Do you know why Shani Dev is called Shanaishchara? This story of Pippalad Rishi and Shani Dev will give you insight.
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During the funeral rites of Sage Dadhichi, his wife, unable to bear the loss of her husband, sat on the pyre in mourning, placing their 3-year-old child in a nearby giant banyan tree's hollow. In this manner, Sage Dadhichi and his wife were sacrified. But, the child left in the banyan tree began to cry from hunger and thirst. He would fall into the tree's hollow and eat the banyan fruits.
As time passed, by eating the leaves and fruits of the banyan tree, the child's life was safely sustained.
One day, when Sage Narada was passing by, he noticed the child in the banyan tree and asked about him -
Narada - "Child, who are you?"
Boy - "I do not know."
Narada - "Who is your father?"
Boy - "I want to know that."
हिन्दूओ को सेकुलर बनाने और धन बटोरने का षड्यंत्र और साई बाबा की मार्केटिंग
कृपया लेख ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ें…..
आज से 25-30 साल पहले कोई साईं का नाम तक नहीं जानता था, तब शिर्डी सिर्फ एक खाली गाँव था जहाँ साईं की एक कब्र थी जहाँ पर 1972 में एक मूर्ति लगा दी गयी ताकि साईं की मार्केटिंग करके नया धंधा चमकाया जाए।
तब साईं के भी एक्का दुक्का मंदिर होते थे, 1972 में जिस साईं कि कब्र के पास कोई मूर्ति नहीं थी वहां पर अब मूर्ति लगा कर धन बटोरने और हिन्दूओ को सेकुलर बनाने का षड्यंत्र चलने लगा, उनका एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह से साईं हर हिन्दू के घर में पहुँच जाए क्यूंकि इससे एक तो मुसलमानो को लोग अच्छा समझेंगे और दूसरा साईं के कारण राम मंदिर आन्दोलन धीमा पड़ जायेगा, दुर्भाग्य से उनकी योजना सफल हो गयी
लेकिन 1990 के बाद चले राममंदिर आन्दोलन को कमजोर करने और हिन्दुओ को भटकाने के लिए ही तब साईं का प्रचार सबसे अधिक जोरदार तरीके से शुरू हुआ था ।
तब एक नया चलन सामने आया था…..
कुछ लोग जो की साईं की मार्केटिंग कागज़ के पर्चे छपवा कर करते थे …
उन पर लिखा होता था की अगर आप इस पर्चे को पढने के बाद छपवा कर लोगों में बांटेंगे तो दस दिन के अन्दर आपको लाखों रूपये का धन अचानक मिलेगा ।
फलाने ने 200 बांटे तो उसके मोटरसाईकिल मिली …फलाने ने 500 बांटे तो उसका खोया हुआ बेटा मिला ..फलाने को नौकरी मिली …फलाने ने 1000 छपवाकर बांटे तो उसको ….मनचाही लड़की शादी के लिए मिली …फलाने ने 5000 छपवाकर बांटे तो वह दस फैक्ट्रियों का मालिक बन गया …आदि आदि
और अगर किसी ने पढ़कर इसको झूठ समझा तो दस दिन के भीतर उसका लड़का मर गया …फलाने ने फाड़ा तो उसका व्यापर चौपट हो गया …फलाने ने फैंक दिया तो उसको जेल हो गयी ।
….फलाने ने झूठ माना तो उसका सारा कारोबार ..खत्म हो गया और भिखारी हो गया
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष मे आने वाली एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मेरी बढ़ती हुई जिज्ञासा को शांत करें।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे अर्जुन!
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक बार की बात है, पृथ्वीपति राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से यही प्रश्न किया था, जो तुमने मुझसे किया है। अतः जो कुछ भी ऋषि लोमश ने राजा मान्धाता को बतलाया, वही मैं तुमसे कह रहा हूँ।
राजा मान्धाता ने धर्म के गुह्यतम रहस्यों के ज्ञाता महर्षि लोमश से पूछा: हे ऋषिश्रेष्ठ! मनुष्य के पापों का मोचन किस प्रकार सम्भव है? कृपा कर कोई ऐसा सरल उपाय बतायें, जिससे सभी को सहज ही पापों से छुटकारा मिल जाए।
महर्षि लोमश ने कहा: हे नृपति! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचिनी एकादशी है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तुम्हें इस व्रत की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो।
प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक एक वन था। उसमें अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार किया करती थीं। वहाँ सदैव वसन्त का मौसम रहता था, अर्थात उस जगह सदा नाना प्रकार के पुष्प खिले रहते थे। कभी गन्धर्व कन्याएँ विहार किया करती थीं, कभी देवेन्द्र अन्य देवताओं के साथ क्रीड़ा किया करते थे।
Why does Nandi always sit in front of Lord Shiva in the temple and why is his face always towards the Shivlinga?
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Whenever we go for darshan of Bholenath all our attention is on Shivling and after that our attention goes to temple artwork and later on other things. We all have seen Nandi in the temple and before reaching the Shivling we bow our heads before Nandi and bow down to him.
Nandi always remains in front of Shivling.
In the temple of Lord Shankarji, the statue of his ride Nandi is installed in front of him because Nandi, the vehicle of Shivaji, is considered a symbol of Purusharth i.e. hard work and dedication.