1/5 डेमोक्रेसी में संख्या बल माने रखता है और हम यहां अल्पसंख्यक है और रहेंगे तो हमारा राजनीतिक विमर्श इंक्लूसिव और सेकुलर होना चाहिए न की आइडेंटिटी आधारित।
ओवैसी नेतृत्व दे सकते हैं लेकिन विकल्प नहीं हो सकते, न वो और न उनकी पार्टी।
2/5 ओवैसी के मुसलमान दक्षिण पंथी विचारधारा के अनुकूल है मगर भारत के प्रतिकूल। ओवैसी की राजनीति का धर्म बदल दीजिए, वह बिल्कुल दक्षिणपंथ की राजनीति लगेगी। यह आइडेंटिटी पॉलिटिक्स तो है ही इसे एक्सक्लूसिविज़्म भी कहते हैं।
भारतीय मुसलमानों का हित केवल और केवल इस बात में ही है और रहेगा कि व्यापक भारतीय जनमत का समर्थन उसके साथ रहे। यह बात मुस्लिम सोसाइटी विशेष रूप से युवाओं को समझना पड़ेगा और जज़्बात को परे रखना होगा।
1/12/2 भारतीय मुसलमानों का नेतृत्व अब मौजूदा धार्मिक या मुस्लिम संगठनों या व्यक्तियों द्वारा सफल नही होगा क्योंकि उनमें रत्ती भर भी राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता नहीं है।
इसी "अपनी कयादत" से हम विकास के मोर्चे पर तो पिछड़े ही हमारी सोच और छवि पर भी बुरा असर पड़ा है।