श्रीमद्भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद में लिखा है कि पृथ्वी के नीचे पाताल लोक है और इसके स्वामी शेषनाग हैं। भूमि से दस हजार योजन नीचे अतल, अतल से दस हजार योजन नीचे वितल, उससे दस हजार योजन नीचे सतल, #Thread
इसी क्रम से सब लोक स्थित हैं। अतल, वितल, सतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल ये सातों लोक पाताल स्वर्ग कहलाते हैं।
इनमें भी काम, भोग, ऐश्वर्य, आनन्द, विभूति ये वर्तमान हैं। दैत्य, दानव, नाग ये सब वहां आनन्द पूर्वक भोग-विलास करते हुए रहते हैं। इन सब पातालों में अनेक पुरियां प्रकाशमान
रहती हैं। इनमें देवलोक की शोभा से भी अधिक बाटिका और उपवन हैं। इन पातालों में सूर्य आदि ग्रहों के न होने से दिन-रात्रि का विभाग नहीं है। इस कारण काल का भय नहीं रहता है। यहां बड़े-बड़े नागों के सिर की मणियां अंधकार दूर करती रहती हैं। पाताल में ही नाग लोक के पति वासुकीआदि नाग रहते
हैं। श्री शुकदेव के मतानुसार पाताल से तीस हजार योजन दूर शेषजी विराजमान हैं। शेषजी के सिर पर पृथ्वी रखी है। जब ये शेष प्रलय काल में जगत के संहार की इच्छा करते हैं, तो क्रोध से कुटिल भृकुटियों के मध्य तीन नेत्रों से युक्त 11 रुद्र त्रिशूल लिए प्रकट होते हैं। पौराणिक ग्रंथों में
शेषनाग के फण (मस्तिष्क) पर पृथ्वी टिकी होने का उल्लेख मिलता है।
#अर्थात् इन परमदेव ने विश्वरूप अनंत नामक देवस्वरूप शेषनाग को उत्पन्न किया, जो पर्वतों सहित इस सारी पृथ्वी को
तथा भूतमात्र को धारण किए हुए है।
उल्लेखनीय है कि हजार फणों वाले शेषनाग समस्त नागों के राजा हैं। भगवान् की शव्या बनकर सुख पहुंचाने वाले, उनके अनन्य भक्त हैं और बहुत बार भगवान् के साथ-साथ अवतार लेकर उनकी लीला में सम्मिलित भी रहते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के 10वें अध्याय के 29वें
श्लोक में भगवान् कृष्ण ने कहा है-अनन्तश्चास्मि नागानाम्' अर्थात् मैं नागों में शेषनाग हूं।
नींव पूजन का पूरा कर्मकांड इस मनोवैज्ञानिक विश्वास पर आधारित है कि जैसे शेषनाग अपने फण पर संपूर्ण पृथ्वी को धारण किए हुए है, ठीक उसी प्रकार मेरे इस भवन की नींव भी प्रतिष्ठित किए हुए
चांदी के नाग के फण पर पूर्ण मजबूती के साथ स्थापित रहे ।
शेषनाग क्षीरसागर में रहते हैं, इसलिए पूजन के कलश में दूध, दही, घी डालकर मंत्रों से आह्वान कर शेषनाग को बुलाया जाता है, ताकि वे साक्षात् उपस्थित होकर भवन की रक्षा का भार वहन करें। विष्णुरूपी कलश में लक्ष्मी स्वरूप सिक्का
डालकर पुष्प व दूध पूजन में अर्पित किया जाता है, जो नागों को अतिप्रिय है। भगवान् शिवजी के आभूषण तो नाग है ही। लक्ष्मण और बलराम शेषावतार माने जाते हैं। इसी विश्वास से यह प्रथा जारी है।
साभार :
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हमारे सनातनी विज्ञानी मनीषियों ने जीवन के हर क्षेत्र में उपयोग होने वाले वस्तुओं का निर्माण किया।
वो लघु हो या विशालकाय कोई अंतर नहीं किया गया और सब निर्माण उत्कृष्ट ही रहा।
वह शल्यक्रिया से सम्बंधित यंत्र हो या तकनीकी, विज्ञान, भौतिकी, मन्दिर, भवन, #Thread
राजप्रासाद, अस्त्र शस्त्र, यातायात साधन विमान कृषि यंत्र या कुछ और.. सभी प्रकार के उपयोगी निर्माण किया गया।
तो वे क्या "कटलरी" चम्मच/कांटा/छूरी का निर्माण कार्य भूल गए थे जो उन्होंने नहीं बनाया।
और आज हमें आधुनिकता में इन वस्तुओं का उपयोग आत्मिक संतुष्टि देता है कि हम भी
पाश्चात्य संस्कृति के फॉलोवर्स हैं। कि हम भी स्टैंडर्ड मेंटेन करते हैं।
#आईए_जानते_हैं :-
इस सृष्टि में सभी वस्तुओं की रचना पञ्च महाभूतों से ही हुआ है
आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी।
हमारी काया का निर्माण भी इन्हीं पञ्च महाभूतों से हुआ है।
हमारे देह में पाँच कोश हैं :-
समुद्र तल से 3,380 फीट की ऊंचाई पर स्थित, चरणपादुका शिलाखंड एक आध्यात्मिक स्थल माना जाता है
ऐसा माना जाता है कि इस शिलाखंड में भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं, जो उस समय उकेरे गए थे #Thread
जब उन्होंने वैकुंठ (स्वामी का स्वर्ग का निवास) से नीचे अपने दिव्य पैरों को पृथ्वी पर रखा था
एक और कहानी यह बताती है कि भगवान कृष्ण ने अपने मंत्री उद्धव को अपनी चप्पल या चरणपादुका के साथ बद्रीनाथ की यात्रा करने का सुझाव दिया था और इसी तरह उनका पदचिह्न शिलाखंड में ढाला गया था
मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं,
तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपका धन्यवाद कर सकूं।
जब एक टेलीफोन साक्षात्कार में भारतीय
अरबपति रतनजी टाटा से रेडियो प्रस्तोता ने पूछा: #Thread
"सर आपको क्या याद है कि आपको जीवन में सबसे अधिक खुशी कब मिली"?
रतनजी टाटा ने कहा:
मैं जीवन में खुशी के चार चरणों से गुजरा हूं, और आखिरकार मुझे सच्चे सुख का अर्थ समझ में आया।
पहला चरण धन और साधन संचय करना था।
लेकिन इस स्तर पर मुझे वह सुख नहीं मिला जो मैं चाहता था।
फिर क़ीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया।
लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का असर भी अस्थायी होता है और कीमती चीजों की चमक ज्यादा देर तक नहीं रहती।
फिर आया बड़ा प्रोजेक्ट मिलने का तीसरा चरण। वह तब था जब भारत और अफ्रीका में डीजल की आपूर्ति का 95% मेरे पास था
🍁 नवरात्रि में कन्या पूजन में ध्यान रखे कि कन्याओ की उम्र दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो ।
🍁 शास्त्रों के अनुसार दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहा गया है ।
कुमारी के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है ।
🍁 तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति माना गया है । त्रिमूर्ति के पूजन से धन लाभ होता है ।
🍁 चार वर्ष की कन्या को कल्याणी कहते है । कल्याणी के पूजन से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है
🍁 पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा गया है । माँ के रोहणी स्वरूप की पूजा करने से जातक के घर परिवार से सभी रोग दूर होते है।
🍁 छः वर्ष की कन्या kanya को काली कहते है । माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि, यश और सभी क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है ।
क्या तुमने इसके सारे गुणधर्म देखे हैं, जो इसकी रचना के लिए जरूरी हैं।
यह हर प्रकार की परिस्थितियों को संभाल सकती है। यह एकसाथ अपने सभी बच्चों को संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है। यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टूटे दिल के घाव भी भर सकती है। यह सब सिर्फ अपने दो
यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टूटे दिल के घाव भी भर सकती है। यह सब सिर्फ अपने दो हाथों से कर सकती है। इसमें सबसे बड़ा गुणधर्म यह है कि बीमार होने पर अपना ख्याल खुद रख सकती है एवं 18 घंटे काम भी कर सकती है।
देवदूत चकित रह गया और आश्चर्य से पूछा कि भगवान क्या