आप जानते हैं, हमारे बीच चीताजी पधार चुके हैं।चीताजी विलुप्त होने से पहले भारत के मूल निवासी माने जाते थे। १९५२ में उन्हें भारत में विलुप्त मानकर विदेशी घोषित कर दिया गया।चीता जी अफ्रीका में बस गए। जब वापस आए हैं तो लोग उनके आने को घर वापसी कह रहे हैं।
वे हमसे बड़ी सहृदयता से मिले और हमारे प्रश्नों के उत्तर खुलकर दिए। पढ़िए कुछ अंश –
चीता जी दूर खड़े थे, पास आने के लिए उन्होंने ही पूछा – “मैं आऊं?”
हमने कहा – “आइए आइए, स्वागत है आपका। कैसा लग रहा है आपको भारत आकर?” #कूनो
इस प्रश्न पर वे केवल मुस्कुराए और चिड़िया की तरह चहचहा उठे -“चां चां चां”। उनका तात्पर्य था कि वे बहुत प्रसन्न हैं।
फिर भी हमने शिष्टाचार में पूछा – “कैसे हैं आप?”
वे बोले “आं म्यां आं म्यां”
“देखिये, ऐसे राम राम बोलेंगे तो सांप्रदायिक घोषित हो जायेंगे। अपने बारे में कुछ बताइये?”
“हमारे पूर्वज थे तो भारतीय ही, फिर हम व्यापार के चलते अफ्रीका में बस गए।”
हमें यह जानकार अत्यंत प्रसन्नता हुई। हमने पूछा – “लोग आपके भारत आने को घर वापसी की संज्ञा दे रहे हैं। क्या अफ्रीका में अपने धर्म परिवर्तन किया था? अब जब लौटे हैं तो क्या आपका शुद्धिकरण किया गया है?”
बड़े बड़े दांत दिखाते हुए बोले – “जी घर वापसी तो है। अफ्रीका में वे अफ्रीकी थे लेकिन अब पूरी तरह से भारतीय हो गए हैं।”
इस पर हमनें पूछा – “तो जब आपको नागरिकता दी गई तो क्या CAA के तहत दी गई? आप CAA को कैसा कानून मानते हैं?”
उन्होंने बड़े विस्मय से हमारी ओर देखा।
बोले – “हम जैसे CAA.T. फॅमिली वालों के लिए तो अच्छा ही है। जो भारत में बसना चाहते हैं। “
“आपको नहीं लगता CAA के माध्यम से CAA.T. फॅमिली के आलावा अन्य फॅमिली वाले जानवरों को भी भारत में बसने का मौका मिलना चाहिए?”
वे बोले – “किसनें रोका है?”
“तो क्या उनको भी घर वापसी करनी पड़ेगी?”
”जो यहाँ का है वो यहीं का है। घर वापसी से अच्छा क्या होगा?”
“आप संघ से प्रभावित लगते हैं। हमारे एक पाठक मंडल का मानना है कि आप अब शिकार करेंगे। आपके शिकार के लिए चीतल वगैरह छोड़े गए हैं। आप उनकी गर्दन तोड़ेंगे और उनको खा जायेंगे? “
“आपका पाठक मंडल कतई भ्रमित प्रतीत होता है।
शिकारी शिकार नहीं करेगा तो क्या – बुध्दं शरणं गच्छामि कहते हुए घास खाएगा? “
“तो क्या शिकार पाप नहीं है?”
“पाप है अपनी कुंठाओं, मनोरंजन और भय व्याप्त करने के लिए अकारण किसी पर आक्रमण करना।”
“फिर भी शिकार तो आप करेंगे ही न?”
“हाँ, भूख मिटाने के लिए। लेकिन द्वेष तो नहीं फैलाएंगे।
गधों के हिस्सों की घास तो खाएंगे ही नहीं।”
“फिर लोग तो यह भी कह रहे हैं कि आपके आने से बेरोजगारी दूर नहीं हो रही? न महंगाई कम हो रही है। महिला सशक्तिकरण भी नहीं होगा।”
“वे तो कुछ भी बोल सकते हैं। वे सशक्तिकरण ठीक से बोल पाए?”
“आप जवाब दीजिये – आपके आने से गरीबों को क्या फायदा?”
“नुक्सान भी क्या होगा? हम तो चुपचाप जंगल में घूमते रहेंगे, और पैसे भी नहीं लेंगे। आप उनसे ही पूछिए कि वो जो AC वाले कंटेनर में जो जोड़-तोड़ करते घूम रहे हैं, उससे कितने किलोमीटर गरीबों को रोजगार मिल गया?”
“खैर छोड़िये। एक नेता जी कह रहे हैं कि आप १३ साल पहले आने वाले थे।
तब क्या हुआ था? आपका मन नहीं था?”
“हमारे दादा रहे होंगे, जरूर उस समय की सरकार को देखकर मना कर दिया होगा। वैसे भी उनके समय में कौन से निर्णय समय पर लिए जाते थे। उस समय की सरकार ने योजना बनाई होगी। योजना तो बहुत बनाते थे, पूरी कितनी करते थे? हर योजना की तरह यह योजना भी धरी रह गई।
“तो निर्णय में देरी से आप आहत हैं?”
“जितनी देर वो सरकार करती थी, उतने साल तो हम जीते नहीं। जो आहत हुए होंगे वो तो चल बसे। “
“इतिहास में आपके पूर्वजों का मुगलों के साथ गहरा रिश्ता मिलता है। आपके दादा कुछ सुनाते थे मुगलों के बारे में?”
“बिलकुल है। हम पहले मुगलई चीते कहलाते थे।"
मुगलों के साथ मुगलई चला गया।सोच रहे हैं ग्वालियर और ओरछा के जहांगीर महल पर दावा ठोक दें।”
“जैसा मोदी जी ने कहा है कि उस समय कबूतर छोड़ते थे, अब चीते छोड़ते हैं। आपका इसपर क्या विचार है?”
“ये मोदी जी के अपने विचार हैं। हम तो मानते हैं कबूतर छोड़ने वाले चाचा और चीते का च एक ही है।
अब मोदीजी ने हमें छोड़ा है या नया घर दिया है समय बताएगा। बस एक शिकायत रह गई, सबको भाषण देते हैं। छोड़ते समय एक छोटा सा भाषण हम चीतों को भी दे देते। या थोड़ी देर के लिए सही फॉलो ही कर लेते। लेकिन हम कौन से उनको वोट देने वाले हैं।”
“क्यों नहीं देंगे? फिर किसको देंगे?”
“किसी को नहीं देंगे?”
“क्यों?”
“क्योंकि वोट देने की उम्र १८ साल है। हम बारह से ज्यादा जीते ही नहीं।”
“और किसी नेता नें आपका स्वागत किया है?”
“जी, किसी हैंडसम ने हमारे बच्चों के लिए झुनझुना भेजा है।
एक नेताजी का फोन आया था वो चीतों को नंबर वन बनाने की बात कह रहे थे। उन्होंने हमें मुफ्त हिरण और हमारे बच्चों को सर्कस ट्रेनिंग देने का वादा भी किया।
उसके लिए वो जंगल में स्कूल बनवाएंगे।
एक नेत्री नें हमारे ऊपर कविता भी लिख डाली जो हमको समझ में नहीं आई –
चीता पीता,
काटा फीता,
कच्चा बादाम,
पक्का पपीता।
चीता आता कोलकाता,
आटा बाटा खाता
आम, जामुन, अनारस,
चलो जाएँ बनारस।
संतरा मौसंबी किन्नू,
चीता का घर कुन्नू।
एक #अरबनराकस नेता ने हमको देख लेने की बात की।”
कोई ट्रिन-ट्रिन करते आए थे। बिलकुल भोले बालबुद्धि वाले।
आते ही जिद करने लगे – “दहाड़ के दिखाओ।”
हमने कहा -” हम नहीं दहाड़ते।”
वे बोले – “दहाड़ना तो पड़ेगा।”
हमने कहा – “हम गुर्राते हैं। और उनको गुर्रा कर दिखाया। वे हंसने लगे, बोले हम इतने दिनों से दहाड़ का इंतज़ार कर रहे थे।
ये तो बड़ा बिल्ला निकला। चीता बोलके मोदी जी बिल्ला उठा लाए।”
हम उनको क्या समझाते, हमने बस इतना कहा "हमने कभी साइकिल नहीं देखी एकबार चालू कर के दिखा दो।"
वे कहने लगे "साइकिल में इंजन नहीं होता।"
"हमने कहा साइकिल का टैंक फुल करवा के आओ रेस लगायेंगे।"
"साइकिल में पेट्रोल नहीं डलता।" कहते हुए चुपचाप चले गए।
“जी ये तो है तरह तरह के नेता, तरह तरह की बात। अब ये कूनो ही आपका घर है। आशा है आप ख़ुशी से रहेंगे।”
“हाँ, हम तो घर ही समझते हैं बस ये वफ्फ वाले पहले जंगल और फिर हमको ही अपनी संपत्ति न घोषित कर दें।
हमने अंतिम प्रश्न किया - "इस थ्रेड के चोरी होने की कितनी संभावना है?"
चीता जी बोले - "है तो उतनी ही जितनी शेर वाले की थी। लेकिन इस थ्रेड को चुराने वालों को चितचोर चीता मित्र घोषित कर दीजिये।"
अंततः आधार अपडेट करवाने में सफलता मिली। अपना अनुभव साझा कर रहा हूँ ताकि किसी के काम आ सके।
मेरे बच्चों के आधार कार्ड में उनका उपनाम नहीं था, अतः नाम ठीक करवाना था। पहले कोई परेशानी नहीं होती थी लेकिन अब सरकार ने कुछ नियम बदले और आधार अपडेट करवाना मुश्किल हो गया। स्थानीय छोटे-छोटे आधार सेंटर बंद हो गए और अब सभी सुधार या तो ऑनलाइन अथवा आधार सेवा केंद्र पर होने लगे।
जैसा कि आधार की वेबसाइट पर जानकारी उपलब्ध थी, कई वीडियो और डॉक्यूमेंट भी उपलब्ध हैं जिनपर बताया गया कि बच्चों का आधार उनके जन्मप्रमाण पत्र के आधार पर हो जाता है।
हम बच्चों को लेकर आधार सेवा केंद्र गए। पहले तो वहाँ मना कर दिया गया कि जन्मप्रमाण पत्र के आधार पर नाम नहीं बदले जाते। फिर भी कुछ देर अनुरोध करने और आधार वेबसाइट पर ऐसी जानकारी होने के बाद वेलिडेशन डेस्क पर बैठे व्यक्ति ने अपने साथी से पूछकर फॉर्म पर सील लगाकर आगे बढ़ा दिया।
एप्लीकेशन रिजेक्ट होने का मैसेज उसी रात को आ गया। कारण बताया गया -
The mentioned EID/URN/SRN got rejected in Quality data check due to various reject reason codes like poor photograph, demographic errors, invalid documents or policy reject. So we request you to kindly re-enroll with proper demographic details, biometrics and valid documents.
एक बार रावण किसी काम से किष्किंधा गया। वह सड़क पर घूम रहा था कि एक लोकल वानर से पूछा– भाई साहब ये विधान सभा का रास्ता किधर से है?
वानर ने रावण को ऊपर से नीचे तक देखा। ड्रेसिंग साउथी स्पीकिंग नार्थी। पक्का नॉर्थ से है, यह मानकर वानर बोला – ओनली वानरी, नो हिंदी।
रावण ने कहा – विधान सभा? व्हेयर?
वानर बोला – नो विधानसभा, इट्स विधानसौदा।
रावण हंसते हुए बोला, भाई समझ तुझे सब आरा है। नहीं बताना तो न बता।
वानर बोला – वू यू?
"माइसेल्फ रावण, बोर्न नोएडा, लिविंग लंका। किंग ऑफ लंका।"
इतना सुनते ही वानर ने रावण को अपनी कांख में दबा लिया।
वानर कोई और नहीं किष्किंधा का राजा बाली था। बाली, बलशाली था। जो भी उसके सामने आता उसकी आधी शक्ति और आधी भाषा अपने अंदर खींच लेता था। उसे कांख में दबाए हुए कहने लगा– "वानरी भाषा में बोल।"
रावण बार–बार कहता नहीं आती।
बाली उसे कांख में दबाए घूमता रहता।
एक बार की बात है, दो मित्र एक एसयूवी में बैठकर यात्रा पर जा रहे थे। उनमें से एक ने कहा "मित्र हम हसीनापुर के पास हैं, मेरी मानो तो कोई बायपास लेकर बाहर से ही इस नगर को पार कर लो। इस नगर से हमें दूर ही रहना चाहिए। अंदर जाना खतरनाक है।"
दूसरे ने आश्चर्य पूछा – "क्यों मित्र?"
"यह रीजक का नगर है। इस नगर में सबके बाप की पहचान है। यहां घुसने से पूर्व जानना होता है कि किसका बाप कौन है।
यहां सबकुछ मुफ्त है। कमाई गुप्त है। शासन सुप्त है।
इस नगर में अव्यवस्थाएं चरम पर हैं। कानून व्यवस्था भ्रम पर हैं। न्याय है विचित्र और हर चीज केवल दो कौड़ी की है मित्र।"
"यह तो बड़ा रोचक जान पड़ता है। एक बार तो देखना ही चाहिए कि यहां मुफ्त में क्या क्या मिलता है। कुछ नहीं तो दो दो कौड़ी में मिलने वाली कुछ वस्तुएं ही खरीद लेते हैं।"
"मित्र रहने दो, यहां मनुष्य के प्राण भी दो कौड़ी के ही हैं।"
"प्राण तो हर जगह सस्ते हैं। –
एक दिन ९९ के जननायक सड़क पर निकले। वे सड़क पर अक्सर निकलते हैं।एक जगह उन्हें एक मोची मिला। मोची चप्पल सिल रहा था।जननायक का मन भी चप्पल सिलने का हुआ।जननायक ने चप्पल सिली। मोची अगर भजिए बना रहा होता तो जननायक का मन भजिए बनाने का हो जाता।जननायक का मन ही ऐसा है।
सब कहने लगे कि अब जननायक ने मोची पर कृपा कर दी है, मोची के दिन फिर गए। मोची पर कोई असर नहीं हुआ था, वह अब भी चप्पल ही सिल रहा था।
एक दिन एक जननायक की पार्टी का एक नेता उसके पास आया और बोला उसे वो चप्पल देखनी है जो जननायक ने सिली थीं।
मोची ने कहा –पता नहीं कहां हैं।
तब उस नेता ने उन चप्पलों को देखने के लिए बहुत पैसा देने की बात की। मोची ने सोचा सिर्फ चप्पल देखने के पैसे?
नेता ने और उत्सुकता दिखाई, और कहा चप्पल छूने दोगे तो दुगने पैसे दूंगा।
पहले तो मोची ने सोचा पागल है। फिर मान गया। अब उसने वो चप्पल ढूंढनी शुरू की।
कुंठित पत्रकारों की सभा हो रही थी। सभी आदि इत्यादि पत्रकार रोनी सूरत बनाकर बैठे हुए थे। बैठे-बैठे सामूहिक सपना देखने लगे। कांग्रेस की सरकार आ गई है और राह–उल–गान्ही प्रधानमंत्री बन गए हैं। जी–२० का आयोजन हो रहा है।
तैयारियों के नाम पर एक लाख करोड़ रुपए आवंटित हुए थे जिसे मंत्री खा गए हैं। सबको हिस्सा मिला है। गान्ही बाबा ने कहा है कुछ तैयारी की जरूरत नहीं है। जो जैसा है वैसा ही दिखाएंगे।अपनों से क्या छिपाना?
एक पत्रकार ने सपने में देखा राष्ट्राध्यक्ष आ रहे हैं। उन्हें लेने कोई नहीं गया।
सब रिक्शा कर के जनवासे में जा रहे हैं। सबको एक स्कूल में ठहराया गया है। स्कूल के कमरे अलग अलग देशों को दे दिए गए हैं। सारी डेस्क उठाकर एक कोने में एक के ऊपर एक चढ़ा कर रख दी गई हैं। कमरों में दरी बिछी है। दरी पर सफेद चादर में लिपटे गद्दे हैं। साथ में काले कंबल भी रखे हैं।
वैसे तो इस थ्रेड में तर्क वगैरह हो स्वाहा ही समझिये। फिर भी अगर बिना किसी तर्क के ही पढ़ सकें तो पढ़ें।
एक नई फिल्म के टीजर देखने के बाद, हमने सोचा अगर पुराने जमाने के टिपिकल मसाला फिल्मों वाले इस फिल्म के डायलॉग लिखते तो कैसे लिखते। डायलॉग और सीन कैसे होते?
किसी किले के सामने –
"रावण अली! चुपचाप अपने दोनों हाथ ऊपर कर के बाहर आ जाओ। वानरों ने तुम्हें चारों तरफ से घेर लिया है।"
"तुमने अभी रावण का कहर देखा नहीं है सूर्यवंशी। रावण के खौफ से देवता भी थर थर कांपते हैं।"
पृष्ठभूमि में संगीत ~ लंक..लंक..ल..ल ...लंकेश ..लंकेश।
"रावण जब स्वर्ग की तरफ देख भी लेता है तो देवता कहते हैं अप्सराओं छुप जाओ नहीं तो रावण आ जाएगा।"
"ये गीदड़ भभकी किसी और को देना रावण। माँ का दूध पिया है तो बाहर निकल। क्या कायरों की तरह छुप कर बैठा है।"