सीताजी की अग्नि परीक्षा...

प्रभु के बचन सीस धरि सीता।
बोली मन क्रम बचन पुनीता॥
लछिमन होहु धरम के नेगी।
पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी॥

भावार्थ:- प्रभु के वचनों को सिर चढ़ाकर मन, वचन और कर्म से पवित्र श्री सीताजी बोलीं- हे लक्ष्मण! तुम मेरे धर्म के नेगी (धर्माचरण में सहायक)
(1/9)
बनो और तुरंत अग्नि तैयार करो॥

सुनि लछिमन सीता कै बानी।
बिरह बिबेक धरम निति सानी॥
लोचन सजल जोरि कर दोऊ।
प्रभु सन कछु कहि सकत न ओऊ॥

भावार्थ:- श्री सीताजी की विरह, विवेक, धर्म और नीति से सनी हुई वाणी सुनकर लक्ष्मणजी के नेत्रों में (विषाद के आँसुओं का) जल भर आया। वे हाथ (2/9)
जोड़े खड़े रहे। वे भी प्रभु से कुछ कह नहीं सकते॥

देखि राम रुख लछिमन धाए।
पावक प्रगटि काठ बहु लाए॥
पावक प्रबल देखि बैदेही।
हृदयँ हरष नहिं भय कछु तेही॥

भावार्थ:- फिर श्री रामजी का रुख देखकर लक्ष्मणजी दौड़े और आग तैयार करके बहुत सी लकड़ी ले आए। अग्नि को खूब बढ़ी हुई देखकर (3/9)
जानकीजी के हृदय में हर्ष हुआ। उन्हें भय कुछ भी नहीं हुआ॥

जौं मन बच क्रम मम उर माहीं।
तजि रघुबीर आन गति नाहीं॥
तौ कृसानु सब कै गति जाना।
मो कहुँ होउ श्रीखंड समाना॥

भावार्थ:- (सीताजी ने लीला से कहा) यदि मन, वचन और कर्म से मेरे हृदय में श्री रघुवीर को छोड़कर दूसरी गति (4/9)
(अन्य किसी का आश्रय) नहीं है, तो अग्निदेव जो सबके मन की गति जानते हैं, (मेरे भी मन की गति जानकर) मेरे लिए चंदन के समान शीतल हो जाएँ॥

छंद:-

श्रीखंड सम पावक प्रबेस कियो सुमिरि प्रभु मैथिली।
जय कोसलेस महेस बंदित चरन रति अति निर्मली॥
(5/9)
प्रतिबिंब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुँ जरे।
प्रभु चरित काहुँ न लखे नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे॥

भावार्थ:- प्रभु श्री रामजी का स्मरण करके और जिनके चरण महादेवजी के द्वारा वंदित हैं तथा जिनमें सीताजी की अत्यंत विशुद्ध प्रीति है, उन कोसलपति की जय बोलकर जानकीजी ने चंदन के (6/9)
समान शीतल हुई अग्नि में प्रवेश किया। प्रतिबिम्ब (सीताजी की छायामूर्ति) और उनका लौकिक कलंक प्रचण्ड अग्नि में जल गए। प्रभु के इन चरित्रों को किसी ने नहीं जाना। देवता, सिद्ध और मुनि सब आकाश में खड़े देखते हैं॥

धरि रूप पावक पानि गहि श्री सत्य श्रुति जग बिदित जो।
(7/9)
जिमि छीरसागर इंदिरा रामहि समर्पी आनि सो॥
सो राम बाम बिभाग राजति रुचिर अति सोभा भली।
नव नील नीरज निकट मानहुँ कनक पंकज की कली॥

भावार्थ:- तब अग्नि ने शरीर धारण करके वेदों में और जगत्‌ में प्रसिद्ध वास्तविक श्री (सीताजी) का हाथ पकड़ उन्हें श्री रामजी को वैसे ही समर्पित (8/9)
किया जैसे क्षीरसागर ने विष्णु भगवान्‌ को लक्ष्मी समर्पित की थीं। वे सीताजी श्री रामचंद्रजी के वाम भाग में विराजित हुईं। उनकी उत्तम शोभा अत्यंत ही सुंदर है। मानो नए खिले हुए नीले कमल के पास सोने के कमल की कली सुशोभित हो॥

#जय_श्री_राम

#साभार
(9/9)
🙏🙏

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Oct 21
कार्तिक की कहानियाँ...

ताराभोजन की कहानी

एक राजा की लड़की तारा भोजन करती थी। उसने अपने पिताजी से कहा, पिताजी मुझे नौ लाख तारे बनवा दो, मैं, दान करूँगी। राजा ने सुनार को बुलाया और कहा कि मेरी बेटी तारा भोजन करती है तुम नौ लाख तारे बना दो। इतना सुनकर सुनार सूखने लगा।
(1/7) Image
सुनारी ने पूछा कि उदास क्यों रहते हो। उसने कहा राजा की लड़की ने नौ लाख तारे बनाने के लिए कहा है। मैं कैसे बनाऊँ मुझे तारे बनाने नहीं आते। राजा की बात है, नहीं बने तो कोल्हू में पिलवा देगा।

सुनारी ने कहा, इसमें परेशान होने की क्या बात है। गोल-सा पतरा काट के कलिया काट (2/7)
देना, राजा ले जाएगा।

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Oct 21
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वाराणसी को मंदिरों का शहर भी कहते हैं। इन मंदिरों की श्रृंखला में काशी का एक ऐसा मंदिर है जो काफी अनोखा है। क्योंकि इस मंदिर का कपाट साल में केवल चार दिन (1/4) Image
ही खुलता हैं। हम बात कर रहे हैं काशी के प्रसिद्ध माता अन्‍नपूर्णा मंदिर की। इन्हें तीनों लोकों में धन- धान्य और खाद्यान्न की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि माता ने स्‍वयं भगवान शिव को भोजन खिलाया था। जिस की गवाही मंदिर की दीवारों पर बने चित्र देते हैं।

साल में केवल (2/4)
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Oct 21
दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी।

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लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।

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दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला।
(3/11)
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Oct 21
क्या आप जानते है कि केला 🍌 और नारियल 🥥 सनातनी हिन्दुओ के पूजा पाठ में खास स्थान क्यूं रखते है?

नारियल और केला ये दो ही ऐसे फल है जो किसी के जूठे बीज से उत्पन्न नही होते, मतलब अगर हमे आम का पेड़ लगाना है तो हम आम को खाते है और उसके बीज या गुठली को जमीन में गाड़ते है तो (1/4) Image
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को सम्पूर्ण फल अर्पित किया जाता है।

हमारे पूर्वज कितने ज्ञाता थे, जो चीजे हमे आज तक पता नहीं वो पहले से जानते थे और उसका जीवन में इस्तेमाल कर जीवन पध्दति में ढाल लिए थे, जो हमे परंपरा से प्राप्त हुआ है, केवल हम उन्हे इस्तेमाल करते गए पर उनकी क्यों और क्या (3/4)
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Oct 21
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प्रजा में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। फ्रांस और इटली में पुलिस को लाठीचार्ज करके प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना पड़ रहा है, और अगले दो-तीन महीनों में स्थिति इतनी विकट होने जा रही है कि हमें पूरे यूरोप की सड़कों पर जिंदाबाद मुर्दाबाद करते करोड़ों लोग भी दिखें तो अब आश्चर्य नहीं (3/8)
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Oct 21
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