अंत:कृत केवली - केवल ज्ञान होने पर अंतर्मुहुरत में ही सिद्ध हो जाते है।👇
(३/५) 7. अनुबद्ध केवली- जो श्रेणीबद्ध होते है- क्रम से एक अरिहंत से सिद्ध हुए और
उनके शिष्य को केवलज्ञान हो जाता है ( जिस समय महावीर भगवान् को निर्वाण हुआ उसी समय गौतम गणधर को
केवलज्ञान हुआ) 👇