28 जुलाई 1914 को छिड़ा प्रथम विश्वयुद्ध
11 नवंबर 1918 को खत्म हुआ था.
भारत तब आज से कहीं बड़ा हुआ करता था. पाकिस्तान और बांग्लादेश ही नहीं, श्रीलंका और म्यांमार (बर्मा)भी ब्रिटिश भारत का हिस्सा हुआ करते थे. उस वक्त भी सैनिक और असैनिक किस्म के
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कुल मिलाकर लगभग 15 लाख लोग अल्प अवधि यानी 4 सालों के लिए भर्ती किए गए थे.
जिन्हें "भाड़े का सैनिक" कहा जाता था..
जिनमें से करीब छह लाख लड़ने-भिड़ने के लिए और लगभग पौने पांच लाख दूसरे सहायक कामों के लिए अन्य देशों में भेजे गए. इस दौरान एशिया,अफ्रीका और यूरोप के विभिन्न मोर्चों
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पर कुल मिलाकर करीब आठ लाख भारतीय सैनिक जी-जान से लड़े. इनमें74,187मृत या लापता घोषित किए गए और करीब 70 हजार घायल हुए.
ये वो भारतीय थे जो पहली बार किसी युद्ध में इस्तेमाल हो रही भारी तोपों, टैंकों और ज़हरीली गैसों वाली‘औद्योगिक युद्ध पद्धति’से भी अपरिचित थे,और यूरोप की हड्डियां
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जमा देने वाली बर्फीली ठंड से भी.लड़ते-मरते वे थे,नाम होता था अंग्रेज़ों का.
इस युद्ध में लड़े किसी भी भारतीय(भाड़े के सैनिक )को कोई ऊंचा अफसर नहीं बनाया गया.न ही कभी यह माना गया कि इन भाड़े के भारतीय सैनिकों के बलिदानों के बिना मानव इतिहास के उस पहले विश्व युद्ध में ब्रिटेन की
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हालत बहुत बुरी हो जाती...
कुल मिलाकर लगभग डेढ़ लाख भाड़े के भारतीय सैनिक उस युद्ध में हताहत हुए. पर आज न तो भारत उन्हें याद करता है और न ही पश्चिमी देश, जिनकी विजय के लिए वे लड़ मरे थे....
5 @MadhuKothari9 @NiranjanTripa16
क्या आप जानते हैं 1938 में शुरू किया गया "नेशनल हेराल्ड" जब बंद हुआ तब केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकार थी?
साल था 2008.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस ऐतिहासिक न्यूज़पेपर को आर्थिक कारणों से बंद किया गया था जबकि उस वक्त देश की अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी.
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पी पीचिदंबरम वित्त मंत्री थे.20 % की बढ़ोत्तरी कर यूपीए सरकार ने शिक्षा का बजट 35हज़ार करोड़ कर दिया था. हम सब खुश थे.
ध्यान दीजिए इधर सिर्फ शिक्षा का बज़ट बढ़ाकर कांग्रेस सरकार ने35हज़ार करोड़ रुपये किया था.उधर"नेशनल हेराल्ड"बंद हो रहा था.
कांग्रेसकी मुट्ठी में ट्रिलियन
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डॉलर की इकॉनमी थी लेकिन फिर भी"नेशनल हेराल्ड"बंद हो रहा था."नेशनल हेराल्ड"को लूटकर गांधी परिवार को अमीर होना था.क्या इसलिए?
उस परिवार को अमीर होना था जिसके घर से तीन व्यक्ति पहले ही प्रधानमंत्री हो चुके थे. जिसने 1947 के पहले ही 200करोड़ की अपनी निजी प्रॉपर्टी देश के नाम लिखवा
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अटल बिहारी वाजपेयी बीमार थे,तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे।आज सोनिया गांधी बीमार हैं तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं।राजीव गांधी ने विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी को बहाना बनाकर विदेश भेजा था और उनका इलाज करवाया था।आज सोनिया गांधी बीमार हैं, अस्पताल में हैं तब नरेंद्र मोदी ने
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उनपर ईडी छोड़ दी है।
1988 की बात है। अटल बिहारी सांसद हुआ करते थे। उनको किडनी की बीमारी हो गई। इसके बारे में बहुत कम लोगों को पता था। इसका इलाज विदेश में हो सकता था लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि कहीं विदेश जाकर ढंग से इलाज करा लें। यह बात कहीं से राजीव गांधी को पता चली।
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राजीव गांधी ने अटल को बुलवाया और उनसे आग्रह किया कि आप न्यूयार्क में हो संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में शामिल होंगे तो मुझे खुशी होगी। आप प्रतिनिधिमंडल में शामिल हो जाइए। अटल न्यूयार्क गए तो राजीव गांधी ने वहां उनके इलाज की भी व्यवस्था करा दी। अटल स्वस्थ होकर वापस लौटे।
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भारत के चालू व्यापार खाते का घाटा एक साल में लगभग दोगुना बढ़ा है।2021-22 में यह 23.91बिलियन डॉलर पर था। 2022 में 43.81 बिलियन पर आ गया है।
इसने आज रुपये को 77.79 प्रति डॉलर के भाव पर लाकर पटक दिया। अब क्रूड के बढ़ते दाम रुपये को और कमज़ोर
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करेंगे, व्यापार घाटा बढ़ेगा और विदेशी मुद्रा भंडार घटेगा।
यह फिसलन तेज़ी से देश को श्रीलंका की तरफ़ ले जा रही है। रुपये में गिरावट से देश को क्रूड खरीदने के लिए 2008 की मंदी के मुकाबले 45% ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है।
गोल्डमैन साक्स ने क्रूड के भाव अगले 12 महीने में 135$
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तक जाने की चेतावनी दी है।
आज एक अरब शेख़ का वीडियो आया। कह रहे थे कि चायवाला और टकले ने बर्बाद कर दिया भारत को। जल्द छुटकारा पाओ।
अब बहुत लोग इस सच को मानने लगे हैं। लेकिन लोकतंत्र में 5 साल बाद ही तख्ता पलटता है।
अरब के शेखों ने जो क्लास ली है उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपने पार्टी प्रवक्ताओं के लिए 8 सूत्रीय गाइडलाइन तैयार की है..जोकि निम्न हैं -
•अब केवल आधिकारिक प्रवक्ता और मीडिया पैनलिस्ट ही टीवी चैनलों की डिबेट में पार्टी का पक्ष रखने जाएंगे.इन्हें पार्टी के मीडिया सेल द्वारा
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असाइन किया जाएगा...(यानी अब कोई भी नफरती मुंह उठाकर किसी भी डिबेट में नही आ सकेगा)
•बीजेपी ने अपने मीडिया पैनलिस्ट और प्रवक्ताओं को स्पष्ट तौर पर निर्देश दिए हैं कि वे किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं बोलेंगे..(यानी अब इकोनॉमी की डिबेट मुल्ला,मस्जिद, हलाला फलाला नही लाया जा सकेगा )
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•धर्म के पूजनीयों और प्रतीकों के बारे में नहीं बोलना है..
•सभी प्रवक्ताओं और मीडिया पैनलिस्ट द्वारा अपनी बात और पार्टी का पक्ष रखते समय संयमित भाषा का प्रयोग किया जाएगा..(यानी अब फ्रिंज संबित पात्रा सुन मौलाना की जगह आदरणीय मौलाना जी सादर नमस्ते करेगा..कसम से बड़ा फनी लगेगा)
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