1/5 डेमोक्रेसी में संख्या बल माने रखता है और हम यहां अल्पसंख्यक है और रहेंगे तो हमारा राजनीतिक विमर्श इंक्लूसिव और सेकुलर होना चाहिए न की आइडेंटिटी आधारित।
ओवैसी नेतृत्व दे सकते हैं लेकिन विकल्प नहीं हो सकते, न वो और न उनकी पार्टी।
2/5 ओवैसी के मुसलमान दक्षिण पंथी विचारधारा के अनुकूल है मगर भारत के प्रतिकूल। ओवैसी की राजनीति का धर्म बदल दीजिए, वह बिल्कुल दक्षिणपंथ की राजनीति लगेगी। यह आइडेंटिटी पॉलिटिक्स तो है ही इसे एक्सक्लूसिविज़्म भी कहते हैं।
3/5 ओवैसी को सबसे अधिक समर्थन मुस्लिम नौजवानों का इसलिए मिल रहा है क्योंकि वह देश में हिंदुत्व की राजनीति का जवाब चाहता है। इसका जवाब उसे अपने धर्म गुरुओं, संगठनों और सेकुलर दलों से नहीं मिलता है तो वह ओवैसी की तरफ देखता है। दक्षिण पंथी राजनीति को भी यह बात सूट करती है।
4/5 जो राजनीतिक माहौल ओवैसी बना रहे हैं उसका खतरा ये है कि मुस्लिम युवा कब "इस्लामी राजनीति" और 'नेशनलेस खिलाफत' का पैरोकार बन जाएगा पता ही नहीं चलेगा। इस स्थिति में ओवैसी की हिम्मत नहीं कि भारत के मुसलमान को इन विचारों में शिफ्ट होने से रोक लें।
5/5 दुख की बात यह है कि ओवैसी अपने राजनीतिक लाभ के बाद उसे जिस धार्मिक विचारधारा पर छोड़ आएंगे वह रास्ता बहुत दूर जाता है।
औवेसी की तरफ़ जाना वाला रास्ता सुगम है मगर उसमें एग्जिट गेट नहीं है।
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भारतीय मुसलमानों का हित केवल और केवल इस बात में ही है और रहेगा कि व्यापक भारतीय जनमत का समर्थन उसके साथ रहे। यह बात मुस्लिम सोसाइटी विशेष रूप से युवाओं को समझना पड़ेगा और जज़्बात को परे रखना होगा।
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2/2 भारतीय मुसलमानों का नेतृत्व अब मौजूदा धार्मिक या मुस्लिम संगठनों या व्यक्तियों द्वारा सफल नही होगा क्योंकि उनमें रत्ती भर भी राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता नहीं है।
इसी "अपनी कयादत" से हम विकास के मोर्चे पर तो पिछड़े ही हमारी सोच और छवि पर भी बुरा असर पड़ा है।
3/3 सिर्फ मुसलमानों के नाम पर बनी पार्टी को व्यापक जनमत का समर्थन कभी मिल ही नहीं सकता तो वोट की राजनीति में ऐसी पार्टी कुछ कर ही नहीं सकती।
ज्यादा से ज्यादा ऐसे नेता जोशीले नारे और भड़काऊ भाषण देकर सभाओं में तालियां तो बजवा सकते हैं लेकिन सीट नही जितवा सकते।