कुछ लोग सबेरे से ही एक एक-दूसरे को मजदूर दिवस की बधाई दे रहे हैं।इनमें ज्यादातर पत्रकार बिरादरी है। जो खुद को मजदूर कहती है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि उनसे ऐसा क्या काम लिया जाता है जो वे खुद को मजदूर समझने लगे हैं?दरअसल आप ने खुद ही खुद को मजदूर समझना शुरू कर दिया है, आपने अपना
काम छोड़ दिया है,पढ़ना-लिखना छोड़ दिया,सवाल करना छोड़ दिया है, जो आपका सबसे जरूरी काम था।दफ्तर में 8 घंटे सिर्फ कलर्क की तरह काम करेंगे तो वो काम मजदूरी ही लगेगा। अपने काम की इज्जत कीजिए खुद की कीमत समझिए, ऐसे वक्त में जब नेता जनता को आसानी से गुमराह कर रहे हैं, उस वक्त में अपने
पेशे की एहमियत समझिए।हम बेहद जरूरी हैं,बेहतर समाज के लिए, सरकार के लिए और लोकतंत्र के लिए भी। जब आप अपने हिस्से की पत्रकारिता करने लगेंगे तो आप ये कभी नहीं कहेंगे, कि अब कोई पत्रकारिता नहीं करता, मीडिया बिका हुआ है,क्योंकि तब आप एक शख्स को जानते होंगे, जो पत्रकारिता करता है और
बिका हुआ नहीं है...और वो आप खुद होंगे। दूसरों का तो पता नहीं लेकिन मैं तो पत्रकार हूं और ‘सिर्फ’ पत्रकारिता करने की कोशिश करता हूं,और मुझे अपने काम पर गर्व है।जिनका दिन है बधाई उन्हें ही लेने दीजिए, उनकी समस्याओं को सामने आने दीजिए, उनकी बेहतरी के लिए काम करिए।
खुद को मजूदर कहना और सही में मजूदर होने में फर्क है। इससे जो सही में मजदूर हैं..आप उनकी समस्याएं,उनकी लड़ाई को हल्का कर देते हैं। जैसे कुछ लोगों ने खुद को चौकीदार लिखकर असली वालों की तकलीफों को छुपा दिया था।
मेरी चिंता मुसलमान नहीं है, मेरी चिंता पाकिस्तान भी नहीं है। मैं हमेशा यही सोचता हूं कि कहीं मेरे बच्चे, मूर्ख-धार्मिक, दूसरों से नफरत करने वाले, पिछड़ी सोच वाले तो नहीं बन रहे ? मैं कोशिश करता हूं कि मेरे बच्चे, सारी दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने
वाले, बुद्धिमान तर्कवान खुले दिमाग के और वैज्ञानिक सोच वाले बनें।
खुद हमेशा उदारता, खुले दिल और विज्ञान की बात फैलाता हूं। कहीं मुझे, प्रकारांतर में भी एक भी शब्द जातीय धार्मिक नफरत का बोलते या बताते न सुन सकें। वही बातें सीधे अपने बच्चों को बताता हूं । मैं हमेशा कट्टरता का
विरोध करता हूं, नफरत का विरोध करता हूं, जहालत का विरोध करता हूं ।
बच्चों को बताता हूं कि तुम्हारा हिंदू घर में पैदा होना महज एक इत्तेफाक है ।तुम मुसलमान घर में भी पैदा हो सकते थे । तुम्हारा इस जाति में पैदा होना भी एक इत्तेफाक है।।तुम दूसरी जाति में भी पैदा हो सकते थे
तस्वीर में दिख रहे शख्स को आप आसानी से पहचान गए होंगे...जी हां ये @helmet_man_ ही हैं जो अक्सर आपको गाड़ी में भी हेलमैट पहने दिख जाते होंगे...इनसे मुलाकात के बाद पता चला कि इन्होंने अपने एक दोस्त जिनकी मौत हेलमेट ना होने की वजह से रोड एक्सीडेंट में हुई थी और उसके बाद इन्होंने
हेलमेट को अपना मिशन बना लिया और अबतक करीब 55 हजार हेलमेट बांट चुके हैं...इसी काम के चलते इनकी नौकरी चली गई,गांव की 3 बीघा जमीन बिक गई और ग्रेटर नोएडा में एक घर था वो भी बिक गया और फिलहाल किराए पर रह रहे हैं परिवार में पत्नी हैं और एक प्यारा सा बच्चा है...ये कहानी सब जानते होंगे
टीवी पर अखबारों में सब इनकी तारीफ करते हैं लेकिन क्या कोई सोचता है कि इनके पास हेलमेट बांटने का पैसा कहां से आता है और आगे कहां से आएगा...?
वैसे मैं अक्सर कहता हूं कि अगर समाज को अपने लिए हीरो चाहिए तो उसे उसका संरक्षण भी करना चाहिए...अगर रवीश कुमार समाज के लिए काम कर रहे हैं और
क्यो??क्योकि यह आस्था का मसला था।
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सचाई यह थी,कि 4000 साल पहले वहीं, उस भूखंड पर राम के जन्म के कोई प्रमाण नहीं थे।प्रोपगण्डा तो महज कुछ बरस पहले, रात के अंधेरे मे घुसपैठ कर रखी गई मूर्तियों पर शुरू हुआ था।
इस प्रोपगैंण्डे
से जगी आस्था का स्थान, टस से मस करने को आप तैयार नही थे।लेकिन अमर जवानों के अवदान के लिए बनी ज्योति को बुझाकर, कहीं और जला लेना आपको सामान्य लगा।
साबित हुआ कि आपकी आस्था और आस्था का केन्द्र चलायमान है,बदल सकता है,सुविधा पर निर्भर है।
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तब मंदिर 100-200 मीटर खिसका कर बनाने
को तैयार हो जाते,तो 1991 मे ही बन जाता। आने वाली पीढियों के लिए यह नफरत,धृणा और संदेह का माहौल न होता। आपकी गणना से बेहद बेहद ज्यादा कीमत चुकाई गई,क्येाकि वहां राष्ट्र की आस्था हिलने को तैयार नही थी।
एक शब्द खूब इस्तेमाल हो रहा है लाभार्थी, ध्वनित यह होता है कि यह जनता का वह वर्ग है जिस पर सरकार की कृपा हो रही है,उसे कुछ ऐसा लाभ पहुंचाया जा रहा है जो समाज के अन्य वर्गों को नही पहुंचाया जा रहा|आप के ऊपर हम कोई विशेष कृपा कर रहे है जो अन्य लोगो के प्रति भेदभाव है मगर फिर भी हम
आपके ऊपर कर रहे है|लाभार्थी वर्ग की पूरी मनोरचना इस रूप में निर्मित की जा रही है|
यह शब्द उन वर्गों के लिए अपमानजनक है| उन्हें लगता है कि उनके ऊपर कोई अहैतुकी कृपा की जा रही है जिसके योग्य वह नही है| विडंबना ये है कि इन लाभार्थियों को यह नही पता कितुम्हे जो 100,150 रुपल्ली का
लाभ दिया जा रहा है ये मात्र दो लीटर पेट्रोल के टैक्स के बराबर है | बाकी जितना सौदा सुलुफ तुम खरीदते हो उन सब चीजों पर भी पूरा टैक्स भरते हो उसकी तो कोई गिनती ही नही |
विडंबना यह भी है कि 11 लाख करोड़ का जो लोन NPA हो गया है , वह भी तुम्हारा ही पैसा है असली लाभार्थी वह कर्जखोर
वह आता,बगल की दूकान से एक लीटर का दूध का पैकेट लेता और मुझसे मेरी दुकान पर आकर कहता ,"भाई एक थैली देदे।"
मैं कहता - एक लीटर दूध के लिए थैली मांग रहे ? दूध तो थैली मै ही है।
वह कहता - भाई,आज देदे।
मैं कहता नहीं दूंगा।
वह बोलता - कल दोगे ?
मैं कहता कल भी न दूंगा।
वह बोलता मै
डेली मांगूंगा। एक दिन दोगे जरूर।
अगले दिन वह फिर आ जाता।विश्वास भरे लहजे में कह ता ,"देख लेना भाई,अब तो मैं रोज थैली की मांग करूंगा,एक दिन जरूर आएगा जब तुम मुझे थैली दोगे।"
मैंने कहा -ये तुम्हारा वहम है..
वह मुस्कुराता और चला जाता। अब वह रोज आने लगा था। आकर थैली की मांग करता ..
मैं ना बोल देता और वो मुस्कुराता हुआ चला जाता ,जैसे कह रहा हो .'भाई एक दिन मैं जीत जाऊंगा और तू हारेगा।"
पंद्रह बीस दिन ऐसे ही चलता रहा,वह आता थैली मांगता और मैं ना कह देता,वो चला जाता। अब तो उसके इस नोक झोंक का मैं आदि हो चुका था। वह सुबह करीब ग्यारह बजे आता था। दुकान के सामने
ये तस्वीर गौर से देखिए शायद ये तस्वीर आपको भी गलत के खिलाफ खड़ा होने की हिम्मत दे जाए..
एक ऐसे दौर में जब चुनाव आयोग जैसी संस्था प्रधानमंत्री पर एक्शन लेने से कतरा रही हैं, खुलेआम आचार संहिता की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।उस दौर में आंखों के सामने से निकली ये तस्वीर बेहद चौंकाने
वाली और हिम्मत देने वाली है...जहां मंच पर नीतीश कुमार,सुशील मोदी,@ShatruganSinha जैसे दिग्गज बैठे हों और मंच से भाषण दे रहे हों तब के उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी,जो ना केवल डिप्टी पीएम थे बल्कि बीजेपी के तेज तर्रार नेता भी थे। सब ठीक चल रहा था तभी मंच पर एक शख्स चढ़ता है और
आडवाणी की तरफ मुखातिब होकर पूरे आत्मविश्वास के साथ कहता है ''Your time is over sir!' मंच पर मौजूद हर शख्स चौंक जाता है,आडवाणी सन्न रह जाते हैं और चौंकते हुए उस शख्स की तरफ देखते हैं..लेकिन वो शख्स घड़ी की तरफ इशारा कर और माइक पर हाथ रख,दुगने आत्मविश्वास से कहता है