(1/6)हिंदी साहित्य में अगर किसी कवि को लोककवि होने का दर्जा प्राप्त है तो वह हैं बाबा नागार्जुन!
नागार्जुन का जन्म 30 जून, 1911 को हुआ था। वह प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि थे। नागार्जुन ने 1945 ई. के आसपास साहित्य क्षेत्र में क़दम रखा।
(2/6)उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था, पर हिन्दी साहित्य में उन्होंने 'नागार्जुन' तथा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से रचनाओं का सृजन किया।
नागार्जुन की कविताओं को उनके समय और जीवन की डायरी के रूप में भी देखा जा सकता है। उनके काल की शायद ही कोई महत्वपूर्ण राजनैतिक और
(3/6)सामाजिक घटना होगी, जिसे उनकी कविता में स्थान न मिला हो।
ऐसी ही एक मर्मस्पर्शी कविता है -
'गुलाबी चूड़ियां'
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
(4/6)हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
(5/6)किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
(1/4)आज के आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे बहुत से ऐसे परंपरागत तरीके खो से गये हैं, जिनमें विज्ञान की झलक मिलती है। ऐसी ही एक पोस्ट हमारे साथ साझा की है अंजनी कुमार पांडे ने।
"पहले तसला, भगौना, पतीला (खुला बर्तन) में दाल-भात बनता था, अदहन जब अनाज के साथ उबलता था,
(2/4)तो बार-बार एक मोटे झाग की परत जमा हो जाती थी, जिसे माई रह-रह के निकाल के फेंक दिया करती थी। पूछने पर कहती थी, "ई से तबियत खराब होत है"....
बाद में बड़े होने पर पता चला कि वह झाग शरीर मे यूरिक एसिड बढ़ाता है और माई इसीलिए उस झाग को फेंक दिया करती थी।
(3/4)माई ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं थी, पर ये चीज़ें उन्होंने नानी से और नानी ने अपनी माँ से सीखी थीं। अब कूकर में दाल-भात बनता है, पता नहीं झाग कहां जाता होगा, ज्यादा दाल खाने से पेट भी
(1/5)#gardening
गुना (मध्य प्रदेश) के रुठिआई गांव के 44 वर्षीय केदार सैनी एक गरीब किसान परिवार से आते हैं। लेकिन पर्यावरण के प्रति उनका जो लगाव है, वह उन्हें काफी खास बना देता है। वह पेड़-पौधों और देसी बीज के विषय में बेहद अच्छी जानकारी रखते हैं और
(2/5)इसका इस्तेमाल करके वह शहर में हरियाली भी फैला रहे हैं। साल 2019 से वह गेल इंडिया और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे प्रोजेक्ट्स पर पौधे लगाने का काम कर रहे हैं।
अपने पौधों के प्रति लगाव के कारण ही वह दुर्लभ सब्जियों, फलों और जड़ी-बूटियों आदि के बीज इकट्ठा
(3/5)करने का काम भी करते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह इन बीजों को साल 2013 से न सिर्फ जमा कर रहे हैं, बल्कि जरूरमंद किसानों को मुफ्त में बाँट भी रहे हैं।
केदार ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “मैंने अब तक देश के 17 राज्यों में अलग-अलग किसानों को डाक के
23 सितंबर 1903 को जन्मे युसूफ मेहरअली भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेताओं में थे. आजादी के आंदोलन के दौरान वे 8 बार जेल भेजे गए। 1942 में जेल में बंद होने के बावजूद वह बंबई (अब मुंबई) के मेयर चुने गए थे।
(2/6)उन्होंने 1930 के नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया। सन 1934 में ब्रिटिश राज पर षड्यन्त्र रचने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें दो वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। मेहरअली कांग्रेस सोशलिस्ट के संस्थापकों में से एक थे।
(3/6)उन्होंने 1940 के विशिष्ट सत्याग्रह में हिस्सा लिया और दोनों अवसरों पर उन्हें गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया।
मेहरली ही वह शख्स थे जिन्होंने 'Quit India' यानी भारत छोड़ो का नारा दिया था जिसे गांधीजी ने 1942 में
(1/4)#फ़िल्मी_शुक्रवार
"एक समय था जब मैं एक प्रोजेक्ट पूरा करता था,
मुंबई हवाई अड्डे पर उतरता था, और वहीं से दूसरा पैक किया हुआ सूटकेस लेता था, जिसे मेरी पत्नी घर से नए कपड़े रखकर भेजती थी क्योंकि वहीं से दूसरे प्रोजेक्ट के लिए उड़ान भरनी पड़ती थी।
(2/4)मैंने एक बार मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'कफन' पर आधारित एक फिल्म करने का ऑफर स्वीकार कर लिया, जिसकी शूटिंग लखनऊ के पास एक गाँव में करनी थी। यहां मुझे एक जर्जर मकान में रहना था, जो धूल से सना हुआ था। इतनी धूल कि जब मैं सुबह उठता था तो मेरी नाक में रेत के कण होते थे।
(3/4)वहां शूटिंग करना बहुत चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मैंने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की। मैंने अपने परिवार को भी इस बारे में कुछ नहीं बताया।
यह उन दिनों की बात है जब एक्टर्स के स्टाफ को भी 3 स्टार होटल में कमरे मिलते थे।
(1/5)भारतीय पैरा एथलीट अवनी लेखरा ने अपने शानदार खेल की बदौलत दुनियाभर में एक बार फिर भारत का नाम रोशन कर दिया है।
मंगलवार को वर्ल्ड शूटिंग पैरा स्पोर्ट्स रैंकिंग जारी की गई, जिसमें गोल्डन गर्ल अवनी ने R2- 10 मीटर एयर राइफल महिला SH1 और
(2/5)R8-50 मीटर राइफल 3 पोजिशन महिला इवेंट में दुनियाभर में पहली रैंक हासिल की है।
इसके साथ ही, शूटिंग में एक साथ दो वर्ल्ड रैंकिंग में ऐसा करने वाली अवनी भारत की पहली पैरा खिलाड़ी बन गई हैं।
इस महीने फ्रांस में आयोजित वर्ल्ड शूटिंग चैंपियनशिप में अवनी ने 2
(3/5)गोल्ड मेडल जीत इतिहास रचा था। 11 जून को उन्होंने 50 मीटर राइफल इवेंट, जबकि 7 जून को उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में भी गोल्ड मेडल जीता था। वहीं अब जून के महीने में ही वर्ल्ड नंबर वन का खिताब भी अवनी ने अपने नाम किया है।
(1/4)#गाँव_का_गुरूवार
भोपाल, मध्य प्रदेश के 26 वर्षीय हर्षित गोधा साल 2013 में BBA की पढ़ाई के लिए UK गए थे। फिटनेस के शौक़ीन, हर्षित की प्लेट में हर दिन एवोकाडो फल रहता ही था और इस तरह यह उनकी डाइट का एक हिस्सा बन चुका था। लेकिन तब हर्षित ने सोचा भी नहीं था
(2/4)कि यह सुपर फ़ूड न सिर्फ उनकी डाइट का, बल्कि एक दिन उनके काम का भी हिस्सा बन जाएगा।
BBA की पढ़ाई के बाद, हर्षित ने इज़राइल जाकर एवोकाडो उगाना सीखा और आज उन्होंने अपने पांच एकड़ खेत में तक़रीबन 1800 एवोकाडो के पौधे उगाए हैं।
(3/4)इतना ही नहीं वह देशभर के किसानों को भी इज़राइली एवोकाडो के पौधे बेच रहे हैं और अपने पारिवारिक बिज़नेस को छोड़कर आज वह एक किसान बन गए हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “यह एक सुपरफ़ूड है, जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं, लेकिन भारत में तो यह इतने महंगें मिलते हैं