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Sep 1 16 tweets 6 min read
#दस_पवित्र_पक्षी_और_उनका_रहस्य

आइये जाने उन दस दिव्य और पवित्र पक्षीयों के बारे मैं जिनका हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है...

#हंस :- जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते
#Thread
हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है।

हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। यह बहुत ही विवेकी पक्षी माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि मनुष्य के नि:श्वास में 'हं' और श्वास में 'स' ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही 'हंस' है क्योंकि उसमें ज्ञान
का अर्जन संभव है। अत: हंस 'ज्ञान' विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे।

हंस दांप‍त्य जीवन के लिए आदर्श है। यह जीवन भर एक ही साथी के साथ रहते हैं। यदि दोनों में से किसी भी
एक साथी की मौत हो जाए तो दूसरा अपना पूरा जीवन अकेले ही गुजार या गुजार देती है। जंगल के कानून की तरह इनमें मादा पक्षियों के लिए लड़ाई नहीं होती। आपसी समझबूझ के बल पर ये अपने साथी का चयन करते हैं। इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती है।

हिंदू धर्म में हंस को मारना
अर्थात पिता, देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।
#मोर :- मोर को पक्षियों का राजा माना जाता है। यह शिव पुत्र कार्तिकेय का वाहन है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्व को दर्शाता है। यह भारत का राष्ट्रीय पक्षी ह
अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊंचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है।

#कौआ :- कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। इसकी उम्र लगभग 240 वर्ष होती है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस
पक्ष में कौओं को भोजना कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है।

#उल्लू : - उल्लू को लोग अच्छा नहीं मानते और उससे डरते हैं, लेकिन यह गलत धारणा है। उल्लू लक्ष्मी का वाहन है। उल्लू का अपमान करने से
लक्ष्मी का अपमान माना जाता है। हिन्दू संस्कृति में माना जाता है कि उल्लू समृद्धि और धन लाता है।

भारत वर्ष में प्रचलित लोक विश्वासों के अनुसार भी उल्लू का घर के ऊपर छत पर स्थि‍त होना तथा शब्दोच्चारण निकट संबंधी की अथवा परिवार के सदस्य की मृत्यु का सूचक समझा जाता है। सचमुच उल्लू
को भूत-भविष्य और वर्तमान में घट रही घटनाओं का पहले से ही ज्ञान हो जाता है।

वाल्मीकि रामायण में उल्लू को मूर्ख के स्थान पर अत्यन्त चतुर कहा गया। रामचंद्र जी जब रावण को मारने में असफल होते हैं और जब विभीषण उनके पास जाते हैं, तब सुग्रीव राम से कहते हैं कि उन्हें शत्रु की
उलूक-चतुराई से बचकर रहना चाहिए। ऋषियों ने गहरे अवलोकन तथा समझ के बाद ही उलूक को श्रीलक्ष्मी का वाहन बनाया था।

#गरूड़ : - इसे गिद्ध भी कहा जाता है। पक्षियों में गरूढ़ को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। यह समझदार और बुद्धिमान होने के साथ-साथ तेज गति से उड़ने की क्षमता रखता है।
गरूड़ के नाम पर एक पुराण भी है गरूड़ पुराण। यह भारत का धार्मिक और अमेरिका का राष्ट्रीय पक्षी है।

गरूड़ के बारे में पुराणों में अनेक कथाएं मिलती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु की सवारी और भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरूड़ के बारे में कहा जाता
है कि यह सौ वर्ष तक जीने की क्षमता रखता है।

#नीलकंठ :- नीलकंड को देखने मात्र से भाग्य का दरवाजा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है। दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने के लिए बहुत ललायित रहते हैं।

#तोता :- तोते का हरा रंग बुध ग्रह के साथ जोड़कर देखा जाता है। अतः घर में
तोता पालने से बुध की कुदृष्टि का प्रभाव दूर होता है। घर में तोते का चित्र लगाने से बच्चों का पढ़ाई में मन लगता है।
#बगुला :- आपने कहावत सुनी होगी बगुला भगत। अर्थात ढोंगी साधु। धार्मिक ग्रंथों में बगुले से जुड़ी अनेक कथाओं का उल्लेख मिलता है। पंत्रतंत्र में एक कहानी है बगुला भगत
। बगुला भगत पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

बगुला के नाम पर एक देवी का नाम भी है जिसे बगुलामुखी कहते हैं। बगुला ध्यान भी होता है अर्थात बगुले की तरह एकटक ध्यान लगाना। बगुले के संबंध में कहा जाता है कि ये जिस भी घर के पास ‍के
किसी वृक्ष आदि पर रहते हैं वहां शांति रहती है और किसी प्रकार की अकाल मृत्यु नहीं होती।

#गोरैया :- भारतीय पौराणिक मान्यताओं अनुसार यह चिड़ियां जिस भी घर में या उसके आंगन में रहती है वहां सुख और शांति बनी रहती है। खुशियां उनके द्वार पर हमेशा खड़ी रहती है और वह घर
दिनोदिन तरक्की करता रहता है।

#सनातन_संस्कृति 🚩

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Sep 2
🔥 #मां_ज्वालादेवी_मंदिर 🚩

अकबर और अंग्रेजों ने की थी ज्वाला बुझाने की कोशिश, लेकिन रहे थे नाकाम :🚩

#हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा 30 किलोमीटर दूर #ज्वाला_देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। ज्वाला मंदिर को #जोतांवालीमां का मंदिर और #नगरकोट भी कहा जाता है।

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यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। 51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता है। बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को
बुझााने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहे थे। वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं !!

आज हम आपको बताते है देवी मां ज्वाला जी के मंदिर के बारे में ज्वालामुखी देवी के मंदिर को जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में 9 अलग-अलग जगहों से ज्वालाएं
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Sep 1
#पत्नी_वामांगी_क्यों_कहलाती_है ?🚩🚩

शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।

इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है
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शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।

शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन,
आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती।

वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और
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Aug 30
💥 #जानें_सभी_के_कुलदेवी_देवता_अलग_क्यों_होते_हैं_? #और_क्यों_करें_इनकी_पूजा 🚩

भारत में विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं, इनमें कई समाज और जाति के अनुसार अलग अलग देवी देवताओं की पूजा की जाती है। इन समाज या जाति में कुलदेवी और देवता की पूजा होती है,
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इसके अलावा पितृदेव भी होते हैं। बता दें कि भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुलदेवी और देवता की पूजा करते आ रहे हैं।

जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है। इसके अलावा एक ऐसा भी दिन होता है
जबकि संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं।

जिन लोगों को अपने कुलदेवी और देवता के बारे में नहीं मालूम है या जो भूल गए हैं, वे अपने कुल की शाखा और जड़ों से कट गए हैं। देखा जाए तो कुलदेवी और देवता को पूजने के पीछे एक गहरा रहस्य है, जो बहुत कम लोग
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Aug 30
जिस आदमी ने श्रीमद्भगवद्गीता का पहला उर्दू अनुवाद किया वो था मोहम्मद मेहरुल्लाह! बाद में उसने सनातन धर्म अपना लिया!

पहला व्यक्ति जिसने श्रीमदभागवद् गीता का अरबी अनुवाद किया वो एक फिलिस्तीनी था अल फतेह कमांडो नाम का!
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जिसने बाद में जर्मनी में इस्कॉन जॉइन किया और अब हिंदुत्व में है!

पहला व्यक्ति जिसने इंग्लिश अनुवाद किया उसका नाम चार्ल्स विलिक्नोस था! उसने भी बाद में हिन्दू धर्म अपना लिया उसका तो यहां तक कहना था कि दुनिया में केवल हिंदुत्व ही बचेगा!

हिब्रू में अनुवाद करने वाला
व्यक्ति Bezashition le fanah नाम का इसरायली था जिसने बाद में हिंदुत्व अपना लिया था भारत में आकर!

पहला व्यक्ति जिसने रूसी भाषा में अनुवाद किया उसका नाम था नोविकोव जो बाद में भगवान कृष्ण का भक्त बन गया था!

आज तक 283 बुद्धिमानों ने श्रीमद भगवद्गीता का अनुवाद किया है अलग
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Aug 29
🚩 पंचकेदारों में श्री मद्यमहेश्वरजी को द्वितीय केदार के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र अनंत आलाहदक रमणीक स्थान पर समुद्र तल से 3497मी०(11473. 1फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव की नाभि भाग की पूजा की जाती है।
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मान्यता है कि मद्यमहेश्वर जी का भव्य मन्दिर पाण्डवों द्वारा स्वर्गारोहण के समय बनवाया गया था। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव और माँ पार्वती द्वारा विवाह के बाद का समय इसी तीर्थ में यापन किया गया। यह मंदिर भी काष्ठ छत्र युक्त देवालय है।
श्री मद्यमहेश्वर जी मंदिर गर्भगृह
में स्वयंभूलिङ्गं तथा सभामण्डप में बायीं ओर गणेश जी तथा दायीं ओर भैरवनाथ जी विराजमान हैं तथा गर्भगृह प्रवेश द्वार के सम्मुख सभामण्डप में नन्दी जी और वीरभद्र जी महाराज विराजमान हैं। मंदिर परिसर में पँचनाम देवता, बूढ़ा मध्यमहेश्वर लिङ्गं, गौमुखी जलधार, सरस्वती कुण्ड, गौरीशंकर
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Aug 27
#जानिये_आत्मा_नए_शरीर_में_कैसे_जाती_है
#गरुड़ ने भगवान श्री विष्णु से प्रश्न किया

मृत्यु के बाद आत्मा कैसे शरीर के बाहर जाता है? कौन प्रेत का शरीर प्राप्त करता है? क्या भगवान के भक्त प्रेत योनि में प्रवेश करते हैं?

भगवान विष्णु ने गरुड़ को उत्तर दिया(गरुड़ पुराण)
#Thread
मृत्यु के बाद आत्मा निम्न मार्गों से शरीर के बाहर जाता है

आँख, नाक या त्वचा पर स्थिर रंध्रों से.

(1) ज्ञानियों का आत्मा मस्तिस्क के उपरी सिरे से बाहर जाता है
(2) पापियों का आत्मा उसके गुदा द्वार से बाहर जाता है( ऐसा पाया गया है कि कई लोग मृत्यु के समय मल त्याग करते हैं)
यह आत्मा को शरीर से बाहर निकलने के मार्ग हैं |
शरीर को त्यागने के बाद सूक्ष्म शरीर घर के अंदर कई दिनों तक रहता है

१.अग्नि में ३ तीन दिनों तक
२. घर में स्थित जल में ३ दिनों तक

जब मृत व्यक्ति का पुत्र १० दिनों तक मृत व्यक्ति के लिए उचित वेदिक अनुष्ठान करता है
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