फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और ऑर्डर दिया। वेटर ने ऑर्डर के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। @Sabhapa30724463 👇🏾
वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के @Geetaverma07👇🏾
माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।
भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई,चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण @rs414317👇🏾
सम्पूर्ण देश मे होने लगा था। 1984 में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।
इधर #रामानंद_सागर उत्साह से #रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन @Dada_4_U👇🏾
छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।
जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल 'विक्रम और वेताल' लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। 👇🏾👇🏾
यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली। ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को👇🏾👇🏾
मिल रहा था। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा। हालांकि राजीव गांधी के हस्तक्षेप से विरोध शांत हो गया।
इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा 👇🏾👇🏾
संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघ दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा। एक बार तो रामायण के संवादों👇🏾
को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया। ये वहीं समय था जब रामानंद सागर जैसे निर्माताओं के पैर दुबई के अंडरवर्ल्ड के कारण उखड़ने लगे थे। दुबई का प्रभाव बढ़ रहा था, जो आगे जाकर दाऊद इंडस्ट्री में परिवर्तित हो गया।
1986 में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने @KhatriGc
सूचना व प्रसारण का पद संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई। 25 जनवरी 1987 को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था। दूरदर्शन के दिन बदले। राम कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू लगने लगा
इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन मे कभी किसी ने हाय-हेलो नही किया। उनको सीता मानकर ही 👇🏾
सम्मान दिया जाता था।
अब नटराज स्टूडियो #साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते। एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है। साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। @DamaniN1963 👇🏾
तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। गरज कर बोला 'तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है। हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।
आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला।
*#सत्यम_शिवम_सुन्दरम*
बरसों बाद दूरदर्शन पर लौटा है।।
तुष्टिकरण की चटनी, सेकुलरिज्म का चम्मच और ये लाल चड्डी (वामपंथी जीव)...........☺
अस्सी के दशक में भारत में पहली बार रामायण जैसे हिन्दू 👇🏾👇🏾
धार्मिक सीरियलों का दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू हुआ..और 90 के दशक आते आते #महाभारत ने ब्लैक एंड वाईट टेलीविजन पर अपनी पकड मजबूत कर ली, यह वास्तविकता है की जब रामयण दूरदर्शन पर रविवार को शुरू होता था..तो सड़कें, गलियाँ सूनी हो जाती थी।
अपने आराध्य को टीवी पर देखने की ऐसी दीवानगी थी👇🏾
कि #रामायण सीरियल में राम बने अरुण गोविल अगर सामने आ जाते तो लोगों में उनके पैर छूने की होड़ लग जाती... इन दोनों धार्मिक सीरियलों ने नब्बे के दशक में लोगो पर पूरी तरह से जादू सा कर दिया...पर धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों से ये ना देखा गया नब्बे के दशक में कम्युनिस्टों ने👇🏾
इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से की..कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा देने वाली चीज़े दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर कैसे आ सकती है ?? इससे हिन्दुत्ववादी माहौल बनता है.. जो कि धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है।
इसी वजह से सरकार को उन दिनों “अकबर दी ग्रेट”👇🏾
टीपू सुलतान... अलिफ़ लैला.. और ईसाईयों के लिए “दयासागर“ जैसे धारावाहिकों की शुरुवात भी दूरदर्शन पर करनी पड़ी।
सत्तर के अन्तिम दशक में जब मोरार जी देसाई की सरकार थी और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे.. तब हर साल एक केबिनट मिनिस्ट्री की मीटिंग होती थी जिसमे विपक्षी दल👇🏾
भी आते थे.. मीटिंग की शुरुवात में ही एक वरिष्ठ कांग्रेसी जन उठे और अपनी बात रखते हुये कहा कि.. ये रोज़ सुबह साढ़े छ बजे जो रेडियो पर जो भक्ति संगीत बजता है.. वो देश की धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है.. इसे बंद किया जाए,, बड़ा जटिल प्रश्न था उनका.. उसके कुछ सालों बाद बनारस हिन्दू👇🏾
विद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने की मांग भी उठी.. स्कूलों में रामयण और हिन्दू प्रतीकों और परम्पराओं को नष्ट करने के लिए.. सरस्वती वंदना कांग्रेस शासन में ही बंद कर दी गई.. महाराणा प्रताप की जगह अकबर का इतिहास पढ़ाना.. ये कांग्रेस सरकार की ही देन थी.. केन्द्रीय विद्यालय का 👇🏾
लोगो दीपक से बदल कर चाँद तारा रखने का सुझाव कांग्रेस का ही था.. भारतीय लोकतंत्र में हर वो परम्परा या प्रतीक जो हिंदुओ के प्रभुत्व को बढ़ावा देता है को सेकुलरवादियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है... किसी सरकारी समारोह में दीप प्रज्वलन करने का भी ये विरोध कर चुके हैं..👇🏾
इनके अनुसार दीप प्रज्वलन कर किसी कार्य का उद्घाटन करना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.. जबकि रिबन काटकर उद्घाटन करने से देश में एकता आती है.. कांग्रेस यूपीए सरकार के समय हमारे रास्ट्रीय चैनल दूरदर्शन से “सत्यम शिवम सुन्दरम” को हटा दिया गया था
ये भूल गए है कि ये देश पहले @chhotiradha
भी हिन्दू राष्ट्र था और आज भी है ये स्वयं घोषित हिन्दू देश है.. आज भी भारतीय संसद के मुख्यद्वार पर “धर्म चक्र प्रवार्ताय अंकित है.. राज्यसभा के मुख्यद्वार पर “सत्यं वद--धर्मम चर" अंकित है.. भारतीय न्यायपालिका का घोष वाक्य है “धर्मो रक्षित रक्षितः“.. और सर्वोच्च न्यायलय @sr7696 👇🏾
का अधिकारिक वाक्य है, “यतो धर्मो ततो जयः“ यानी जहाँ धर्म है वही जीत है.. आज भी दूरदर्शन का लोगो.. सत्यम शिवम् सुन्दरम है।
ये भूल गए हैं कि आज भी सेना में किसी जहाज या हथियार टैंक का उद्घाटन नारियल फोड़ कर ही किया जाता है.. ये भूल गए है कि भारत की आर्थिक राजधानी @Nida_Faruqi_86 👇🏾
स्थित मुंबई शेयर बाजार में आज भी दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है.. ये कम्युनिस्ट भूल गए है कि स्वयं के प्रदेश जहाँ कम्युनिस्टों का 34 साल शासन रहा, वो बंगाल.. वहां आज भी घर घर में दुर्गा पूजा होती है.. ये भूल गए है की इस धर्म निरपेक्ष देश में भी दिल्ली के रामलीला मैदान
में स्वयं भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति राम-लक्ष्मण की आरती उतारते है.. और ये सारे हिंदुत्ववादी परंपराए इस धर्मनिरपेक्ष मुल्क में होती है..
हे धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों..!तुम धर्म को नहीं जानते. और इस सनातन धर्मी देश में तुम्हारी शातिर बेवकूफी अब ज्यादा दिन तक 👇🏾
चलेगी नही. अब भारत जाग रहा है, अपनी संस्कृति को पहचान रहा है।
👉🏾 विभाजन : "कुरान की कसम" और कत्ल ; एक साजिश.. #चंद्रभान
शूजाबाद, पाकिस्तान
भारत विभाजन के दौरान हमारे साथ जो हुआ, वह बहुत ही डरावना है। बंटवारे के वक्त मेरी उम्र 16 साल थी। चारों ओर मार-काट हो रही थी। हमारे गांव से करीब छह मील दूर तरेगने नाम से एक गांव है। @Sabhapa30724463 👇🏾
वहां एक दिन मुसलमानों ने हिंदुओं पर हमला कर दिया। सभी हिंदू छत पर चढ़ गए और वहां से ईंट-पत्थर चलाकर मुसलमानों का मुकाबला करने लगे।
जब हिंदू भारी पड़ने लगे तो कुछ मुसलमान सिर पर कुरान रखकर सामने आए और बोले, ‘कसम कुरान की अब तक जो हुआ सो हुआ, आगे कुछ नहीं होगा। नीचे उतरो @rs414317
बातचीत करके मसला हल कर लेते हैं।’ जैसे ही कुछ लोग नीचे आए वैसे ही मुसलमानों ने कुरान को रखकर तलवार से उनकी गर्दन काट दी।
एक दूसरी घटना रामपुर में हुई। वह भी मेरे गांव के पास ही है। वहां डॉ. रूगनाथ जावा बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनका बड़ा घर था और घर के एक हिस्से में बहुत 👇🏾👇🏾
#गुमनाम_क्रांतिकारी🚩🙏
अमृत महोत्सव – भारत की स्वतंत्रता में जनजातीय नायकों का योगदान :-
स्वाधीनता का अमृत महोत्सव जनजातीय वीर स्वतंत्रता सेनानियों को एक अरण्यांजलि है. जनमानस में स्वतंत्रता के उस भाव को जागृत करना है, जिसके लिए अनगिनत जनजाति वीर योद्धाओं ने अपना सर्वस्व👇🏾👇🏾
समर्पित किया. उनकी इस शौर्यगाथा को प्रबुद्ध जनमानस तक पहुंचाने का श्रेष्ठ माध्यम लेखन कार्य ही है.
जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास
भारतीय सीमाओं का अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि इन सीमाओं पर निवास करने वाला समू जनजातीय समाज ही था. जब-जब आक्रांताओं ने भारत में प्रवेश👇🏾👇🏾
करने का प्रयास किया, उनका सामना पहली रक्षा पंक्ति में खड़े वनवासियों से होता था. आक्रमणकारी अलेक्जेन्डर का भारत में प्रवेश और सिबई, अगलासोई, मल्लस जैसी जनजातियों के साथ ‘युद्ध से स्पष्ट’ समझा जा सकता है. वनवासियों की आरंभिक क्रांति आगे चल कर स्वाधीनता आंदोलन बनी. भारत के 👇🏾👇🏾
पश्चिम बंगाल की ममता बानो शायद देश की सबसे होशियार महिला हैं इसीलिए गैर भाजपा वाले राज्य के मुख्यमंत्री उन्हीं को फॉलो करते हैं। मोमता की ये हार्दिक इच्छा है कि वो आजीवन पश्चिम बंगाल की गद्दी पर बनी रहें। लाख चुनाव होते रहें पर @Geetaverma07 👇🏾
जनसंख्या की डेमोग्राफी बदल जायेगी तो चुनाव मात्र एक खानापूरी बन कर रह जायेगा और इसी सोच के तहत उन्होंने बांग्लादेशी घुसपैठियों को अथाह सुविधाओं और नौकरी का लालच देकर पश्चिम बंगाल में न केवल बसाया वरन हिंदुओं के शोषण और पलायन का भी इंतजाम कर दिया। जब बांग्लादेशियों से भी मन नहीं👇🏾
भरा तो रोहिंज्ञाओं के लिए भी द्वार खोल दिये। सरकारी नौकरियों में केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के दिये निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए सौ प्रतिशत तक मोमिनों की भर्ती कर डाली। आज नतीजा सामने है बीजेपी के चाणक्य अमित शाह, जेपी नड्डा और मोदी जी पश्चिम बंगाल में लाख रैलियां कर लें👇🏾
👉🏾कभी सोचा है कि यदि भारत मे मुगलों का ही शासन था, तो हम हिन्दू जिंदा कैसे बच गए या हिन्दू कैसे रह पाए ?
क्योंकि मुसल्मान की ये फितरत तो है नहीं कि वो हावी होने के बाद गैर मुस्लिम को जिंदा छोड़ दे ?
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असल मे हम हमेशा तीन लोगों के लिखे इतिहास को पढ़ते हैं.. @Sabhapa30724463👇🏾
#इतिहास_हमारा_गौरव🚩 #महाराणा_सांगा 🙏
बाबर को हिंदोस्तान का ताज पानीपत जितने से नही मिला बल्कि जब खानवा में उसकी तोपों के सामने सांगा के राजपूत पीछे हटे और फिर कुछ समय बाद सांगा को किसी अपने ने ही विष देकर मार दिया तो बाबर " हिंदोस्तां" का शासक बन बैठा।
इतिहासकार मेवाड़ में 👇🏾
गुहिलोत राजपूतों के शासक बनने का वर्ष 734 ईस्वी को मानते हैं जब नागदा " मेवाड़" के गुहिलोतो की राजधानी बनी ।फिर 948 ईस्वी में राजधानी बनी " अहर" ।1213 ईस्वी में चित्तौड़ " मेवाड़" के गुहिलोतो की राजधानी हुई।
इनके शासन को पहली बड़ी पराजय 1303 ईस्वी में मिली जब अलाउद्दीन खिलजी के
हाथों रावल रतन सिंह को पराजय मिली।
पर हार क्षणिक ही थी और वहां गुहिलोतो ने संघर्ष जारी रखा और 1326 ईस्वी में सिसोदा गांव के गुहिलोत वंशी राणा हम्मीर ने तुर्को को पराजित कर मेवाड़ पुनः गुहिलोतो के लिए जीत लिया। राणा हम्मीर से गुहिलोतो की यह शाखा सिसोदिया के नाम से प्रसिद्ध हुई।👇🏾