#धर्मपत्नी के भाई को #साला क्यों कहते हैं? कितना श्रेष्ठ और सम्मानित होता है...
💥 #साला" #शब्द_की_रोचक_जानकारी
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हम प्रचलन की बोलचाल में साला शब्द को एक "गाली" के रूप में देखते हैं साथ ही "धर्मपत्नी" के भाई/भाइयों को भी "साला", "सालेसाहब"
के नाम से इंगित करते हैं।
"पौराणिक कथाओं" में से एक "समुद्र मंथन" में हमें एक जिक्र मिलता है, मंथन से जो #14_दिव्य_रत्न प्राप्त हुए थे वो :
कालकूट (हलाहल),
ऐरावत,
कामधेनु,
उच्चैःश्रवा,
कौस्तुभमणि,
कल्पवृक्ष,
रंभा (अप्सरा),
महालक्ष्मी,
शंख (जिसका नाम साला था!),
वारुणी,
चन्द्रमा,
शारंग धनुष,
गंधर्व,
और अंत में अमृत।
"लक्ष्मीजी" मंथन से "स्वर्ण" के रूप में निकली थी, इसके बाद जब "साला शंख" निकला, तो उसे लक्ष्मीजी का भाई कहा गया!
दैत्य और दानवों ने कहा कि अब देखो लक्ष्मी जी का भाई साला (शंख) आया है ..
तभी से ये प्रचलन में आया कि नव विवाहिता
बहु या धर्मपत्नी जिसे हम "गृहलक्ष्मी" भी कहते है, उसके भाई को बहुत ही पवित्र नाम साला कह कर पुकारा जाता हैं।
समुद्र मंथन के दौरान "पांचजन्य साला शंख" प्रकट हुआ, इसे भगवान विष्णु ने अपने पास रख लिया।
इस शंख को "#विजय_का_प्रतीक" माना गया है, साथ ही इसकी ध्वनि को भी बहुत ही शुभ
माना गया है।
विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है।
अतः यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। इन्हीं कारणों से हिन्दुओं द्वारा पूजा के दौरान शंख को बजाया जाता है।
जब भी धन-प्राप्ति के उपाय करो "शंख" को
कभी नजर अंदाज ना करे, लक्ष्मीजी का चित्र या प्रतिमा के नजदीक रखें।
जब भी किसी जातक का साला या जातिका का भाई खुश होता है तो ये उनके यहाँ "धन आगमन" का शुभ सूचक होता है और इसके विपरीत साले से संबंध बिगाड़ने पर जातक घोर दरिद्रता का जीवन जीने लगता है।
अतः साले साहब को सदैव प्रसन्न रखें
लक्ष्मी स्वयं चलकर आपके घर दस्तक देगी और है तो बनी रहेगी.......!!
एक मन्वन्तर में ७१ चतुर्युग ( कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग ) होते है जिसमें इस वैवस्वत मन्वन्तर के २७ चतुर्युग सम्पूर्ण हो चुके है अर्थात् यह २८ वां चतुर्युग का कलियुग चल रहा है।
हर चतुर्युग के द्वापरयुग में भगवान्
विष्णु व्यासरूप ग्रहण करके एक वेद के अनेक विभाग करते है। वेदमेकं पृथक्प्रभुः । ( श्रीविष्णुपुराण ३.३.७ )
इस वैवस्वत मन्वन्तर में वेदों का पुनः-पुनः २८ बार विभाग हो चुका ।
अष्टविंशतिकृत्वो वै वेदो व्यस्तो सहर्षिभिः ।
वैवस्वतेन्तरे तस्मिन्द्वापरेषु पुनः पुनः ॥
महाभारत काल में एक प्रतापी और सात्विक ऋषि थे नाम था मांडव्य, एक राजा ने उन्हें गलती से पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया.
महाभारत काल में एक प्रतापी और सात्विक ऋषि थे नाम था
मांडव्य, एक राजा ने उन्हें गलती से पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया. उन्हें फांसी पर लटकाया गया पर वो मरे नहीं और तड़पते रहे, उन्हें उतरा गया और फिर फांसी पर लटकाया गया दुबारा भी ऐसा हुआ, ऐसा चार बार हुआ तो राजा डर गया और ऋषि को छोड़ दिया.
तब ऋषि ने यमराज का आह्वान किया और यमराज आये, तब ऋषि ने यमराज से इस भोगे गए कष्ट का कारण पूछा तो यमराज ने उन्हें बताया की जब वो 12 साल के थे तो उन्होंने एक तितली को पकड़ा और उसके पीछे चार बार सुई चुभोई थी इस कारण आपको ये यत्न सेहन करनी पड़ी है.
क्या आप जानते हैं कि छठ माता कौन हैं और इनकी सूर्य के साथ पूजा क्यों की जाती है. सूर्य से इनका क्या संबंध है. छठ पूजा क्यों मनाई जाती है...
छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है. कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाने के #Thread
6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है.
यह चार दिनों का त्योहार है और इसमें साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. इस त्योहार में गलती की कोई जगह नहीं होती. इस व्रत को करने के नियम इतने कठिन हैं, इस वजह से इसे महापर्व अौर महाव्रत के नाम से संबाेधित
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी
नीति की चर्चा होती है, उन दिनों मुस्लिम शासक हिंदू तुष्टिकरण की कोशिशें करते थे। सबसे पहले ये काम किया मौहम्मद गौरी ने, जिसने एक तरह से दिल्ली सल्तनत की नींव रखी, जीत हासिल की, कुछ दिन शासन किया और फिर उसे अपने देश में वापस लौटना पड़ा।
कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना प्रतिनिधि शासक
बनाकर वो वापस लौट गया। लेकिन जब शुरू में उसे लगा था कि भारत में रहना पड़ेगा तो उसने यहां की हिंदू जनता से रिश्ते सुधारने के लिए एक सिक्का जारी किया था। जिसमें एक तरफ हिंदुओं के लिए धनधान्य की देवी मां लक्ष्मी की प्रतिमा उकेरी हुई थी और दूसरी तरफ नागरी में उसका नाम गुदा था।
कारकोटा राजवंश के शासक #ललितादित्य ने इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में बनवाया था......
#कश्मीर_का_सच इतना सच है की झूठ ही लगता है.
84 स्तंभों को नियमित अंतराल पर रखकर बनाये गए इस वैभवशाली मंदिर को ललितादित्य ने 7-8 शताब्दी के मध्य बनवाया था।
यह मंदिर एक पठार पर स्थित था जहाँ से पूरी कश्मीर घाटी देखी जा सकती थी।
14वीं शताब्दी में सिकंदर बुतशिकन ने जिहाद नीति को अपनाते हुए इस मंदिर को तोड़ने का फैसला किया, बुतशिकन का अर्थ होता है मूर्तियों को तोड़ने वाला, पूरे दो साल तक इस मंदिर को तोड़ा और जलाया गया, आज यहाँ