चूंकि ईरान भारत को भारी मात्रा में तेल निर्यात करता है,इसलिये जब भी ईरान-अमेरिका संघर्ष बढ़ता है, तो यह भारत को भी प्रभावित करता है,और हमारा मीडिया
इसके बारे में बहुत सारी खबरें दिखाता है।
क्या आपने कभी सोचा है *"ईरानी अमेरिका को "द डेविल्स लैंड" क्यों कहते हैं?"*
ईरान के तेल व्यापार में अंग्रेजों का पहले से ही दबदबा था, ईरान का 84% तेल उत्पादन इंग्लैंड में और केवल 16% ईरान को जाता था। ईरान के बादशाह मोहम्मद रज़ा पहलवी एक
भ्रष्ट व्यक्ति था, इसलिए उसने इसकी परवाह नहीं की।
(ईरान में संवैधानिक राजतंत्र था, संवैधानिक राजतंत्र में भी चुनाव होते हैं, संसद भी होती है।)
1951 में, एक कट्टर देशभक्त मोहम्मद मोसादेग प्रधान मंत्री बने। उन्हें ईरान के तेल व्यापार में विदेशी कंपनियों का दबदबा पसंद नहीं था।
15 मार्च 1951 को उन्होंने संसद में ईरान के तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण के लिए एक विधेयक पेश किया, जिसे बहुमत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक के पारित होने के बाद, ईरानियों ने खुशी के सपने देखना शुरू कर दिया, कि अब उनकी गरीबी दूर हो जाएगी।
*टाइम्स पत्रिका ने 1951 में मोसादेग को
"मैन ऑफ द ईयर" कहा था।*
लेकिन इन सब चीजों के कारण अंग्रेजों को बहुत कुछ खोना पड़ा। अंग्रेजों ने मोसादेग को हटाने के लिए कई छोटे और बड़े प्रयास शुरू किए,मोसादेग को रिश्वत देने की कोशिश की, मोसादेग की हत्या करने की कोशिश की,सैन्य तख्तापलट का प्रयास किया, लेकिन मोसादेग बहुत अनुभवी
और बुद्धिमान होने के कारण, ब्रिटिश हत्या, रिश्वत की साजिश विफल रही। मोसादेग लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय था। इसलिये सैन्य तख्तापलट संभव नहीं था।
अंत में अंग्रेजों ने अमेरिका से मदद मांगी। अमेरिका की सीआईए ने मोसादेग को हटाने के लिए 1 मिलियन डॉलर के फंड को मंजूरी दी। 1 मिलियन डॉलर
बराबर 4250 करोड़ रियाल (ईरानी मुद्रा)
धन तेहरान (ईरान की राजधानी) में अमेरिकी राजदूत को भेजा गया था। मोसादेग ईरान में राजशाही को पूरी तरह से समाप्त करना और संसद को सारी शक्ति देना चाहता था, इसलिए ईरान का सम्राट भी इंग्लैंड और अमेरिका के पक्ष में था। उनकी योजना मोसादेग के खिलाफ
असंतोष पैदा करना और जनसमर्थन को हटाने की थी, फिर भ्रष्ट सांसदों की मदद से उनकी सरकार को उखाड़ फेंकना था।
अमेरिका द्वारा बड़ी संख्या में ईरानी पत्रकारों, संपादकों,मुस्लिम मौलवियों को 631 करोड़ रियाल का भुगतान किया गया था और उन पत्रकारों,संपादकों और मुस्लिम मौलवियों को बदले में
केवल एक ही काम करना था,वह था लोगों को मोसादेग के खिलाफ भड़काना।ईरानी संसद के सदस्यों को मोसादेग के काम के बारे में प्रचार करने के लिए46मिलियन रियाल का भुगतान किया गया था।झूठे विरोध में भाग लेने के लिए हजारों ईरानियों को भुगतान किया गया था।उन्होंने संसद पर मार्च करना शुरू कर दिया।
दुनिया भर के बड़े मीडिया ने भी अमेरिका का समर्थन करना शुरू कर दिया।मोसादेग को "न्यूयॉर्क टाइम्स"में"तानाशाह"कहा जाने लगा।"टाइम्स"पत्रिका ने मोसादेग को खतरनाक बताया।मोसादेग का विरोध बहुत निचले स्तर पर शुरू हुआ,जिसमें कार्टूनों में उन्हें समलैंगिक के रूप में दर्शाया गया था।
यह महसूस करते हुए कि उनकी सरकार भ्रष्ट सांसदों द्वारा उखाड़ फेंकने वाली थी, मोसादेग ने संसद को भंग कर दिया, और अंत में अमेरिका ने ईरानी सम्राट को मोसादेग को प्रधान मंत्री के पद से हटाने के लिए मजबूर किया। (चूंकि मोसादेग के पास आदेश को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार था,
उसने आदेश से इनकार करने पर उसे गिरफ्तार करने का फैसला किया)
लेकिन मोसादेग के सैनिकों ने उसे गिरफ्तार करने के लिए आई सेना की टुकड़ी को गिरफ्तार कर लिया और यह जानकर ईरान का सम्राट बगदाद भाग गया।
अंत में,210 मिलियन रियाल की रिश्वत देकर,अमेरिका ने ईरान की राजधानी में दोनों पक्षों के
भाड़े के सैनिकों के साथ नकली दंगे भड़काए।
दंगाइयों ने मोसादेग के घर पर हमला किया, मोसादेग को भागने के लिए मजबूर किया गया, सेना ने सत्ता को उखाड़ फेंका, एक कठपुतली को सम्राट के पुराने आदेश का हवाला देते हुए प्रधान मंत्री बना दिया गया।
सम्राट के ईरान लौटने के बाद, मोसादेग ने
आत्मसमर्पण कर दिया, मुकदमा चलाया गया, कैद किया गया, और फिर उनकी मृत्यु तक घर में नजरबंद रखा गया। (मोसादेग का 85 वर्ष की आयु में हिरासत में निधन हो गया।)
उसके बाद अमेरिका और इंग्लैंड ने 40% - 40% ईरानी तेल साझा किया और शेष 20% अन्य यूरोपीय कंपनियों को दिया गया।
दशकों तक ईरानी लोगों को शाह की तानाशाही में रहना पड़ा, एक क्रांति ने राजशाही को समाप्त कर दिया लेकिन फिर कट्टर खुमैनी सत्ता में आया और ईरानी लोगों को और भी बदतर बना दिया।
क्या था मोसादेग का गुनाह..? *"हमारे देश के क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों के बजाय स्वदेशी कंपनियों का वर्चस्व
होना चाहिए!"* ये नीति है उसका गुनाह..? मोसादेग के नेतृत्व में, ईरान 1955 से पहले पूरी तरह से लोकतांत्रिक देश बन गया होता,और तेल उत्पादन का 100% ईरान को लाभ होता। ईरानी लोगों को जो दशकों की यातनाएँ दी गई हैं, वे नहीं होतीं।
एक मजबूत लोकतंत्र और स्वदेशी कंपनियों का पक्ष लेने वाली
सरकार के साथ,ईरान शायद आज सऊदी अरब की तुलना में अधिक समृद्ध देश होता।लेकिन ईरान के भ्रष्ट सांसदों,पत्रकारों,संपादकों, प्रदर्शनकारियों ने ईरान के समृद्ध भविष्य को सिर्फ दस लाख डॉलर में बेच दिया।
उत्पीड़न के इस दौर में ईरानी लोगों को यह अहसास होने लगा कि मोसादेग की सरकार को उखाड़
फेंकने में अमेरिका का हाथ है। 1979 में, ईरानियों ने 444 दिनों के लिए अमेरिकी दूतावास में अमेरिकियों को हिरासत में लिया था। दूतावास में पाए गए दस्तावेजो को ईरानियों ने 77 खंडो मे जारी किया। जिसमें इस बात का सबूत था कि अमेरिका ने ईरान में दमनकारी कठपुतलियों की कैसे मदद की।
इसलिए ईरानी लोग अमेरिका को *"शैतान का देश"* कहते हैं।
मोसादेग विदेशी कंपनियों के प्रभुत्व को तोड़ने और स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देने की नीति को पूरा नहीं कर सका, उसने दुनिया की दो महाशक्तियों के साथ दुश्मनी स्वीकार कर ली थी। अंत में उसका दुर्भाग्यपूर्ण अंत हुआ, क्योंकि बॉलीवुड
फिल्मों कि तरह नायक हर बार नहीं जीतता।
आखिर कौन है ईरान का असली खलनायक..? पत्रकार, संपादक, सांसद, कार्यकर्ता जिन्होनें देश अमेरिका को बेच दिया ? अगर ये लोग नहीं बिके होते तो लोग मोसादेग के पीछे खड़े होते, अमेरिका इंग्लैंड इस तरह सफल नहीं होता। लेकिन चार पैसो के लिए देशभक्त नेता
को "हुकुमशाह" कहा गया और जल्द ही पूरा देश बर्बाद हो गया। हमारा देश 'भारत' भी आज उसी राह पर है। यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आम नागरिकों को चल रहे षड्यंत्रों पर तब तक ध्यान नहीं जाता, जब तक कि उन पर अंतहीन अत्याचार न हों।समय रहते सतर्क रहना और इस भ्रष्ट मीडिया प्रचार का शिकार न
होना, हमारे देशभक्त वर्तमान भारतीय नेतृत्व पर भरोसा करना और इसके पीछे मजबूती से खड़ा होना बुद्धिमानी है।
नहीं तो ईरान जैसी आपदा अवश्यंभावी है....और यही कारण है कि बड़े पूंजीवादी देशों की खुफिया एजेंसियां दिन-रात काम कर रही हैं। ये ख़ुफ़िया एजेंसियां भारत के कई राजनेताओं को
अपना एजेंट बना रही हैं और ये देश को गंदे पैसे के लिए बेचने के मकसद से भी काम कर रही हैं. *यह अब कोई रहस्य नहीं है कि हमारे सभी विपक्षी दल 2014 से इसका नेतृत्व कर रहे हैं।*
कहा जाता है कि हमारा भाग्य हमारे ही हाथों में होता है, बस हमें इसे ठीक से समझने की जरूरत है।
बस अब हर भारतीयों को समझना है कि अब हमें"इस शैतान देश,लुटेरे विपक्ष,देशद्रोही पत्तलकार,अनर्गल बुद्धिजीवी"जो देश बेचने तैयार,के झांसे में नही आना है।
मोदीजी के साथ दृढ़ता से खड़े रहें, हर निर्णय पर।अब तक तो निर्णय सही ही हैं।
*जयहिंद*
*लेखक ईरान में भारत के प्रतिनिधि थे।*
साभार:
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दीपावली पर मिठाई बांटने के पीछे भी एक सोच होती है, क्योंकि हर मिठाई कुछ सिखाती है:
गौर कीजिए, मिठाइयों के कुछ ना कुछ संदेश.....
जैसे:
#रसगुल्ला
कोई फर्क नहीं पड़ता कि,
जीवन आपको कितना निचोड़ता है,
*अपना असली रूप सदा बनाये रखें*
#बेसन_के_लड्डू
यदि दबाव में बिखर जाय तो,फिर से बंध कर लड्डू हो सकता है।
परिवार में एकता बनाए रखें #गुलाब_जामुन
सॉफ्ट होना कमजोरी नहीं!ये आपकी खासियत भी है।
नम्रता एक विशेष गुण है #जलेबी
आकार मायने नहीं रखता,स्वभाव मायने रखता है,
जीवन में उलझने कितनी भी हो,रसीले और सरल बने रहो
#बूंदी_के_लड्डू
बूंदी-बूंदी से लड्डू बनता, छोटे-छोटे प्रयास से ही सब कुछ होता हैं!
*सकारात्मक प्रयास करते रहे.*
#सोहन_पापड़ी
हर कोई आपको पसंद नहीं कर सकता, लेकिन बनाने वाले ने कभी हिम्मत नहीं हारी।
*अपने लक्ष्य पर टिके रहो*
क्यों जाते हैं सुप्रीम कोर्ट
किसी भी हिन्दू विरोधी फिल्म
को रुकवाने के लिए -
वो न सुनेंगे और न कुछ करेंगे,
फिल्म का बायकाट ही एकमात्र
रास्ता है -
Thank God का पूर्ण बहिष्कार हो -
कल चीफ जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने अजय देवगन की 25 अक्टूबर
को रिलीज़ होने वाली फिल्म Thank God के खिलाफ तुरंत सुनवाई से इंकार कर दिया और 1 नवम्बर सुनवाई के लिए तय कर दी -
इस फिल्म में भगवान चित्रगुप्त को भद्दे Costume पहने अपमानजनक तरीके से दिखाया गया है और अर्धनग्न लड़कियों को उनके आसपास नृत्य करते हुए दिखाया गया है -
Shri Chitragupta Welfare Trust ने अदालत से इस फिल्म के पोस्टर और रिलीज़ रोकने के लिए अपील की थी मगर CJI ने तुरंत सुनवाई से इंकार कर दिया -
अब कोई बताए कि 25 अक्टूबर को फिल्म रिलीज़ होने के बाद आपकी एक हफ्ते बाद सुनवाई के क्या मायने हैं, फिर आप कह देंगे कि फिल्म तो रिलीज़
भगत सिंह बनना तो दूर, नेता बनना अब आसान नहीं है भारत में। क्या है इसका कारण? क्षेत्रिय जितने स्थापित नेता हैं, आजादी आंदोलन के बाद के उपजे हुए हैं। दशकों दशक सत्ता भोग चुके हैं। अब उनके बेटे भतीजे की अगली पीढ़ी सत्ता भोग रही है। अन्ना आंदोलन कमजोर कहां था? सवा सौ साल की स्थापित
कांग्रेस की बुनियाद हिला दी थी। तब से कांग्रेस उत्तरोत्तर गर्त में समाता जा रहा है। केजरीवाल नेता बनकर उपजे। आंदोलन ने केजरीवाल को इतनी ताकत दी कि वे प्रधानमंत्री पद के एक मजबूत दावेदार बने।
'14 के बाद लेकिन एक ऐसे नेता का राष्ट्रीय स्तर पर उदय हुआ, कि बाकी तमाम नेता बौने हो गए।
आज मनीष सिसोदिया को भगत सिंह कह कर केजरीवाल संबोधित करते हैं, तो सामाजिक मीडिया के लिए यह एक उपहास का मुद्दा बन जाता है। क्यों बन जाता है? नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व की लकीर इतनी लंबी खींच दी है, कि कोई उस लकीर के इर्द-गिर्द भी नजर नहीं आ पा रहा। भारत की राजनीति से यदि मोदी को हटा
जैसा कि मैंने कहा था (अमेरिका) नाटो की विकेटे गिरनी शुरू हो गई है.
फ्रांस
जर्मनी
स्पेन
पोलैंड
फ्रांस और जर्मनी को अब जाकर समझ में आई है कि अमेरिका के कहने पर जो रूस पर प्रतिबंध लगाए गए, उसका पूरा फायदा सिर्फ अमेरिका को हुआ और उसकी भरपाई यूरोपियन देश उल्टा अमेरिका से ही महंगा
तेल, गैस और हथियार खरीद कर कर रहे हैं. अब अगर रूस यूक्रेन के साथ-साथ इन देशों पर भी अटैक करता है तो इन देशों को रूस से लड़ने के लिए हथियार चाहिए होंगे और जो हथियार इनके अपने स्टॉक में थे वह तो इन्होंने यूक्रेन को रूस से लड़ने के लिए दे दिए. अब अपने लिए जो हथियार चाहिए होंगे वह
इनको अमेरिका से ही अमेरिका के मनमाने दामो पर खरीदने पड़ेंगे.यानी कि यहां पर भी अमेरिका का ही फायदा.
मतलब यह कि अमेरिका नाटो में सम्मिलित देशों को नाटो के आर्टिकल 5 का झुनझुना पकड़ा कर इन 30 देशों को वर्षों से बेवकूफ बनाता आ रहा है.और यह बिना अपनी अकल लगाएं अमेरिका के इस जाल में
मित्रों.... आप लोगों के सामने, भारत के खिलाफ हो रहे एक बड़े अंतरराष्ट्रिय साजिश का खुलासा करने जा रहा हूं, जो भी मित्र मुझ न चीज की पोस्ट पढ़ते हैं, और हर बातों को गहराई से परखते हैं.. वह जरुर इस पोस्ट की अहमियत को समझेंगे, ओर USA द्वारा भारत के खिलाफ हो रहे.. इस गहरे साजिश का
Decode पोस्ट को पढ़कर कर पाएंगे...!?
क्या आप लोग कभी समझने की कोशिश किया है कि, यूक्रेन संकट, श्रीलंका का आर्थिक संकट और तमिलनाडु में हालिया हुए भारत विरोधी तत्वों के बीच में समानता क्या है !? इसका एक ही जवाब है "विक्टोरिया नूलैंड" तो कौन है ये विक्टोरिया नूलैंड !?
विक्टोरिया नूलैंड अमेरिका की, दुसरे देशों में शासन परिवर्तन करने का एक एजेंट के तौर जाना जाता है,इस सत्ता परिवर्तन की खेल में उसकी खतरनाक क्षमता है.बह कुछ भी करने की माद्दा रखती है ? विक्टोरिया नूलैंड ने..साल 2013 में यूक्रेन में "EUROMAIDAN" विरोध प्रदर्शन की, सूत्रधार रही थी...