मदरसों को बदनाम करना,उन्हें बंद करना,उन्हें तोड़ना,1857 की ग़दर से पहले अंग्रेजों ने शुरू किया क्यूँकि इस मुल्क में हज़ारों उलेमाओं ने ब्रिटिश शासन को मानने से इनकार कर दिया और अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ फ़तवा दे दिया।(1/n) #Madarsa
अल्लामा फज़ले हक़ ख़ैराबादी उनमे सबसे पहले फ़तवा देने वाले आलिमों में एक थे।जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया तो अंग्रेज जज ने कहा आप कह दे ये फ़तवा मैंने नहीं दिया,हम आपको रिहा कर देंगे,उन्होंने जवाब दिया मैंने ही दिया।फिर उन्हें काला पानी की सज़ा सुना दी गयी।(2/n)
1857 में मौ॰कासिम नानौतवी और मौलाना रशीद गंगोही के नेतृत्व में उलेमा के जत्थे ने शामली के मैदान में अंग्रेजो से जंग लड़ी। इस जंग का उद्देश्य अंबाला से मेरठ और दिल्ली जाने वाली अंग्रेजों की रसद के रास्ते को खत्म करना था। इस लड़ाई में उलेमा ने अंग्रेजों को करारी शिकस्त दी।(3/n)
सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी और कृष्ण कल्कि “लहू बोलता है”नामक पुस्तक में लिखते है “1857 की लड़ाई हिंदुओं और मुसलमानों ने मिलकर लड़ी थी और उस जंग में एक लाख मुस्लिम मारे गए थे।कानपुर से फर्रुखाबाद के बीच सड़क के किनारे जितने पेड़ थे उन पर मौलानाओं को फांसी पर लटका दिया गया।(4/n)
दिल्ली के चांदनी चौक से लेकर खैबर तक जितने पेड़ थे उन पर भी उलेमाओं को फांसी पर लटकाया गया था। 14 हजार उलेमाओं को सजा-ए-मौत दी गई थी।जामा मस्जिद से लाल किले के बीच मैदान में उलेमाओं को नंगा कर जिंदा जलाया गया। लाहौर की शाही मस्जिद में हर दिन 80 मौलवियों को फांसी दी गयी।”(5/n)
सैकड़ों उलेमाओं और मदरसे में पढ़ने वालों ने इस मुल्क की आज़ादी के लिए परचम बुलंद किया और जान दी,फिर जाकर हमें आज़ादी मिली आज कितना आसान है ना मदरसों पर तोहमत लगा देना।कुछ बड़े नाम मैं लिख रहा हूँ जिन्हें आपको याद रखना चाहिए और पढ़ना चाहिए(6/n)।
हज़रत शाह वलिल्लाह मोहददिस देहलवी,हज़रत सैयद अहमद शहीद,मौलवी मोहम्मद बाकर शहीद,मौलाना अहमद-दुल्लाह शाह,मौलाना महमूदुल हसन,मौलाना अनवर शाह कश्मीरी,मौलाना मोहम्मद अली जौहर आदि।ये सब मदरसे से निकले और मुल्क के लिए लड़े।मदरसों को बदनाम करना बंद करो और तारीख़ पढ़ो।(n/n)
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