भोपाल की एक औरत थी... और ये ब्लैक एंड व्हाइट के दौर की बड़ी रंगीन औरत थी... उस औरत का अरमान था कि वो भोपाल की लोकल मधुबाला से मुंबई की सपनों की दुनियाँ की रानी बने...
पर मेंढकी को जुखाम हुआ... और उस औरत को (1/8)
इश्क़ हुआ... इश्क क्या एक पत्रकार साथ में कवि की कल्पना की उड़ान में वो उड़ ली... लगा इसके साथ बम्बई नगरिया की राह आसान होगी...
पर राह आसान होने की जगह मुश्किल हो ली फ़िल्म तो लेखक मिया दिला न पाए दो लड़की जरूर पैदा करवा दीं... और उस औरत (जया की अम्मी) के अरमानों को पलीता (2/8)
लग गया...
खैर जब लड़कियां कुछ बड़ी हुईं उनकी अम्मी को फिर कीड़ा काटा हिरोइन बनने का... तो डेरा मुंबई जमा लिया... खुद को तो कहीं घास न डली पर अपनी बेटी को पर्दे पर जरूर उतार दिया...
खैर ये फिल्मों की रंगीन दुनियाँ बड़ी काली है... अपनी माँ के सपनों का बोझ और तमाम काले कौनो (3/8)
की यादों का गुस्सा समेटे पहले जया भादुड़ी बड़े पर्दे की हीरोइन बनी और फिर महा नालायक की बीवी...
अब अम्मी जान तो जो थी वो थीं ही... खजूर के आसमान वाले के करम से सास भी बड़ी लाजवाब मिली... ससुर साब कविता बांचते जीते रहे और सासू माँ के रंगीले नेहरू से इश्क़ के किस्सों को (4/8)
सुनते हुए खून के घूंट पीते रहे...
माँ और सास के संस्कार बहू को पतिदेव ने और अच्छे से समझाये... बीवी थोड़ी सी पुरानी पड़ी तो रेखा रानी से नैना लड़ाए...
अब ऐसे कुनबे की नातिन नव्या नवेली को उसकी नानी भला इससे अच्छा और क्या सिखाएगी... माय डार्लिंग बेबी तू जल्दी से बिना (5/8)
ब्याह बच्चे जन... तेरी नानी उन्हें रोज तेरी माँ की नानी की कहानी सुनाएगी!!
सदी के सो कॉल्ड महानालायक की बीबी अपनी नतिनी को समझा रही है कि बेशक बिना शादी किये बच्चा पैदा करो। मुझे कोई आपत्ति नही है। इसी बॉलीवुड ने हमारी बेटियों को सड़क पे नंगे घूमना सिखाया है।
इसी बॉलीवुड (6/8)
ने साड़ी के साथ ब्रा नुमा ब्लाउज पहनना सिखाया है। अब यही बॉलीवुड बेटियों को सिखाएगा कि सड़क पे आवारा घूमो। माई बॉडी माई चॉइस...
आज जया बच्चन अपनी नतिनी को सिखा रही, बिन शादी बच्चे पैदा करना। कल को यही सिखाएगी कि पैसा कमाने के लिये वेश्यावृत्ति करो। LGBTQ वालों ने तो (7/8)
प्रचार कर कर के कुकर्म को भी कूल बना दिया है। वामपंथी Woke (JNU) लड़के साड़ी पहन के लिसपिसटिक लगा के नाच ही रहे हैं।
मैं इसीलिये कहता हूँ कि LGBTQ का सर्वनाश होना बहुत ज़रूरी है। बहिष्कार ज़रुरी है अगर संस्कृति को बचाए रखना है।
एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिय भगत कौन है? अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भगत नारद मुनि की बात, और मुस्कुरा कर बोले, मेरा सब से प्रिय भगत उस गांव का एक मामुली किसान है। यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, (1/9)
और फ़िर से एक प्रश्न किया, हे भगवान आप का बडा भगत तो मै हुं, तो फ़िर सब से प्रिय क्यो नही?
भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जवाब तो तुम खुद ही दोगे, जाओ एक दिन उसके घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना, नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह अंधेर उस किसान के घर पहुच (2/9)
गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, और उसने अब से पहले अपने जानवरो को चारा बगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ थोऎ, दैनिक कार्यो से निवर्त हुया, जल्दी जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला गया, सारा दिन खेतो मे काम किया।
यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का, पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है (2/11)
जहां यंत्र को स्थित किया जाता है, वह यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है, कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है।
जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भृमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुंचे (3/11)
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चौदस के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन मान्यता है कि इस दिन हरिहर मिलन होता है। यानी इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिलन होता है। इसलिए यह दिन शिव एवं विष्णु के उपासक बहुत धूमधाम और उत्साह से (1/14)
मनाते हैं। खासतौर पर उज्जैन, वाराणसी में बैकुंठचतुर्दशी को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी धूमधाम से निकाली जाती और दीपावली की तरह आतिशबाजी की जाती है।
पौराणिक मान्यता:
बैकुंठ चतुर्दशी के संबंध में हिंदू धर्म में मान्यता है कि संसार के (2/14)
समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते हैं, लेकिन चार महीने विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुन: कार्यभार सौंपते हैं। इसीलिए यह दिन (3/14)
एक बुढ़िया थी। रविवार के व्रत करती थी। उसका गोबर का नेम था। गोबर से चूल्हा लीप के तब रोटी बना के खाती थी। पड़ोसन के गऊ थी। उसके यहाँ से गोबर लाती थी।
एक दिन पड़ोसन ने गऊ अंदर बाँध ली। बुढ़िया का ना गोबर मिला, ना करा, ना खाया। भूखी (1/7)
रह गयी।
सपने में सूर्य नारायण दिखे बोले, 'बुढ़िया भूखी क्यों पड़ी है।' बुढ़िया बोली, 'देव मुझे गोबर का नेम है। चूल्हा गोबर से लीप के, रोटी बनाऊँ हूँ। ना गोबर मिला, ना लीपा, ना खाया।' सूर्य नारायण बोले, 'बाहर निकल के देख, तेरे गोरी-गाय, गोरा बछड़ा बंध रहे हैं।'
गाय ने (2/7)
एक लड़ी सोने की, एक गोबर की दी। पड़ोसन दे देख लिया। सोने की पड़ोसन ले गई, गोबर की बुढ़िया ले आई। लीप-पोत के खा ले। रोज ऐसे ही करे।
भगवान ने सोचा मैंने बुढ़िया को धन दिया। बुढ़िया को लेना ना आया। अब सूरज भगवान ने आँधी-मेघ बरसा दिया। बुढ़िया ने गऊ अंदर बाँध ली। तब बुढ़िया (3/7)
अब्दुल्ला और महबूबा, अब जाकर पाकिस्तान को सलाह दो कि शांति कैसे हो पाकिस्तान में। जो पाकिस्तान जिंदाबाद करते फिरते हैं, वो देख लें उस मुल्क की हालत।
कश्मीर में हर आतंकी हमले के बाद महबूबा और अब्दुल्ला भारत सरकार को सलाह देने कूद पड़ते हैं कि उनसे (आतंकियों और अलगाववादियों (1/9)
से) बात करनी होगी और पहले तो सीधे पत्थरबाजों से भी बात करने की सलाह देते थे। ये लोग भारत को पाकिस्तान से भी बात करने के लिए जोर डालते थे। इनके बोलने पर कोई पाबंदी नहीं है और अब्दुल्ला तो चीन की मदद से 370 वापस लाने की तैयारी करने की बात कर रहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को (2/9)
उसमे कुछ गलत नहीं लगा और इसे सरकार का विरोध बता कर Freedom of Expression बता दिया।
लेकिन आज अब्दुल्ला और महबूबा जैसे पाकिस्तान के वकीलों को पाकिस्तान की हालत देखनी चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को गोली मार दी गई और कंगाली से ग्रसित मुल्क में गृह युद्ध जैसे हालात हो (3/9)
पूरी रात सुगंधी बिखेरता पारिजात,भोर होते ही अपने सभी फूल पृथ्वी पर बिखेर देता है! अलौकिक सुगंध से सराबोर इसका पुष्प केवल मन को ही प्रसन्न नहीं करता,अपितु तन को भी शक्ति देता है ! एक कप गर्म पानी में इसका फूल डालकर पियें,अद्भूत ताजगी मिलेगी...
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यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है...
स्वर्ग में इसको छूने से देव नर्तकी उर्वषी की थकान मिट जाती थी, पारिजात नाम के इस वृक्ष के फूलों को देव मुनि नारद ने श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को दिया था, इन अदभूत फूलों को पाकर सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण से जिद कर बैठी कि पारिजात (2/6)
वृक्ष को स्वर्ग से लाकर उनकी वाटिका में रोपित किया जाए!
सत्यभामा की जिद पूरी करने के लिए जब श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए नारद मुनि को स्वर्ग लोक भेजा तो इन्द्र ने श्री कृष्ण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पारिजात देने से मना कर दिया, जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने (3/6)