भारत में विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं, इनमें कई समाज और जाति के अनुसार अलग अलग देवी देवताओं की पूजा की जाती है। इन समाज या जाति में कुलदेवी और देवता की पूजा होती है, #Thread
इसके अलावा पितृदेव भी होते हैं। बता दें कि भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुलदेवी और देवता की पूजा करते आ रहे हैं।
जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है। इसके अलावा एक ऐसा भी दिन होता है
जबकि संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं।
जिन लोगों को अपने कुलदेवी और देवता के बारे में नहीं मालूम है या जो भूल गए हैं, वे अपने कुल की शाखा और जड़ों से कट गए हैं। देखा जाए तो कुलदेवी और देवता को पूजने के पीछे एक गहरा रहस्य है, जो बहुत कम लोग
जानते होंगे। आइए जानते हैं कि सभी के कुलदेवी-देवता अलग क्यों होते हैं और उन्हें क्यों पूजना जरूरी होता है?
कुल देवता और कुलदेवी सभी के अलग-अलग क्यों होते हैं?
इसका उत्तर यह है कि कुल अलग है, तो स्वाभाविक है कि कुलदेवी-देवता भी-अलग अलग ही होंगे। हजारों वर्षों से अपने कुल को
संगठित करने और उसके अतीत को संरक्षित करने के लिए ही कुलदेवी और देवताओं को एक स्थान पर स्थापित किया जाता था। वह स्थान उस वंश या कुल के लोगों का मूल स्थान होता था।
माना जाता है कि प्राचीनकाल में मंदिर से जुड़े व्यक्ति के पास एक बड़ी-सी पोथी होती थी, जिसमें
वह उन लोगों के नाम, पते और गोत्र अंकित करता था। यह कार्य वैसा ही था, जैसा कि गंगा किनारे बैठा तीर्थ पुरोहित या पंडे आपके कुल और गोत्र का नाम अंकित करते हैं। आपको अपने परदादा के परदादा का नाम नहीं मालूम होगा लेकिन उन तीर्थ पुरोहित के पास आपके पूर्वजों के नाम लिखे होते हैं।
अब फिर से समझें कि प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी देवी, देवता या ऋषि के वंशज से संबंधित है। उसके गोत्र से यह पता चलता है कि वह किस वंश से संबधित है। मान लीजिए किसी व्यक्ति का गोत्र भारद्वाज
है तो वह भारद्वाज ऋषि की संतान है। इस प्रकार हमें भारद्वाज गोत्र के लोग सभी जाति और समाज में मिल जाएंगे।
इसके अलावा किसी कुल के पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया और उसके लिए एक निश्चित स्थान पर
एक मंदिर बनवाया जिससे एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से उनका कुल जुड़ा रहे और वहां से उसकी रक्षा होती रहे।
कुलदेवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं। ये घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते हैं। अत: प्रत्येक
कार्य में इन्हें याद करना आवश्यक होता है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो हनुमानजी के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं कर सकता या रोक नहीं लगा सकता।
ऐसे अनेक परिवार हैं जिन्हें अपने कुलदेवी या देवता के बारे में
कुछ भी नहीं मालूम है। ऐसा इसलिए कि उन्होंने कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाना छोड़ दिया और उनकी पूजा भी बंद कर दी, लेकिन उनके पूर्वज और उनके देवता उन्हें देख रहे हैं।
कहा जाता है कि कालांतर में परिवारों के एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित
होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रांताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों का क्षय होने, विजातीयता पनपने, पाश्चात्य मानसिकता के पनपने और नए विचारों के लोगों या संतों की संगत के ज्ञानभ्रम में उलझकर लोग अपने कुल खानदान के कुलदेवी और देवताओं को भूलकर
ऐसा भी देखने में आया है कि कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का योग शुरू हो
जाता है, सफलता रुकने लगती है, गृह कलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं और वंश आगे चल नहीं पाता है।
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आइये जाने उन दस दिव्य और पवित्र पक्षीयों के बारे मैं जिनका हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है...
#हंस :- जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते #Thread
हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है।
हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। यह बहुत ही विवेकी पक्षी माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि मनुष्य के नि:श्वास में 'हं' और श्वास में 'स' ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही 'हंस' है क्योंकि उसमें ज्ञान
का अर्जन संभव है। अत: हंस 'ज्ञान' विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे।
हंस दांपत्य जीवन के लिए आदर्श है। यह जीवन भर एक ही साथी के साथ रहते हैं। यदि दोनों में से किसी भी
जिस आदमी ने श्रीमद्भगवद्गीता का पहला उर्दू अनुवाद किया वो था मोहम्मद मेहरुल्लाह! बाद में उसने सनातन धर्म अपना लिया!
पहला व्यक्ति जिसने श्रीमदभागवद् गीता का अरबी अनुवाद किया वो एक फिलिस्तीनी था अल फतेह कमांडो नाम का! #Thread
जिसने बाद में जर्मनी में इस्कॉन जॉइन किया और अब हिंदुत्व में है!
पहला व्यक्ति जिसने इंग्लिश अनुवाद किया उसका नाम चार्ल्स विलिक्नोस था! उसने भी बाद में हिन्दू धर्म अपना लिया उसका तो यहां तक कहना था कि दुनिया में केवल हिंदुत्व ही बचेगा!
हिब्रू में अनुवाद करने वाला
व्यक्ति Bezashition le fanah नाम का इसरायली था जिसने बाद में हिंदुत्व अपना लिया था भारत में आकर!
पहला व्यक्ति जिसने रूसी भाषा में अनुवाद किया उसका नाम था नोविकोव जो बाद में भगवान कृष्ण का भक्त बन गया था!
आज तक 283 बुद्धिमानों ने श्रीमद भगवद्गीता का अनुवाद किया है अलग
🚩 पंचकेदारों में श्री मद्यमहेश्वरजी को द्वितीय केदार के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र अनंत आलाहदक रमणीक स्थान पर समुद्र तल से 3497मी०(11473. 1फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव की नाभि भाग की पूजा की जाती है। #Thread
मान्यता है कि मद्यमहेश्वर जी का भव्य मन्दिर पाण्डवों द्वारा स्वर्गारोहण के समय बनवाया गया था। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव और माँ पार्वती द्वारा विवाह के बाद का समय इसी तीर्थ में यापन किया गया। यह मंदिर भी काष्ठ छत्र युक्त देवालय है।
श्री मद्यमहेश्वर जी मंदिर गर्भगृह
में स्वयंभूलिङ्गं तथा सभामण्डप में बायीं ओर गणेश जी तथा दायीं ओर भैरवनाथ जी विराजमान हैं तथा गर्भगृह प्रवेश द्वार के सम्मुख सभामण्डप में नन्दी जी और वीरभद्र जी महाराज विराजमान हैं। मंदिर परिसर में पँचनाम देवता, बूढ़ा मध्यमहेश्वर लिङ्गं, गौमुखी जलधार, सरस्वती कुण्ड, गौरीशंकर
मृत्यु के बाद आत्मा कैसे शरीर के बाहर जाता है? कौन प्रेत का शरीर प्राप्त करता है? क्या भगवान के भक्त प्रेत योनि में प्रवेश करते हैं?
भगवान विष्णु ने गरुड़ को उत्तर दिया(गरुड़ पुराण) #Thread
मृत्यु के बाद आत्मा निम्न मार्गों से शरीर के बाहर जाता है
आँख, नाक या त्वचा पर स्थिर रंध्रों से.
(1) ज्ञानियों का आत्मा मस्तिस्क के उपरी सिरे से बाहर जाता है (2) पापियों का आत्मा उसके गुदा द्वार से बाहर जाता है( ऐसा पाया गया है कि कई लोग मृत्यु के समय मल त्याग करते हैं)
यह आत्मा को शरीर से बाहर निकलने के मार्ग हैं |
शरीर को त्यागने के बाद सूक्ष्म शरीर घर के अंदर कई दिनों तक रहता है
१.अग्नि में ३ तीन दिनों तक
२. घर में स्थित जल में ३ दिनों तक
जब मृत व्यक्ति का पुत्र १० दिनों तक मृत व्यक्ति के लिए उचित वेदिक अनुष्ठान करता है