#कृष्णकथा
श्री कृष्ण वृन्दावन में बलराम जी और ग्वाल बाल संग वन में बछड़े और गाय चराने जाते थे।
एक बार ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने की सोची। श्री कृष्ण और बलराम जब ग्वाल बाल संग गाय और बछड़े चराने वन में गए हुए थे ।
दोपहर के समय जब थक कर भोजन के पश्चात सब आपस में अमोल प्रमोद करने लगे । उनके गाय और बछड़े चरते हुए बहुत दूर चले गए।
गाय और बछड़ों को ना पाकर ग्वाल बाल घबरा गए तो श्री कृष्ण कहने लगे कि आप लोग चिंतित ना हो मैं उनको ढूंढ कर लाता हूं।
दोपहर के समय जब थक कर भोजन के पश्चात सब आपस में अमोल प्रमोद करने लगे । उनके गाय और बछड़े चरते हुए बहुत दूर चले गए।
गाय और बछड़ों को ना पाकर ग्वाल बाल घबरा गए तो श्री कृष्ण कहने लगे कि आप लोग चिंतित ना हो मैं उनको ढूंढ कर लाता हूं।
श्री कृष्ण गायें और बछड़ों वन, पर्वत और गुफाओं में खोजने लगे।
श्री कृष्ण को गाय और बछड़ों में से कोई भी नहीं मिला क्योंकि श्री कृष्ण की परीक्षा लेने के लिए स्वयं ब्रह्मा जी ने उनका हरण कर लिया था क्योंकि ब्रह्मा जी को लगा था कि श्री कृष्ण अब मदद के लिए उनके पास आएंगे।
जब श्री कृष्ण वापिस यमुना तट पर आए तो उन्हें वहां ग्वाल - बाल को भी वहां ना पाकर श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टि से जान लिया कि ब्रह्मा जी ने ही उनको भी चुराया है।
श्री कृष्ण ने समस्त गायें, बछड़ों सहित सभी ग्वाल- बाल का पुनः निर्माण कर दिया और सबको लेकर वृन्दावन वापिस आ गए।
कोई भी मां इस भेद को जान नहीं पाई कि यह उनके पुत्र नहीं है । आज सब अपने बालकों पर पहले से भी अधिक ममता लुटा रही थी। वन से वापस आई गाय भी अपने बछड़ों को चाट कर दूध पिलाने में लग गई। लगभग एक वर्ष तक ब्रह्मा जी ने अपनी माया नहीं हटाई।
एक वर्ष पश्चात ब्रह्मा जी पुनः पृथ्वी पर आए। जब श्री कृष्ण और बलराम अपनी गाय चराने वन में गए हुए थे तो वहां पर चरने वाली गाय ने ब्रह्मा जी द्वारा हरण किये गाय और बछड़ो को देखा तो वह प्रेम वश वहां चली गई। बलराम जी यह देख कर श्री कृष्ण से पूछते हैं कि यह कैसी माया है?
श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहने लगे कि भईया यह मेरी नहीं ब्रह्मा जी की माया है।
बलराम जी देखते हैं कि ब्रह्मा जी द्वारा हरण किए गए गाय और बछड़े, ग्वाल बाल श्रीकृष्ण के समीप आ गए और श्री कृष्ण द्वारा निर्मित गाय, बछड़े और ग्वाल बाल अदृश्य हो गए कोई भी कुछ भी भेद नहीं जान पाया।
ब्रह्मा जी सोचने लगे कि मैं तो श्री कृष्ण को मोहित करने चला तो यहां तो श्री कृष्ण ने मुझे ही मोह लिया। ब्रह्मा जी को सभी ग्वाल बाल में भगवान के चतुर्भुज रूप के दर्शन होने लगे।यह देख कर ब्रह्मा जी व्याकुल हो गये तो श्री कृष्ण ने अपनी माया हटा ली।
ब्रह्मा जी श्री कृष्ण की स्तुति करने लगे। हे प्रभु मैं मुर्ख था जो आपकी परीक्षा लेने की कोशिश की।
मुझे अपना सेवक जानकर मेरा अपराध क्षमा करें। ब्रह्मा जी के स्तुति सुनकर श्री कृष्ण ने उन्हें वापस जाने की आज्ञा दी और स्वयं ग्वाल बाल संग भोजन करने लगे और कोई भी लीलाधर की लीला का भेद कोई जान नहीं पाया?
जय श्री कृष्ण 🌺🙏
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This miniature depicts Akbar and Mughal army slaying sannaysis who had come to bathe in the sacred place of kurukshetra near Thanesar.
Akbar slaughtering Hindu sannyasis. A miniature from Akbarnama complied c.1590.
This incident happened c.1567 when a group of sannyasis(referred to as puri by Abdul Fazl) had come to bathe at what kurukshetra. Soon, a rival group of Sannyasis(kur) arrived and there was a brawl over the precedence in bathing at the holy tank.
Akbar took sides and soon the Mughal army indulged in massive slaughter of the other Sannyasis to death.
Western Indologist Bonnie C. Wade tries to pass this off as secular incident and praises the ‘authority’ of Akbar in his high handedness.
This temple is Recognised as the 2nd largest Jagannath Temple after Puri Jagannath Temple. If historians are to be believed, construction of this Temple in Khallikote was started in 1730 by King
Jagannath Mardraja-I& completed by his grandson Jagannath Mardraja-II in year 1868.According to some ancient texts Bhagwan Jagannath along with brother Balbhadra & sister Subhadra spent some of their time in this temple during their exile when Mughals attacked Sri Mandira in Puri
This temple is grand & the outer walls are beautifully carved with the sculptures of Dasavatara, AstaDigapalas, Different other avataras of Vishu ( i.e. Janardhan, Madhav, Lakshmi Narayan etc), some beautiful Nagas, Nartakis etc.
Bhikaji Cama was the first person to hoist the Indian flag
on the foreign soil in Stuttgart, Germany.
People may have heard her name on roads and buildings, but very few know who she was and what she did for India. #IndependenceDay
Bhikaji Cama was born on September 24 1861 into a large, affluent Parsi family. Her father, Sorabji Framji Patel, was a famous merchant who was at the the forefront of business, education, and philanthropy in the city of Bombay.
Influenced by an environment in which the Indian nationalist movement was taking root, Bhikaji was drawn toward political issues from a very early age. She had a flair for languages and soon became proficient in arguing her country’s cause in different circles.
1842 में खंडवा जिले के बड़दा गांव में जन्मे टंट्या भील(टंट्या मामा)एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे,जिन्हें भारतीय रॉबिनहुड भी कहा जाता है। 1857 के भारतीय विद्रोह केबाद, अंग्रेजोंने बेहद कठोर कार्रवाई की, जिसके बाद ही टंट्या ने अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ना शुरूकिया।
वह उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने बारह साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया।
विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए, अपने अदम्य साहस और जुनून के बल पर वह 12 साल तक लड़ते रहे और आदिवासियों और आम लोगों की भावनाओं के प्रतीक बने।
वह ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने और उनके चाटुकारों की संपत्ति को लूटकर गरीबों और जरूरतमंदों में बांट देते थे।
टंट्या भील, गुरिल्ला युद्ध में निपुण थे। लेकिन एक लंबी लड़ाई के बाद, वर्ष 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जबलपुर जेल ले जाया गया,
🌺बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते।। ( श्रीमद्भगवद्गीता ५.२१ )🌺
अर्थात्, शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गन्धात्मक बाह्य संस्पर्श से विनिमुक्त प्राणी ही ब्रह्म-संस्पर्शजनय आनन्द का अनुभव कर पाता है।
देह, इन्द्रिय, मन, बुद्धि एवं अहंकार से भिन्न अजर-अमर, अनन्त, अखण्ड, स्वप्रकाश, परब्रह्मात्मा से अभेद ही ब्रह्म-परिष्वंग है। भोक्ता में भोग का विलीनिकरण ही ‘सुरत’ किंवा सम्भोग है। आचार्य जनों ने 'सुरत' शब्द का अर्थ 'सुष्ठु रतं रमणं' उत्कृष्ट अनुराग को बढ़ाने वाला किया है।
अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक परमात्मा द्वारा जीवात्मा को आत्मसात् किया जाना ही 'एष सर्वस्वभूतस्तु' परिष्वंग ( आलिंगन ) है।
श्रवण, मनन, निदिध्यासन आदि द्वारा अमलात्मा परम हंस-जनों को ब्रह्म-परिष्वंग प्राप्त होता है वही दिव्य 'परिष्वंग' सच्चिदानन्दघन,
Did you know about an Indian chemical scientist named Acharya Prafulla Chandra Ray?
💮‘Revolutionary in the garb of a Scientist’💮
– this is what British govt. records mention about chemical scientist Acharya Prafulla Chandra Ray.
He was born on the 2nd of August 1861 at Jessore, Bengal. He supported freedom fighters, making arrangements for their stay and food in his factories in Bengal. A staunch patriot, he was against British rule and oppression.
He helped freedom fighters in the manufacturing of expl0sives for use against the British.
‘Science can wait, Swaraj cannot’ - Acharya Prafulla Chandra Ray. He is called the father of chemical science in India.