हम कथा सुनाते राम
सकल गुणधाम की,
हम कथा सुनाते राम
सकल गुणधाम की,
ये रामायण है
पुण्यकथा श्रीराम की,
जम्बुद्वीपे,भरत खंडे.
आर्यावर्ते, भारतवर्षे,
इक नगरी है विख्यात
अयोध्या नाम की,
यही जन्म भूमि है परम
पूज्य श्री राम की,
(1/14)
हम कथा सुनाते राम
सकल गुणधाम की,
ये रामायण है पुण्य
कथा श्री राम की,
ये रामायण है पुण्य
कथा श्री राम की,
रघुकुल के राजा धर्मात्मा,
चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा,
संतति हेतु यज्ञ करवाया,
धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया,
नृप घर जन्मे चार कुमारा,
रघुकुल दीप जगत आधारा,
(2/14)
चारों भ्रातों के शुभ नामा,
भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण रामा,
गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके,
अल्प काल विद्या सब पाके,
पूरण हुयी शिक्षा,
रघुवर पूरण काम की,
हम कथा सुनाते राम
सकल गुणधाम की,
ये रामायण है पुण्य
कथा श्री राम की,
मृदु स्वर,कोमल भावना,
रोचक प्रस्तुति ढंग,
(3/14)
इक इक कर वर्णन करें,
लव कुश राम प्रसंग,
विश्वामित्र महामुनि राई,
तिनके संग चले दोउ भाई,
कैसे राम ताड़का मारी,
कैसे नाथ अहिल्या तारी,
मुनिवर विश्वामित्र तब,
संग ले लक्ष्मण राम,
सिया स्वयंवर देखने,
पहुंचे मिथिला धाम,
जनकपुर उत्सव है भारी,
जनकपुर उत्सव है भारी,
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अपने वर का चयन करेगी
सीता सुकुमारी,
जनकपुर उत्सव है भारी,
जनक राज का कठिन प्रण,
सुनो सुनो सब कोई,
जो तोडे शिव धनुष को,
सो सीता पति होई,
को तोरी शिव धनुष कठोर,
सबकी दृष्टि राम की ओर,
राम विनय गुण के अवतार,
गुरुवार की आज्ञा शिरधार,
सहज भाव से शिव धनु तोड़ा,
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जनकसुता संग नाता जोड़ा,
रघुवर जैसा और न कोई,
सीता की समता नही होई,
दोउ करें पराजित कांति
कोटि रति काम की,
हम कथा सुनाते राम
सकल गुणधाम की,
ये रामायण है पुण्य
कथा सिया राम की,
सब पर शब्द मोहिनी डारी,
मन्त्र मुग्ध भये सब नर नारी,
यूँ दिन रैन जात हैं बीते,
(6/14)
सविस्तार सब कथा सुनाई,
राजा राम भये रघुराई,
राम राज आयो सुख दाई,
सुख समृद्धि श्री घर घर आई,
काल चक्र नें घटना क्रम
में ऐसा चक्र चलाया,
राम सिया के जीवन में
फिर घोर अँधेरा छाया,
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अवध में ऐसा,
ऐसा इक दिन आया,
निष्कलंक सीता पे प्रजा
नें मिथ्या दोष लगाया,
अवध में ऐसा,
ऐसा इक दिन आया,
चल दी सिया जब तोड़ कर
सब नेह नाते मोह के,
पाषण हृदयों में न
अंगारे जगे विद्रोह के,
ममतामयी माँओं के आँचल
भी सिमट कर रह गए,
गुरुदेव ज्ञान और नीति के
सागर भी घट कर रह गए,
(8/14)
न रघुकुल न रघुकुलनायक,
कोई न सिय का हुआ सहायक,
मानवता को खो बैठे जब,
सभ्य नगर के वासी,
तब सीता को हुआ सहायक,
वन का इक सन्यासी,
उन ऋषि परम उदार का
वाल्मीकि शुभ नाम,
सीता को आश्रय दिया
ले आए निज धाम,
रघुकुल में कुलदीप जलाए,
राम के दो सुत सिय नें जाए,
श्रोतागण,
(9/14)
जो एक राजा की पुत्री है,
एक राजा की पुत्रवधू है,
और एक चक्रवर्ती राजा
की पत्नी है,
वही महारानी सीता वनवास
के दुखों में अपने दिन कैसे
काटती है,
अपने कुल के गौरव और
स्वाभिमान के रक्षा करते हुए,
किसी से सहायता मांगे बिना
कैसे अपना काम वो स्वयं करती है,
(10/14)
स्वयं वन से लकड़ी काटती है,
स्वयं अपना धान कूटती है,
स्वयं अपनी चक्की पीसती है,
और अपनी संतान को स्वावलंबी
बनने की शिक्षा कैसे देती है अब
उसकी एक करुण झांकी देखिये;
जनक दुलारी कुलवधू
दशरथजी की,
राजरानी होके दिन वन
में बिताती है,
रहते थे घेरे जिसे दास
दासी आठों याम,
(11/14)
दासी बनी अपनी
उदासी को छिपाती है,
धरम प्रवीना सती,
परम कुलीना,
सब विधि दोष हीना
जीना दुःख में सिखाती है,
जगमाता हरिप्रिया लक्ष्मी
स्वरूपा सिया, कूटती है धान,
भोज स्वयं बनती है,
कठिन कुल्हाडी लेके
लकडियाँ काटती है,
करम लिखे को पर
काट नही पाती है,
फूल भी उठाना भारी
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जिस सुकुमारी को था,
दुःख भरे जीवन का
बोझ वो उठाती है,
अर्धांगिनी रघुवीर
की वो धर धीर,
भरती है नीर,
नीर नैन में न लाती है,
जिसकी प्रजा के अपवादों
के कुचक्र में वो,
पीसती है चाकी स्वाभिमान
को बचाती है,
पालती है बच्चों को वो कर्म
योगिनी की भाँती,
स्वाभिमानी, स्वावलंबी,
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सबल बनाती है,
ऐसी सीता माता की
परीक्षा लेते दुःख देते,
निठुर नियति को दया
भी नही आती है,
उस दुखिया के राज दुलारे,
हम ही सुत श्री राम तिहारे,
सीता मां की आँख के तारे,
लव कुश हैं पितु नाम हमारे,
हे पितु, भाग्य हमारे जागे,
राम कथा कही राम के आगे,
भगवान श्री कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा से जुड़ी ये कथा
कहा जाता है कि नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने इसी दिन गए थे। भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल, फूल, मिठाई और कई दीये जलाकर उनका स्वागत किया साथ ही सुभद्रा ने अपने घर में भगवान (1/6)
श्री कृष्ण का स्वागत करके अपने हाथों से उन्हें भोजन कराकर तिलक लगाया था। सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी।
इस दिन से ही भाई दूज के मौके पर बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं।
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श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा का उल्लेख हमें श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत में मिलता है। सुभद्रा श्रीकृष्ण और बलराम की बहन थी। वहीं पुरी (उड़ीसा) में ‘जगन्नाथ की यात्रा’ में बलराम और सुभद्रा दोनों की मूर्तियां भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही रहती हैं।
कंस को ज्ञात था कि देवकी और वसुदेव का आठवां पुत्र उसे मृत्यु का ग्रास बनाएगा! फिर भी उसने बहन बहनोई का वध नहीं किया। दोनों को जेल के एक ही कक्ष में कैद कर दिया! कंस जानता था कि यह होनी होकर रहेगी, (1/11)
फिर भी उसे अपनी ताकत पर घमंड था, उसने सोचा कि वह काल से बड़ा है, अपनी मृत्यु को हराकर ईश्वर के विधान को पलट देगा! कुछ न कर पाया और एक दिन काल के गाल में समा गया!
जनक के दरबार में स्वयंवर के समय राम ने जब शिवजी का धनुष तोड़ दिया, तब रावण समझ गया था कि उसको मारने वाला (2/11)
अवतरित हो गया है! रावण यह भी जानता था कि पंचवटी से वह जिस सीता का हरण कर रहा है, वह सीता नहीं, सीता की प्रतिछाया है! उसे पता था कि जगत लीला दिखाने के लिए राम ने असली सीता को पहले ही अग्नि के हवाले कर दिया है और रावण के वध के बाद राम अग्नि से अपनी असली सीता वापस मांग लेंगे! (3/11)
दर्शन, सुनने समझने में साधारण तथा अटपटा-सा लगाता है, पर उसका दूरगामी प्रभाव जीवन की दिशा-धारा विनिर्मित करने में महती भूमिका निभाता है। इसलिए दर्शन को बुद्धिवादियों का विद्युविलास न मानकर सर्वसाधारण को दिशा निर्धारक मानना चाहिए। मैं क्या हूँ? (1/42)
कहाँ से आया? कर्तव्य धर्म क्या है? किस नीति मर्यादा का पालन करना चाहिए और अन्ततः किस परिणति की आशा करनी चाहिए। ऐसे ढेरों प्रश्न दर्शन के साथ जुड़ते हैं। इसलिए जब समाज को उठाना या गिराना हो तो उसके दर्शन को सुधारने बिगाड़ने से काम चल जाता है। स्थायी युद्ध से उस देश की, (2/42)
युग की, संस्कृति को भ्रष्ट करना होता है।
इन पंक्तियों में उस विकासवाद की चर्चा की जा रही है जो आजकल मान्यता प्राप्त कर चुका है और जिसे पढ़कर बच्चे विश्वासपूर्वक स्कूल से बाहर निकलते हैं। चौदह वर्ष जो लगातार पढ़ा और पढ़ाया गया है उसे भुला देने या अविश्वास करने का कोई (3/42)
आजकल सोशल मीडिया पर कुछ लोग कुछ ज्यादा ही ज्ञान दे रहे हैं कि ग्रहण एक खगोलीय घटना है... और, इसका आस्था से कोई लेना देना नहीं है। तथा... सूतक-फूतक कुछ नहीं होता है बल्कि, ये सब सिर्फ मन का वहम है।
तो भाई... बात कुछ ऐसी है कि वास्तव में ग्रहण वगैरह एक खगोलीय घटना ही है... (1/24)
और, सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा आदि सब एक खगोलीय पिंड ही है... तथा, मनुष्य उस खगोलीय पिंड में रहने वाला एक प्राणी मात्र है।
तो... मनुष्य समेत पृथ्वी पर रहने वाले जीव जंतु उसी खगोलीय पिंड के बनावट एवं उसमें प्रकृति प्रदत्त खूबियों के आधार पर जीने के अभ्यस्त होते हैं।
(2/24)
जैसे कि... पृथ्वी का तापमान इतना है कि पृथ्वी पर जल तरल अवस्था में रह पाता है। पृथ्वी, 24 घंटे में एक बार अपने अक्ष पर पूरा घूम जाती है।
पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी है कि हम न तो हवा में उड़ जाते हैं और न ही जमीन में धंसा हुआ महसूस करते हैं।
क्या आप ने सोचा है कभी कि लोग एक नंबर में सारा पैसा रखने से क्यों डरते हैं?
एक कारण मेरे मन में आता है: समाजवाद।
जब सरकार समाजवाद का पुरस्कार करती है तो चींटी की मेहनत से टिड्डे को खिलाती है। और किसी भी मेहनतकश चींटी को यह गंवारा नहीं होता।
मनुष्य मूलत: स्वार्थपरायण (1/14)
होता है, अपने और अपनों के लिए मेहनत करता है। समाज और सभ्यता के चलते यह बात को मानता है कि सरकार जो इन्फ्रास्ट्रक्चर, सुरक्षा आदि मुहैया करती है वह टैक्स से ही शक्य है। इसलिए टैक्स देता है और वहाँ भी चाहता है कि जो है उससे कम हो या बिलकुल ना हो। पुराणों की दुहाई देनेवाले (2/14)
भी यह जान लें कि तब भी उन राजाओं को टैक्स वसूलनेवाले रखने पड़ते थे। याने यह बात तो तय है कि रकम या प्रतिशत कितनी भी 'रिजनेबल' हो, जनता से टैक्स वसूलना ही पड़ता रहा है।
ऐसे में जब सत्ता में बैठे लोग यह कहने लगे कि जनकल्याण की योजनाओं के लिए अधिक आय वालों को ज्यादा टैक्स (3/14)
अब आकाश में बिछेगा जाल और उसमें पकड़े जाएंगे ड्रोन।
जी हां❗️
अभी तक जितने भी सिस्टम बनाए गए थे वह ड्रोन डिस्ट्रॉयर या ड्रोन किलर, एंटी ड्रोन सिस्टम आदि नामों से जाने जाते थे लेकिन डीआरडीओ द्वारा बनाए गए इस गए नए ड्रोन कैपचरिंग डिवाइस को नाम दिया गया है ड्रोन डिफेंडर।
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जिसके द्वारा दुश्मन के ड्रोन को नष्ट किए बिना कैप्चर किया जा सकेगा और उसमें मौजूद सारा डाटा प्राप्त हो जाएगा। अभी तक के सभी ड्रोन डिफेंस सिस्टम में ड्रोन पर अटैक करके उसे नष्ट कर दिया जाता था जिससे उसके अंदर मौजूद किसी भी तरह का डाटा या फिर उसके मिशन के बारे में कुछ भी (2/4)
पता नहीं लग पाता था। लेकिन यह सिस्टम उसी तरह से अपने शिकार को पकड़ता है जैसे कोई शिकारी जाल फेंक कर अपने शिकार को हासिल कर लेता है।
यह अब मोदी का भारत है। इसमें किसी भी तरह की अंतिम सीमा निर्धारित नहीं की जाती। आवश्यकता से पहले ही चीजों को इजाद किया जाता है।
(3/4)